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दिल्ली समेत देशभर के लोगों के लिए खतरे की घंटी, लकवा का बड़ा कारण बना प्रदूषण

फोर्टिस अस्पताल के डॉ. राजेश गर्ग ने कहा कि मतिष्क में रक्त की आपूर्ति प्रभावित होने पर यह बीमारी होती है और शरीर का कोई हिस्सा प्रभावित हो जाता है।

By Edited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 10:56 PM (IST)Updated: Mon, 29 Oct 2018 11:47 AM (IST)
दिल्ली समेत देशभर के लोगों के लिए खतरे की घंटी, लकवा का बड़ा कारण बना प्रदूषण
दिल्ली समेत देशभर के लोगों के लिए खतरे की घंटी, लकवा का बड़ा कारण बना प्रदूषण

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। देश की राजधानी दिल्ली की जहरीली हो रही हवा सिर्फ फेफड़े पर ही असर नहीं डालती, बल्कि दिल और दिमाग के लिए भी ठीक नहीं है। प्रदूषण हार्ट अटैक के साथ ही लकवा का भी बड़ा कारण बन रहा है। हाल ही में हुए अध्ययन में यह कहा गया है कि पिछले ढाई दशक में देश में लकवा के मामले ढाई गुना बढ़ गए हैं और इसका एक बड़ा कारण प्रदूषण है। प्रदूषण लकवा के लिए तीसरा जोखिम भरा कारण माना जा रहा है। 

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अध्ययन के अनुसार, करीब 33.5 फीसद लोगों में लकवा का बड़ा कारण प्रदूषण होता है। वैसे गलत खानपान और हाई ब्लड प्रेशर भी इस बीमारी का प्रमुख कारण है। आंकड़ों के अनुसार, 1990 में देश में करीब 28 लाख लोग लकवा से पीड़ित हुए जबकि 2016 में यह संख्या बढ़कर 65 लाख तक पहुंच गई। इस तरह लकवा मौत का बड़ा कारण बन रहा है। लकवा से पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक पीड़ित होती हैं।

एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. विजय गोयल ने बताया कि दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण लकवा के लिए बड़ा कारण है। वातावरण में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)- 2.5 बढ़ने से लकवा का खतरा भी बढ़ जाता है। विदेशों में हुए अध्ययन में प्रदूषण व लकवा के बीच संबंध साबित हो चुके हैं। भारत में स्थिति ज्यादा खराब है।

हेल्थकेयर एट होम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. गौरव ठुकराल का कहना है कि प्रदूषण के दुष्प्रभाव के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव है। लकवा होने पर लाखों लोग विकलांगता के शिकार हो जाते हैं।

शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश गर्ग ने कहा कि मतिष्क में रक्त की आपूर्ति प्रभावित होने पर यह बीमारी होती है और शरीर का कोई हिस्सा प्रभावित हो जाता है, आवाज लड़खड़ाने लगती है। धूमपान, मधुमेह व उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण भी यह बीमारी हो सकती है। समय पर इलाज जरूरी लकवा से पीड़ित ज्यादातर मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते।

डॉक्टर कहते हैं कि यदि बीमारी होने के साढ़े चार घंटे के अंदर मरीज न्यूरोलॉजी के इलाज की सुविधा से संपन्न अस्पताल में पहुंच जाएं तो इसका बेहतर इलाज संभव है।

डॉक्टरों के मुताबिक, लकवा एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति के शरीर का एक हिस्सा या दोनों हिस्से सुन्न पड़ जाते हैं, यह लकवे की स्थिति होती है। ऐसा होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं और बढ़ती उम्र में इसके होने की आशंका और अधिक बढ़ जाती है।

लकवा होने की स्थिति में दिमाग के एक हिस्से में जब खून का प्रवाह रुक जाता है तो दिमाग के उस हिस्से में क्षति पहुंचती है, जिससे लकवा होता है। करीब 85 फीसद लोगों में दिमाग की खून की नली अवरुद्ध होने पर व करीब 15 फीसद में दिमाग में खून की नस फटने से लकवा होता है।

दिमाग में रक्त पहुंचाने वाली खून की नली के अंदरूनी भाग में कोलेस्ट्रॉल जमने से मार्ग सकरा होकर अवरुद्ध हो जाता है या उसमें खून का थक्का हृदय से या गले की धमनी से निकलकर रक्त प्रवाह द्वारा पहुंचकर उसे अवरुद्ध कर सकता है। जिन व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) की बीमारी होती है। उनमें अचानक रक्तचाप बढ़ने से दिमाग की नस फट जाने से लकवा हो जाता है।

कुछ मरीजों में दिमाग की नस की दीवार कमजोर होती है जिससे वह गुब्बारे की तरह फूल जाती है। एक निश्चित आकार में आने के बाद इस गुब्बारे (एन्यूरिज्म) के फटने से भी लकवा हो जाता है।

लकवे के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि दिमाग का कौन-सा हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ है क्योंकि दिमाग के विभिन्न हिस्से शरीर की विभिन्न गतिविधियों को संचालित करते हैं।

लकवे के लक्षण हैं
अचानक याददाश्त में कमजोरी आना, बोलने में दिक्कत आना, हाथ या पांव में कमजोरी, आंखों से कम दिखना, व्यवहार में परिवर्तन, चेहरे का टेड़ा होना इत्यादि।

आपको लगता है कि आपके सामने किसी को लकवा आया है तो निम्नलिखित 3 चीजे जांच लें।

चेहरा: क्या मरीज ठीक तरह से हंस सकता है, क्या उसका एक तरफ का चेहरा या आंख लटक गई है?

भुजाएं: क्या मरीज अपनी दोनों भुजाएं हवा में उठा सकता है?

बोली: क्या मरीज स्पष्ट बोल सकता है व आपके बोले हुए शब्दों को समझ सकता है?

अगर मरीज में ये लक्षण हैं तो इसके 85 प्रतिशत अवसर हैं कि उसे लकवा हुआ है। इसलिए उसे तुरंत मेडिकल सहायता उपलब्ध कराएं व न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाएं।

 अच्छी खबर यह है कि करीब 80 फीसद मामलों में लकवों से बचा जा सकता है। 50 फीसद से ज्यादा लकवे अनियंत्रित रक्तचाप या उच्च रक्तचाप के कारण होते हैं। इसलिए उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) का उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इसके साथ ही धूम्रपान का त्याग, सैर करने जाना, नियमित व्यायाम व एट्रियल फिब्रिलेशन, जिसमें हृदय की गति अनियंत्रित हो जाती है उसका उपचार भी जरूरी है।

काफी मरीजों में लकवा आने के कुछ हफ्तों के अंदर ही थोड़ा सुधार देखने को मिलता है। मरीजों में लकवे के एक या डेढ़ साल के अंदर काफी सुधार आ जाता है। केवल कुछ मरीजों में ज्यादा समय लगता है।

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