Hindi Diwas 2022: क्या आपने भी पढ़ी है हिंदी की वह अमर प्रेम कहानी, अंत है इतना मार्मिक कि रो पड़ते हैं पाठक
Hindi Diwas 2022 महान लेखक चंद्रधर शर्मा की अमर प्रेम कहानी उसने कहा था को देश की नहीं बल्कि दुनिया की महान प्रेम कहानियों में शुमार है। इसका अंत पाठकों के मन में हमेशा के लिए एक अमिट छाप छोड़ जाता है।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। हिंदी साहित्य में हजारों कहानियां लिखी जा चुकी हैं और आज भी बड़ी संख्या में लिखी जा रही हैं जो पाठकों के दिल को छू जाती हैं। हिंदी की कई उम्दा रचनाएं हैं जो सालों बाद भी पाठकों की प्रिय बनी हुई हैं।
सालों-दशकों बाद भी इन रचनाओं का कथ्य, शिल्प और भाव पढ़कर पाठक कुछ देर के लिए अलग ही दुनिया में खो जाता है। हिंदी साहित्य में दुखांत कहानियों में चंद्रधर शर्मा की लिखी गई कहानी 'उसने कहा था' भी शुमार है। यह कहानी देश ही नहीं बल्कि दुनिया की कुछ चुनिंदा प्रेम कहानियों में शुमार है।
पाठक नहीं भूल पाता कहानी का अंत
हिंदी साहित्य की कालजयी कहानियों में शुमार 'उसने कहा था' 100 वर्ष से भी अधिक हिंदी साहित्य में ऐसी कहानियों में शुमार है, जिसे पढ़कर आज भी लोग रोमांचित हो उठते हैं और इसका अंत पाठकों के मन में हमेशा के लिए एक अमिट छाप छोड़ जाता है।
पाठकों के लिए कहानी के अंत तक रहस्य रहता है 'उसने कहा था' का शिल्प
चंद्रधर शर्मा ने कहानी 'उसने कहा था' का शिल्प कुछ इस तरह बुना कि आखिर तक पाठक के लिए रहस्य बरकरार रहता है कि उसने क्या कहा था? इसके चलते पाठक कहानी को अंत तक पढ़ने के लिए बाध्य हो जाता है। दरअलस, लहना सिंह ने ऐसी अनाम प्रेमिका के लिए जान दे दी, जिसका उसने चेहरा तक नहीं देखा है और न ही उसका नाम ही जानता है। वह उसे सूबेदारनी की नाम से जानता है।
12 साल की उम्र में लड़की को दे बैठा दिल
12 साल के लहना सिंह को 8 बरस की लड़की से प्यार हो गया। यह मासूम प्यार ही था, क्योंकि जब लहना सिंह गली-मोहल्लों और दुकानों पर मिलता तो रोज पूछता 'तेरी कुड़माई हो गई', और रोज ही जवाब मिलता 'धत्त'। एक दिन लहना सिंह को लड़की जवाब देती है ..तेरी कुड़माई हो गई? ...धत् ...कल हो गई ...। इसके बाद लहना सिंह का दिल टूट जाता है और वह बदहवास भागता है और कई बार रिक्शों और ठेलों से टकराता है। यह बेचैनी तो खत्म हो जाती है, लेकिन प्यार जीवनभर के लिए लहना सिंह के जीवन जीने का जरिये बन जाता है।
एक वादा पूरे करने के लिए दे देता है जान
लहना सिंह बड़ा होकर फौज में बतौर सिपाही भर्ती हो जाता है। एक दिन इत्तेफाक से उसका साथी सिपाही के घर जाना होता है। यहां पर एक महिला अपना परिचय देती है कि वह वही 8 बरस वाली लड़की है 'कुड़माई वाली'। वह दरअसल, सूबेदारी की पत्नी है, इसलिए लेखक चंद्रधर शर्मा ने उसका परिचय ही सूबेदारनी रखा है। बातचीत में वह कहती है कि मेरे पति और बेटे का ख्याल रखना। अनाम प्रेमिका सूबेदारी को दिए वचन को निभाने के लिए ही लहना सिंह जंग के मैदान में उसके पति और बेटे को तो बचा लेता है, लेकिन खुद को जान चली जाती है।
कहानी का अंत है बेहद मार्मिक
जंग के मैदान में सूबेदारी के पति और बेटे को बचाने के चक्कर में लहना सिंह घायल हो जाता है। उसके बाद घायल लहना सिंह को सिर उसका भतीजा वजीरा सिंह अपनी गोद में रखता है। इस दौरान लहना सिंह को सारी पुरानी बातें याद आती हैं।
कुछ इस तरह है कहानी का अंत
‘वजीरा सिंह, पानी पिला,’ उसने कहा था।
लहना का सिर अपनी गोद में रखे वजीरा सिंह बैठा है। जब मांगता है, तब पानी पिला देता है। आधे घंटे तक लहना फिर चुप रहा, फिर बोला,‘कौन? कीरतसिंह?’
वजीरा ने कुछ समझकर कहा,‘हां।’
‘भइया, मुझे और ऊंचा कर ले। अपने पट्ट पर मेरा सिर रख ले।’
वजीरा ने वैसा ही किया।
‘हां, अब ठीक है. पानी पिला दे. बस. अब के हाड़ में यह आम ख़ूब फलेगा. चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठकर आम खाना. जितना बड़ा तेरा भतीजा है उतना ही बड़ा यह आम, जिस महीने उसका जन्म हुआ था उसी महीने मैंने इसे लगाया था।’
वजीरा सिंह के आंसू टप-टप टपक रहे थे. कुछ दिन पीछे लोगों ने अख़बारों में पढ़ा...
फ्रांस और बेल्जियम, 67वीं सूची। मैदान में घावों से मरा नंबर 77 सिख राइफ़ल्स जमादार लहना सिंह।


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