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Qutub Minar Dispute: कुतुबमीनार परिसर में क्यों संभव नहीं है धार्मिक गतिविधि, जानिये- सबसे बड़ी अड़चन

Qutub Minar Dispute भारतीय पुरातत्व विभाग के वकील डा. सुभाष गुप्ता का कहना है कि कुतुब मानीर एक नान लिविंग मॉन्यूमेंट (निर्जीव स्मारक) है। इसके परिसर में किसी भी धार्मिक गतिविधियों के लिए पहले से ही मनाही है।

By Jp YadavEdited By: Published: Wed, 25 May 2022 02:29 PM (IST)Updated: Wed, 25 May 2022 02:29 PM (IST)
Qutub Minar Dispute: कुतुबमीनार परिसर में क्यों संभव नहीं है धार्मिक गतिविधि, जानिये- सबसे बड़ी अड़चन
Qutub Minar Dispute: कुतुबमीनार परिसर में क्यों संभव नहीं है धार्मिक गतिविधि, जानिये- सबसे बड़ी अड़चन

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। विश्व धरोहरों में शुमार दिल्ली का कुतुबमीनार इन दिनों खूब चर्चा में है, क्योंकि यहां पर पूजा करने को लेकर हिंदू पक्ष ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कुतुबमीनार परिसर में पूजा का अधिकार देने की मांग करने वाली याचिका पर साकेत कोर्ट में सुनवाई मंगलवार को पूरी हो गई। इस पर अब 9 जून का कोर्ट का निर्णय आएगा। 

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वहीं, भारतीय पुरातत्व विभाग के वकील डा. सुभाष गुप्ता ने कहा कि अयोध्या के फैसले में भी कहा गया है कि अगर स्मारक हैं तो उनकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है। संरक्षित स्मारक में किसी तरह का पूजा-पाठ नहीं किया जा सकता है। किसी स्मारक का चरित्र, चाहे उसे पूजा के लिए अनुमति दी जाए या नहीं, उसी दिन से तय हो जाता है जिस दिन से उसे स्मारक का दर्जा दिया जाता है। इसे बाद में बदला नहीं जा सकता है।

डा. सुभाष गुप्ता ने यह भी कहा कि कुतुबमीनार जब एएसआइ के संरक्षण में आया था, तब वहां कोई पूजा नहीं हो रही थी। किस स्मारक में पूजा का अधिकार है और कहां नहीं, यह अधिग्रहण के समय की स्थिति से तय होता है। कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण 27 मंदिरों के अवशेष से किया गया था, लेकिन ये कहीं नहीं लिखा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया। यह भी नहीं बताया गया है कि मस्जिद के लिए सामग्री वहीं से जुटाई गई थी या कहीं और से लाई गई थी।

यहां पर बता दें कि साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) निखिल चोपड़ा की अदालत ने दोनों पक्षों को एक सप्ताह के अंदर अपनी दलील दाखिल करने का समय दिया है। नौ जून को फैसला सुनाया जाएगा।

मंगलवार को हिंदू पक्ष और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने अपनी दलीलें रखीं। हिंदू पक्ष ने कहा कि 27 मंदिरों को ध्वस्त करके यहां कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनाई गई थी, इसलिए यहां हिंदू समुदाय को पूजा करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर यहां 800 सालों से देवता बिना पूजा के भी वास कर रहे हैं तो उनको ऐसे ही रहने दिया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले सिविल कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि अतीत की गलतियों को वर्तमान में शांतिभंग का आधार नहीं बना सकते। अगर ऐसा किया जाता है तो संविधान के ताने-बाने को नुकसान पहुंचेगा। इस फैसले के खिलाफ सत्र अदालत में अपील की गई थी, जिसपर मंगलवार को सुनवाई पूरी हुई।

एएसजे ने कहा कि जिस मस्जिद की बात हो रही है, उसका इस्तेमाल मस्जिद के तौर पर अभी नहीं होता है। यह मानकर कि वहां 800 साल पहले मंदिर था, उसको पुनर्स्थापित करने की कानूनी मांग कैसे की जा सकती है, जबकि इमारत तभी अपना अस्तित्व खो चुकी है।

हिंदू पक्ष की दलील हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में कहा था कि देवता हमेशा मौजूद रहते हैं। जो जमीन देवता की होती है, वह हमेशा देवता की रहती है। जब तक कि उनका विसर्जन न हो जाए।

ये बात अयोध्या के फैसले में पांच जजों की बेंच ने भी मानी थी। किसी देवता की मूर्ति को नष्ट कर दिया जाए, उसका मंदिर तोड़ दिया जाए तब भी देवता अपनी दिव्यता और पवित्रता नहीं खोते। कुतुबमीनार परिसर में अब भी भगवान गणेश, भगवान महावीर और देवियों की मूर्तियां हैं।

अगर देवता का अस्तित्व है तो पूजा के अधिकार का भी अस्तित्व है। इस जगह को विवादित भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि 800 वर्षो से वहां नमाज भी नहीं हुई है। कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद 27 मंदिरों को तोड़कर यहां बनाई गई थी, यह तथ्य दस्तावेज में है। कुतुबमीनार परिसर में भी स्वयं एएसआइ ने लिखा है। हम वहां कोई मंदिर निर्माण नहीं चाहते, हम पूजा का अधिकार मांग रहे हैं।


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