नामी सेलिब्रिटीज को सुरक्षा देने वाली मेहरून्निशा आर्थिक संकट में, रूढ़ियों को तोड़कर बनीं हैं बाउंसर
Mehrunnisha मेहरून्निशा का दावा है कि वह देश की पहली महिला बाउंसर हैं। उनका पूरा नाम मेहरून्निशा शौकत अली है। शौकत अली उनके पिता का नाम है। उनका परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का रहने वाला है।

नई दिल्ली [राहुल चौहान]। रूढ़ियों को तोड़कर बाउंसर बनीं मेहरून्निशा लगभग एक साल से बेरोजगारी का दंश झेल रही हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उनकी नौकरी चली गई थी, तब से वह बेरोजगार हैं। लॉकडाउन लगने से पहले तक वह हौज खास के एक रात्रि पब में बाउंसर के तौर पर काम करती थीं। पब में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ या झगड़ा होने पर वह उन्हें सुलझाती थीं, लेकिन इन दिनों आर्थिक संकट के चलते उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मेहरूनिशा की उलब्धि यह भी है उन्होंने दिल्ली से लेकर मुंबई तक में बड़ी-बड़ी हस्तियों को अपनी सुरक्षा दी है। मेहरून्निशा के मुताबिक, बाउंसर के तौर पर काम करने के दौरान उन्हें कई बार मुंबई जाने का भी मौका मिला, जहां उन्होंने कई कार्यक्रमों में मेहमान के तौर पर आईं फिल्म अभिनेत्री विद्या बालन, प्रियंका चोपड़ा और प्रीति जिंटा की सुरक्षा में भी काम किया।
देश की पहली महिला बाउंसर होने का करती हैं दावा
मेहरून्निशा का दावा है कि वह देश की पहली महिला बाउंसर हैं। उनका पूरा नाम मेहरून्निशा शौकत अली है। शौकत अली उनके पिता का नाम है। उनका परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का रहने वाला है। पिता इंटीरियर डिजाइनर का काम करते थे। व्यवसाय में घाटा होने के बाद उन्हें अपनी संपत्ति बेचकर दिल्ली आना पड़ा। करीब 20 साल पहले उनका परिवार दिल्ली आ गया था। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मेहरून्निशा के कंधे पर घर की जिम्मेदारी भी आ गई।
2004 में शुरू की बाउंसर की नौकरी
स्वभाव से मृदुभाषी मेहरून्निशा ने वर्ष 2004 में बाउंसर के तौर पर नौकरी शुरू की। तब मेहरून्निशा 10वीं कक्षा में पढ़ती थीं। उन्होंने बताया कि उस समय महिला बाउंसर का चलन नहीं था। लोग उन्हें भी सिक्योरिटी गार्ड ही समझते थे। सिक्योरिटी गार्ड कहने पर उन्हें बुरा लगता था। लेकिन इसके लिए उन्होंने आवाज उठानी शुरू की। अब धीरे-धीरे महिला बाउंसर का चलन बढ़ने से लोग इज्जत देने लगे हैं। नौकरी के साथ ही उन्होंने एमए किया।
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सेना में भर्ती होना चाहतीं थीं
मेहरून्निसा सात भाई बहनों में दूसरे नंबर की हैं। वह बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें सेना या पुलिस में भर्ती होने का शौक था। लेकिन पारंपरिक मुस्लिम परिवार से होने के कारण उनके पिता को यह पसंद नहीं था। उनके पिता कहते थे कि लड़कियों के लिए यह नौकरी ठीक नहीं है। इसके बावजूद वह एनसीसी में शामिल हो गईं। पुलिस में भर्ती होने के लिए तैयारी भी की। उन्होंने यूपी पुलिस की उपनिरीक्षक की परीक्षा भी पास कर ली थी। लेकिन पिता के मना करने पर नौकरी नहीं की। इसी बीच सड़क दुर्घटना में उनकी बड़ी बहन का पैर टूट गया। इस वजह से उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया। अब मेहरून्निशा के कंधों पर माता-पिता के साथ ही बहन और उनके तीन बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी आ गई। उनके तीनों भाई अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं। मेहरून्निशा अपनी दो बहनों, माता-पिता और बहन के बच्चों के साथ दक्षिणी दिल्ली के मदनगीर इलाके में रहती हैं। फिलहाल उनकी छोटी बहन तरन्नुम ही नौकरी करती हैं, जिससे सहारे घर का खर्च चलता है।
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सिक्योरिटी एजेंसी शुरू करना चाहती हैं मेहरून्निशा
बेरोजगारी से जूझते हुए वह अपनी खुद की सिक्योरिटी एजेंसी शुरू करने में लगी हुई हैं। इसके लिए मर्दीनी सिक्योरिटी के नाम से उन्होंने लाइसेंस भी बनवा लिया है, लेकिन अब आगे का काम करने लिए पैसे की कमी आड़े आ रही है। मेहरून्निशा कहती हैं कि वह अपनी सिक्योरिटी के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर व अपनी और दूसरों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाना चाहती हैं। वह कहती हैं, ‘जब तक सफलता नहीं मिलेगी तब तक मैं संघर्ष करती रहूंगी।’
जिम्मेदारियों की वजह से नहीं कर सकी हैं शादी
परिवार की जिम्मेदारी के कारण 35 वर्षीय मेरून्निशा ने अभी तक शादी नहीं की है। हृदयाघात के कारण उनके पिता भी अब कोई काम करने में सक्षम नहीं हैं।
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