Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अद्भुत है नई व पुरानी दिल्ली का संगम, दिल्ली की कौन सी खासियत 'शरण्या चंद्रन' के दिल के है करीब?

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 14 Feb 2020 01:14 PM (IST)

    Sharanya Chandran करीब दस साल पहले पहली बार त्रिवेणी कला संगम में साथ प्रस्तुति दी थी। इसके बाद बेंगलुरु और दिल्ली में कई बार प्रस्तुति दीं।

    अद्भुत है नई व पुरानी दिल्ली का संगम, दिल्ली की कौन सी खासियत 'शरण्या चंद्रन' के दिल के है करीब?

    नई दिल्ली, संजीव कुमार मिश्र। प्रेम के विविध रूप, हों भी क्यों न हर किसी ने इसे अपने नजरिए से जो देखा। आज की सांझ भी खास होगी जब एक ओर दो पहर का मिलन होगा। और दूसरी ओर शरण्या चंद्रन लव इन द टाइम ऑफ कामा में प्रस्तुति देंगी। प्रेम की अभिव्यक्ति को वह किस तरह देखती हैं...नृत्य के साथ पेश करेंगी। क्या खास होगा इस प्रेम उत्सव में...शरण्या चंद्रन की नृत्य यात्रा और दिल्ली...प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आपकी मां गीता चंद्रन इतनी बड़ी कलाकार हैं, उनसे नृत्य-संगीत का प्रशिक्षण कैसे मिला?

    -हंसते हुए... मैंने चार साल की उम्र में प्रशिक्षण शुरू किया था। उसी समय मां ने नाट्य वृक्ष की स्थापना की थी। मुझे किसी तरह की अतिरिक्त सहुलियत ना मिले, इसलिए उन्होंने अन्य बच्चों के साथ ग्रुप में शामिल किया। मां, कितनी सख्त रहीं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि मुझे कक्षा में पहुंचने में थोड़ी सी देरी हो जाती तो दरवाजे बंद हो जाते। फिर तो कक्षा खत्म होने के बाद ही प्रवेश मिलता। इस सख्ती के जरिए मां ने समय प्रबंधन का पाठ पढ़ाया।

    पहली प्रस्तुति तो आज तक जेहन में होगी?

    -हां, वैसे तो पांच-छह साल की उम्र में ही प्रस्तुति देनी शुरू कर दी थी। लेकिन 13 साल की उम्र में जैसे ओडिशी में मंच प्रवेश होता है वैसे ही भरतनाट्यम में अरंगेत्रम होता है। भरतनाट्यम की परंपरा है कि जब शिष्य एकल प्रस्तुति के लायक हो जाता है तो उसे गुरु के सामने फाइनल प्रस्तुति देना होती है, जिसे अरंगेत्रम कहा जाता है। इसके बाद गुरु प्रदर्शन से संतुष्ट होकर गुरु उन्हें एकल प्रस्तुति की आज्ञा देते हैं। इस तरह 13 साल की उम्र में मैंने पहली प्रस्तुति दी। पहली प्रस्तुति की शुरुआत भी दिल्ली के हैबिटेट सेंटर से हुई थी। डेढ़ घंटे तक एक के बाद एक प्रस्तुति थी। यह एक परीक्षा की तरह होता है। जिसमें पास होने के बाद कलाकार नृत्य संगीत समुदाय में शामिल हो जाता है।

    और मां के साथ मंच साझा करने का अवसर कब मिला? प्रस्तुति के वक्त कलाकार की तरह पेश आती हैं या मां की तरह?

    -करीब दस साल पहले पहली बार त्रिवेणी कला संगम में साथ प्रस्तुति दी थी। इसके बाद बेंगलुरु और दिल्ली में कई बार प्रस्तुति दीं। प्रस्तुति के दौरान उनसे प्रेरणा मिलती है। वो बहुत ही विनम्र हैं। प्रस्तुति से पहले व दौरान मेरे प्रति उनका व्यवहार एक प्रस्तुतिकर्ता की तरह ही होता है। बेटी की तरह बिल्कुल ट्रीट नहीं करतीं। हां, वो कई बार मेरे कोरियोग्राफी संबंधी इनपुट पर अमल भी करती हैं।

    लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई की, पॉलिसी प्रोफेशनल्स भी पढ़ रही हैं..तो दोनों विपरीत विषयों में संतुलन कैसे बनाती हैं?

