जानें, जीवन में क्या है सच्ची खुशी के मायने, ऐसे बनाएं खुद को अच्छा इंसान
जब आप औरों के काम आते हैं किसी के लिए बिना किसी अपेक्षा के कुछ काम करते हैं तो उसकी खुशी और सुकून का कोई मोल नहीं होता। जीवन की सच्ची खुशी इसको ही कहते हैं। एक अच्छा इंसान बनने के लिए यह गुण बहुत जरूरी है।

नई दिल्ली, डा. अनिल सेठी।‘है काम आदमी का औरों के काम आना, जीना तो है उसी का जिसने ये राज जाना...’। यह एक पुरानी हिंदी फिल्म का गाना है, जो जीवन के बारे में हमको सिखाता है। इसे समझने के लिए मैं आपको अपने दोस्त के जीवन से जुड़ी एक घटना के बारे में बताता हूं।
कई साल पुरानी बात है। मैं नया-नया दिल्ली आया था और अपने कुछ जानने वालों से मिल रहा था। ऐसे में एक दिन जब मैं एक घर पर पहुंचा तो वहां मेरा जानने वाला नहीं था। उसके मकान मालिक ने मुझे अंदर बुलाया। पानी पिलाया। चाय के लिए पूछा और इंतजार करने के लिए कहा। उस समय ऐसे ही बैठे-बैठे बातचीत होने लगी तो उन्होंने मेरे मित्र का एक किस्सा सुनाया, जिसे सुनकर मुझे अत्यंत प्रसन्ता हुई और अपने सोच पर विश्वास बढ़ गया। मेरा मित्र राजिंदर पढ़ाई पूरी करके एक कालेज में अध्यापक नियुक्त हुआ था और किराये के मकान में रह रहा था। एक रात लगभग 11 बजे वह सोने की तैयारी कर रहा था, तभी उसके घर की बेल बजी। दरवाजा खोला तो एक बुजुर्ग खड़े थे, जो बहुत थके और घबराये लग रहे थे। उन्होंने पूछा- क्या आप राजिंदर हो तो मित्र ने कहा, जी और उनको अंदर आने को कहा। उन्हें पानी पीने को दिया, तभी बाहर से किसी के बड़बड़ाने की आवाज आई। राजिंदर ने बाहर जाकर देखा तो आटो वाला बोल रहा था। बहुत हो गया, आपके एड्रेस ढूंढ़ने के चक्कर में बहुत समय खराब हो गया। अपना सामान उठाओ और पैसे दो ताकि मैं घर जाऊं। राजिंदर ने उसके पैसे दिए और अंकल का सामान लेकर अंदर आया। अंदर आया तो देखा, वह अंकल आंखें बंद करके कुर्सी पर बैठे थे। राजिंदर ने अंकल से पूछा- क्या आपने खाना खाया तो उन्होंने कहा नहीं बेटा, इस उम्र में रात को सिर्फ थोड़ा सा दूथ ही लेता हूं। खाना हजम नहीं होता है और एक लेटर निकाल कर राजिंदर को देते हुए कहा कि ये आपके पिताजी ने दिया है। राजिंदर ने पत्र पढ़ा और उनको बोला- आप आराम करें। मैं कल आपका काम करने की कोशिश करता हूं।
चिठ्ठी पढ़कर राजिंदर को पता चला कि बुजुर्ग का एकलौता बेटा कुछ समय पहले दिल्ली में एक दुर्घटना में मर गया था, जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई, क्योंकि उनका गुजारा बेटे के भेजे हुए पैसे से ही होता था। उसके डेथ सर्टिफिकेट और कुछ अन्य डाक्यूमेंट्स के बिना उनको बीमे की रकम नहीं मिल सकती थी और वह कभी दिल्ली नहीं आये थे। उनके लिए दिल्ली आने का खयाल मात्र भी दिल दहलाने के लिए काफी था। अधिक आर्थिक तंगी न होती तो शायद वह दिल्ली न आते। ऐसे में उनके मित्र ने अपने बेटे के नाम पत्र लिखकर दिया और भरोसा दिलाया कि उनका बेटा यह काम जरूर करा देगा।
सारी परिस्थिति समझते हुए राजिंदर ने अगले दिन छुट्टी की और पूरे दिन लगकर बजुर्ग अंकल का काम पूरा करा दिया। शाम को जब उन्हें सारे पेपर्स दिए तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। वह राजिंदर को आशीर्वाद देते हुए कहा, बेटा आपके माता पिता धन्य हैं, जिन्होंने आपको ऐसे संस्कार दिए। मेरा आशीर्वाद है कि आप खूब तरक्की करो। मैं गांव जाकर तुम्हारे पिताजी को बताऊंगा कि तुम कितने अच्छे हो। यह सुनकर राजिंदर अपने को रोक नहीं पाया और रोने लगा। अंकल ने पूछा कि क्या हुआ, तो उसने बताया कि अंकल मेरे पिताजी का स्वर्गवास एक साल पहले ही हो चुका है और मैं वह राजिंदर नहीं हूं, जिससे मिलने आप आये थे। मैंने आपके पत्र से देखकर राजिंदर से फोन पर बात किया तो पता चला कि वह एक सप्ताह के लिए दिल्ली से बाहर गया हुआ है। आपको यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैंने सोचा अगर मेरे पिताजी ने आपको भेजा होता तो मैं क्या करता और मैंने छुट्टी ले ली, क्योंकि मुझे पता है कि मेरे पिता जी ने मुझे यही सिखाया है। उस रात अंकल को बस में बैठाकर जब राजिंदर घर आया तो उसे बहुत चैन और सुकून की नींद आई।
यहां आपको यह घटना सुनाने के पीछे मेरा आशय यह है कि जब आप किसी के लिए बिना किसी अपेक्षा के कुछ काम करते हैं तो उसकी खुशी और सुकून का कोई मोल नहीं होता। जीवन की सच्ची खुशी इसको ही कहते हैं।
(लेखक मोटिवेटर व लाइफ कोच हैं)
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