ये है 21वीं सदी की अब तक की सबसे चर्चित फांसी, जानिये- कैसे जिंदा बच निकला 5वां कातिल !
2012 Delhi Nirbhaya Case निर्भया केस में फांसी की सजा पाए चारों दोषियों विनय अक्षय मुकेश और पवन पर जेल प्रशासन नजर रख रहा था क्योंकि 20 मार्च 2020 की सुबह फांसी होना तकरीबन तय था। वहीं 5वां दोषी सजा काटकर देश के किसी कोने में रह रहा था।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। ठीक दो साल पहले आज ही तारीख यानी 20 मार्च की सुबह निर्भया मूहिक दुष्कर्म और हत्या के चारों दोषियों (मुकेश, अक्षय, विनय और पवन) को फांसी दी गई थी। चारों दोषियों को तिहाड़ जेल संख्या-3 के फांसी घर में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। 16 दिसंबर, 2012 को निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में कुल 6 दोषियों में से सिर्फ 4 को ही 20 मार्च को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी, वहीं एक आरोपित राम सिंह ने कोर्ट ट्रायल शुरू होने से पहले जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी, जबकि एक नाबालिग दोषी को जुवेनाइल कोर्ट से सजा के तौर 3 साल बाद रिहा कर दिया था। यह नाबालिग देश के किसी कोने में नए नाम और नए काम के साथ अपनी जिंदगी गुजार रहा है। निर्भया के माता-पिता का आज भी इस बात का मलाल है कि उनकी बेटी का एक बेहरम कातिल जिंदा है। वहीं, 16 दिसंबर, 2012 को हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले के चारों को 20 मार्च को फांसी दे दी गई। फांसी के बाद निर्भया की मां ने इसे न्याय की जीत बताया था, लेकिन पांचवें दोषी के जिंदा रहने पर नाराजगी भी जाहिर की थी।
दरअसल, कुछ 6 दोषियों में से एक गुनहगार राम सिंह ने तिहाज जेल में ही कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। इसके अलावा एक और दोषी भी था, जो वारदात के वक्त यानी 16 दिसंबर, 2012 को नाबालिग था। इसके कारण उसे जुवेनाइल कोर्ट से 3 साल की ही कैद हुई और अब वो आजाद है। बताया जाता है कि फिलहाल वह देश के किसी कोने में नाम के साथ पूरी पहचान बदलकर अपना काम कर जीवन गुजर बसर कर रहा है।
ऐसे दी गई थी फांसी
निर्भया के दोषियों को फांसी देने से पहले 24-48 घंटे का समय बेहद नाटकीय रहा था। 19 मार्च, 2020 को दिल्ली हाई कोर्ट ने चारों दोषयों (अक्षय, मुकेश, विनय और पवन) को फांसी देने का फरमान सुना दिया, लेकिन कुछ ही देर बाद दोषियों के वकील एपी सिंह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। रात ढाई बजे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी पर अपनी मुहर लगा दी। फांसी तय होने के बाद सुबह सारी प्रक्रिया शुरू हुई। इस दौरान दो दोषियों ने अपने हाथ बंधवाने से भी इनकार किया था। फिर पुलिसवालों की मदद से उनके हाथ बांधे गए थे। इससे पहले निर्भया के चारों दोषियों को जैसे ही पता चला कि उन्हें फांसी होगी वे रातभर बेचैन रहे। 19 मार्च की रात को दोषियों मुकेश और विनय ने तो खाना भी नहीं खाया, जबकि पवन और अक्षय ने खाना तो खाया लेकिन रातभर बेचैन रहे और सोए नहीं।
अधिकारी तनाव दूर कर रहे थे दोषियों का
19 मार्च दोपहर बाद से निर्भया के दोषियों के चेहरों पर लगातार तनाव बढ़ रहा था। जेल अधिकारी इस बीच कर्मचारियों व इनके सेल में रहने वाले दूसरे कैदियों से इनके बारे में पूरी जानकारी ले रहे थे। यदि अधिकारियों को लगता था कि ये ज्यादा तनाव में हैं तो अधिकारी उनसे बातचीत कर सामान्य स्थिति में लाने की कोशिश करते थे। दोषियों के सेल के आसपास नियमित तौर पर लगे कैमरे के अलावा उच्च क्षमता वाले सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे।
24 घंटे रखी जा रही था नजर
निर्भया केस में फांसी की सजा पाए चारों दोषियों विनय, अक्षय, मुकेश और पवन पर जेल प्रशासन लगातार नजर रख रहा था। इन पर जेलकर्मियों के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल व तमिलनाडु पुलिस के जवान चौबीस घंटे नजर रख रहे थे। अधिकारियों का आशंका थी कि घबराहट की स्थिति में कोई कैदी खुद को नुकसान या आत्महत्या की कोशिश जैसे कदम न उठा ले। इनके सेल के आसपास नियमित तौर पर लगे कैमरे के अलावा उच्च क्षमता वाले सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। कैमरे की फुटेज की निगरानी के लिए जेल कर्मचारी 24 घंटे तैनात रहते थे।
वहीं, 20 मार्च को फांसी देने से पहले विनय, पवन, अक्षय और मुकेश को उनकी ही सेल में नहलाया जाएगा। फांसी की सुबह जेल अधिकारी, जेल स्टाफ और इलाके के एसडीएम समय से पहले ही तीन नंबर जेल पहुंच गए थे। एसडीएम का इशारा मिलने के बाद मेरठ से आए जल्लाद पवन ने चारों को फांसी दी।
क्यों दी जाती है सुबह-सुबह फांसी
भारत ही नहीं, बल्कि दुनियों के कई देशों में भी दोषियों को फांसी सुबह-सुबह दी जीता है। भारत में तर्क दिया जााता है कि जेल मैन्युअल के तहत जेल के सभी कार्य सूर्योदय के बाद किए जाते हैं। ऐसे में फांसी के कारण जेल के बाकी कार्य प्रभावित ना हो ऐसा इसलिए सुबह-सुबह और सूर्य निकलने से पहले फांसी दिए जाने का नियम सालों से चला आ रहा है।
फांसी लगाने के बाद ऐसे होती है दोषी की मौत
फांसी लगाने के बाद शख्स की श्वासावरोघ के चलते मौत हो जाती है। अमूमन फांसी के दौरान गर्दन की हड्डी टूट कर श्वासावरोघ कर देती है और शख्स की मौत हो जाती है। इसके बाद भी 15 मिनट तक लटकाए रखने के बाद जांच की जाती है और डाक्टर के संतुष्ट होने पर ही फांसी पूरी मानी जाती है। इस बीच यदि दोषी की मौत नहीं होती है तो उसे फिर फांसी पर लटकाया जाता है।
फांसी के 2 घंटे बाद तिहाड़ जेल में जिंदा था एक दोषी
1982 में तिहाड़ जेल में फांसी दिए जाने के बाद भी एक दोषी के 2 घंटे तक जिंदा रहने का मामला सामने आ चुका है। हुआ यूं कि 31 जनवरी 1982 को तिहाड़ जेल में संजय और गीता चोपड़ा हत्याकांड में रंगा और बिल्ला को फांसी द गई। इसके बाद 2 घंटे बाद डाक्टरों ने जांच की तो पता चला कि बिल्ला तो मर गया है, लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही है। इस पर फांसी के तख्ते के नीचे रंगा के पैरों को दोबारा खींचने पर उसकी मौत हुई।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।