    -बचपन में जब सड़कों के किनारे किसी गरीब को देखती तो उनके उत्थान के लिए सोचती। मेरी ख्वाहिश थी कि बड़े होकर कुछ ऐसा काम करूं जिससे समाज में बराबरी आए। इसलिए संगीत के साथ मैंने विभिन्न कोर्स किए। मैने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई की और नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी की संस्था से जुड़ी। मैं तमिलनाडू, पंजाब आदि सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही हूं। इसके तहत सरकारी योजनाओं में विभिन्न सुझावों के जरिए उन्हें और हितोपयोगी बनाने में मदद करती हूं।

    दिल्ली की कौन सी खासियत आपके दिल के करीब है?

    -यह मेरा शहर है, मैं यही पली-बढ़ी हूं। हिंदी मीडियम सरदार पटेल स्कूल से पढ़ाई की। यहां के ऐतिहासिक स्मारकों से खास लगाव है। ये शहर एक तरह से नए और पुराने का संगम है...इसकी यही खूबसूरती मुझे बहुत लुभाती है। कुतुबमीनार के साथ आधुनिक रेस्त्रां का कंबिनेशन बहुत कम शहरों में देखने को मिलता है। पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली की हर गली, चौक अपने अंदर कहानियां समेटे हैं। मुझे चांदनी चौक की पराठे वाली गली बहुत पसंद है।

    वैलेंटाइन डे के दिन प्रस्तुति, यह महज संयोग या खास प्रयोजन?

    -वैलेंटाइन डे की वजह से ही हमने इस आयोजन का टाइटल भी ऐसा चुना। प्रेम की सब अलग व्याख्या देते हैं। मेरी प्रस्तुति अर्ध नारीश्वर है। यानी दो अलग-अलग अंग, लेकिन एक-दूजे में प्राण समाए हैं। इसी भावना को मंच पर अभिव्यक्त करूंगी। दूसरी व तीसरी प्रस्तुति में भी प्रेम के रंग दिखेंगे। इसमें शिव वृहदेश्वर के प्रेम में डूबी नायिका अपनी सखी से कहती है, ‘हे कमलनयनी सखी, यह समय प्रेम के लिए कितना अनुदकूल है। मेरे प्रिय को मेरे पास ले आओ। मैं अद्वितीय वृहदेश्वर से एकाकार हो जाना चाहती हूं। क्या तुम्हें मुझ पर दया नहीं आती? शीघ्रता से जाओ।

    कोयल लगातार खुशी के गीत गा रही है...उसकी यह खुशी...मेरे वियोग को बढ़ा रही है। क्या तुम मेरे लिए वृहदेश्वर को नहीं पुकार सकती हो? ये पुष्पों के तीर मुझे भेद रहे हैं। कृपया जाओ और मेरे इष्टदेव को मेरे पास ले आओ। वहीं कटाना भेदन में विद्यापति ने शिव के स्वरूप का वर्णन किया है। विद्यापति ने इसमें राधा को मुख्य चरित्र बनाया है जो कृष्ण की प्रतीक्षा करते समय कामदेव के बाणों का शिकार हो गई हैं। यह पीड़ा उनके लिए असहनीय होती जा रही है। वह कामदेव पर दोषारोपण करती हैं कि उन्होंने उसे शिव समझ लिया। इस क्रम में वह शिव से तुलना करते हुए अपने सौंदर्य का वर्णन करती हैं। वह बताती हैं कि शिव और उसका सौंदर्य कितना भिन्न है।

    आज होने वाली प्रस्तुति लव इन द टाइम ऑफ कामा के बारे में कुछ बताइए?

    -यह बहुत ही यूनिक कांसेप्ट पर आधारित है। आमतौर पर भरतनाट्यम में दक्षिण भारतीय भाषा या फिर संस्कृत का समावेश होता है लेकिन हम विद्यापति के मैथिली में लिखे जीवन जीने के दो प्रेरणात्मक पदों का प्रयोग करेंगे। जो बयां करते हैं कि अर्ध नारीश्वर , शिव और शक्ति कैं। इन्हें अलग नहीं देखा जाए, ये एक ही हैं। विद्यापति लिखते हैं कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं...प्राण हैं। इसमें विद्यापति ने स्त्री व पुरुष और योग व भोग, पौरुष व स्त्रीत्व और निर्माण एवं विनाश के बीच अनूठे संतुलन को जीवंत किया है। मूलत: इनका अस्तित्व पृथक होता है, जो धीरे-धीरे एकाकार होते जाते हैं। इसके अलावा वरनम और कटाना भेदन की प्रस्तुति भी खास होगी।

    comedy show banner
    comedy show banner