Delhi First CM: इत्तेफाक से बने दिल्ली के पहले सीएम को सरनेम लिखना नहीं था पसंद, जानें कौन है वह शख्स
साल 1951 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव परिणाम में कांग्रेस ने बाजी मारी। कांग्रेस विधायकों ने लाला देशबंध गुप्ता को अपना नेता चुना था लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही उनका निधन हो गया।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली की जनता के सच्चे सेवक और शुभचिंतक माने जाते हैं। चौधरी ब्रह्म प्रकाश का सीएम बनना भी अजब का इत्तेफाक था। दरअसल, पहले मुख्यमंत्री के तौर पर लाला देशबंधु गुप्ता को शपथ लेनी थी, लेकिन शपथ ग्रहण करने से पहले ही उनका निधन हो गया।
फिर नए सिरे से मुख्यमंत्री का चयन हुआ और चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने 35 साल की उम्र में पद की शपथ ली। ब्रह्म प्रकाश के बारे में बहुत से नेताओं और लोगों को लगता था कि वे जाट समाज से होंगे। पर वे यादव थे। उन्हें कभी भी अपने नाम में सरनेम लिखना पंसद नहीं था।
इत्तेफाक से बने मुख्यमंत्री
साल 1951 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव परिणाम में कांग्रेस ने बाजी मारी। कांग्रेस विधायकों ने लाला देशबंध गुप्ता को अपना नेता चुना था, लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही उनका निधन हो गया। इसके बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश को सीएम बनाया गया। वह 17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955 तक मुख्यमंत्री रहे।
सीएम बनाने में नेहरु की भूमिका
बताया जाता है कि ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलवाने में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की मुख्य भूमिका थी। बताया जाता है कि वे कभी भी किसी विशेष वाहन से नहीं, बल्कि आम लोगों की तरह बसों में सफर करते थे। चलते-चलते लोगों से उनकी समस्याएं भी सुन लिया करते थे। वे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद चार बार सांसद रहे।
नाम में नहीं लिखते थे सरनेम
इंडिया इंडिया सेंटर में साल 1987 में दिए गए एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था। साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि वह यादव समाज से आते हैं। लेकिन नेताओं को यह भ्रम था कि वह जाट समुदाय से आते हैं। उन्होंने बताया था कि उन्हें नाम में सरनेम लिखाना कभी पंसद नहीं था।
विदेश में हुआ था जन्म
लेखक आरवी स्मिथ के अनुसार चौधरी ब्रह्म प्रकाश का जन्म केन्या में हुआ था। 13 साल की उम्र में मां-बाप संग दिल्ली आए थे। केन्या के परिवेश का प्रभाव उनकी जिंदगी में रहा। उनके संस्कार ही उन्हें जाति, धर्म के बंधनों से ऊपर रखते थे। दिल्ली में काफी समय तक उनके नाम का गलत उच्चारण होता था। खासकर, अंग्रेजी में स्पेलिंग संबंधी गलतियां होती थीं।
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