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    महिलाओं में कैंसर तक की वजह बन रहे सैनिटरी पैड, इस्तेमाल के बाद 800 साल तक नहीं होते खत्म, जानें कई बातें

    By Prateek KumarEdited By:
    Updated: Fri, 04 Jun 2021 09:15 AM (IST)

    Harmful Effect of Sanitary Pad पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था टाक्सिक लिंक के अध्ययन में सामने आया है कि सैनिटरी पैड तैयार करने में ब्लीचिंग सहित अनेक खतरनाक रसायनों का प्रयोग होता हैं। यह रसायन बांझपन और ओवेरियन कैंसर तक की वजह बन रहे हैं।

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    माहवारी के दौरान इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड को तैयार करने में ब्लीचिंग सहित इस्तेमाल होते अनेक खतरनाक रसायन

    नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। माहवारी में सैनिटरी पैड का प्रयोग महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता रहा है, लेकिन अब इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था टाक्सिक लिंक के नए अध्ययन में सामने आया है कि सैनिटरी पैड तैयार करने में ब्लीचिंग सहित अनेक खतरनाक रसायनों का प्रयोग होता हैं। यह रसायन बांझपन और ओवेरियन कैंसर तक की वजह बन रहे हैं। दूसरी तरफ सैनिटरी पैड पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा बन गए हैं। लैंडफिल साइट पर यह पैड सैंकड़ों साल तक भी डिकम्पोज नहीं होते।

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    अध्ययन में सामने आयी कई बातें

    बृहस्पतिवार को जारी किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि देश में हर साल 12.3 बिलियन सैनिटरी पैड इस्तेमाल में लाए जाते हैं जिनका कचरा करीब 1,13,000 टन बैठता है। नान आर्गेनिक सैनिटरी पैड (ह्विस्पर, स्टे फ्री) को समाप्त होने में 250 से 800 वर्ष लगते हैं। देश की कम से कम 80 फीसद महिलाएं नान आर्गेनिक सैनिटरी पैड प्रयोग करती है। एक पैड में चार प्लास्टिक बैग के समान प्लास्टिक होता है।

    पैड घरेलू कचरे में ही फेंक दिए जाते हैं इस्तेमाल के बाद

    इस्तेमाल के बाद ये पैड घरेलू कचरे में ही फेंक दिए जाते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक 57 फीसद महिलाओं को यह तक नहीं पता कि नान आर्गेनिक सैनिटरी पैड को फेंकने के बाद मेन्स्ट्रुअल वेस्ट कहां जाता है और पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। 80 फीसद कचरा उठाने वाले लोग नान आर्गेनिक पैड को घरेलू कचरे में पाते हैं।

    दिल्ली का हाल सबसे बुरा

    दिल्ली में तो सारे नान आर्गेनिक सैनिटरी पैड घरेलू कचरे में मिलते हैं। राजधानी के मात्र 11 फीसद कचरा चुनने वाले पुरुष सफाई कर्मी ही पीपीई का उपयोग करते हैं, कचरा चुनने वाली ज्यादातर महिलाएं किसी पीपीई का प्रयोग नहीं करती। विडंबना यह कि इस्तेमाल सैनिटरी पैड का निष्पादन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा तैयार ठोस कचरा प्रबंधन नियमों का हिस्सा हैं, लेकिन न तो नगर निगम के स्तर पर इस कचरे को लैंडफिल साइट तक ले जाने से पहले अलग किया जाता है और न ही पैड बनाने वाली कंपनियों के लिए कोई मानक तय किए गए हैं।

    जलाने से पर्यावरण को  नुकसान

    अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इस्तेमाल सैनिटरी पैड बहुत से स्कूलों और सार्वजनिक शौचालयों में बिना किसी दिशा निर्देशों का पालन किए गलत तापमान पर जला दिए जाऐ हैं। इस दौरान निकलने वाली हानिकारक गैंसे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती हैं।

    अध्ययन की कुछ अन्य अहम बातें

    • पैड की सोखने की क्षमता बढ़ाने के लिए इनमें सेल्यूलोज, रेयोन और डायोक्सिन जैसे हानिकारक तत्वों का प्रयोग किया जाता है। शरीर से सीधा संपर्क होने के कारण यह तत्व कई गंभीर रोगों का कारक बनते हैं।
    • जब सफाई कर्मचारी इनके संपर्क में आते हैं तो उन्हें भी आंखों में जलन, त्वचा संक्रमण और सांस लेने में कठिनाई सहित अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
    • माहवारी कप सैनिटरी पैड का बेहतर विकल्प हैं। लेटेक्स के बने ये कप 10 साल तक खराब नहीं होते हैं। ये न सिर्फ सस्ते हैं, बल्कि बार-बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं और स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित भी हैं। एक माहवारी कप सेनेटरी पैड के मुकाबले सिर्फ 0.4 फीसद ही प्लास्टिक कचरा पैदा करता है।

    निष्पादन को लेकर गंभीर दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत

    सैनिटरी पैड को तैयार करने और इस्तेमाल के बाद इसके निष्पादन को लेकर गंभीर दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो जाए कि माहवारी के दिनों में साफ- सफाई रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला सैनिटरी पैड असाध्य रोगों का कारक साबित हो जानलेवा बन जाए।

    सतीश सिन्हा, एसोसिएट निदेशक, टाक्सिक लिंक