दिल्ली के गांवों में केजरीवाल सरकार के खिलाफ बढ़ रहा है अंसतोष, जानें- बड़ी वजह
चकबंदी और लाल डोरा का विस्तार न होने के कारण कई प्रकार की समस्याएं गांवों में बढ़ रही हैं। इसके लिए कई बार कमेटियां बनीं, सिफारिशें भी हुई, लेकिन अमल नहीं हुआ।
नई दिल्ली [जेएनएन]। दिल्ली के सौ से ज्यादा गांवों को शहरीकृत गांव का दर्जा तो मिला, लेकिन वास्तविक धरातल पर न तो अब ये गांव रह गए, न ही शहर बन पाए। इन गांवों में आज भी खेती हो रही है। चकबंदी और लाल डोरा का विस्तार न होने के कारण कई प्रकार की समस्याएं इन गांवों में बढ़ रही हैं। इसके लिए कई बार कमेटियां बनीं, सिफारिशें भी हुई, लेकिन अमल नहीं हुआ। इसके चलते गांवों में केजरीवाल सरकार के खिलाफ लगातार अंसतोष बढ़ रहा है।
तेजेंद्र खन्ना समिति का गठन
गांवों की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए लाल डोरा बढ़ाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने तेजेंद्र खन्ना समिति का गठन किया था। इस समिति ने 13 मई 2006 को रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों की बढ़ती आबादी और लाल डोरे की मौजूदा व्यवस्था को देखते हुए माना था कि गांवों में रहने के लिए जितनी जमीन लाल डोरे में है, वह पर्याप्त नहीं है। कमेटी ने सुझाव दिया कि लाल डोरा बढ़ाया जाए।
कोई कदम नहीं उठाया गया
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय एवं दिल्ली सरकार ने वर्ष 2007 में इस समस्या के निदान के लिए कुछ कदम उठाने की बात स्वीकार की मगर बात केवल फाइलों तक ही सिमट गई। इस संबंध में तेजेंद्र खन्ना समित की रिपोर्ट के सुझावों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई और न ही पूर्ववर्ती सरकारों की ओर से भूमि सुधार अधिनियम के तहत कोई कदम उठाया गया।
अंग्रेजों के समय हुई थी बंदोबस्ती
दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में सन् 1908-09 में अंग्रेजों के शासन काल के दौरान जमीन की बंदोबस्ती की गई। इसके अनुसार, गांवों की सीमा निर्धारित थी, जिसे लाल डोरे का नाम दिया गया। लाल डोरे की परिधि में आने वाले लोगों को मालिकाना हक भी दिया गया, जिसके अनुसार उस क्षेत्र में भूसा डालने के कोठे बनाने व पशुपालन के लिए छप्पर डालने आदि की छूट दी गई। इसके अलावा आवश्यकतानुसार एक-दो मंजिल मकान बनाने, व्यवसाय व धंधे आदि की भी छूट दी गई थी। इन सब पर हाउस टैक्स नहीं लगाया गया।
नहीं मिल रहा इस योजना का लाभ
देश के ग्रामीण युवकों को रोजगार देने के लिए घोषित 'ग्रामीण स्वरोजगार योजना' के मानक दिल्ली के गांवों पर लागू नहीं होते। राजधानी दिल्ली में 20 हजार से कम आबादी वाले राजस्व गांवों की संख्या आज भी 166 है, लेकिन दिल्ली देहात के युवक दिल्ली को खेती का दर्जा न मिलने के कारण इस योजना के लाभ से वंचित हैं।