वेंकटरमन राधाकृष्णन: न्यूट्रान तारों को जानने वाले खगोल भौतिक विज्ञानी के बारे में...
खगोल भौतिकीविद वेंकटरमन राधाकृष्णन का जन्म उस परिवार में हुआ था जिसमें दो नोबेल पुरस्कार विजेता थे। एक उनके पिता सीवी रमन और दूसरे उनके चचेरे भाई सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर। हालांकि वेंकटरमन ने खगोल भौतिक विज्ञानी (एस्ट्रोफिजिसिस्ट) के तौर पर उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा है।
नई दिल्ली, फीचर डेस्क। वेंकटरमन राधाकृष्णन नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन के बेटे और नोबेल पुरस्कार विजेता सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के चचेरे भाई थे। हालांकि वे अपने आप में एक प्रसिद्ध खगोल भौतिकीविद भी थे। दुनिया उन्हें रेडियो खगोल विज्ञान और पल्सर (न्यूट्रान तारे) पर कार्य करने के लिए जानती हैं। उनका जन्म 18 मई, 1929 को मद्रास में हुआ था। उनके पिता भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता थे। उन्होंने 1950 में मैसूर विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक किया। इसके बाद एम्सटर्डम विश्वविद्यालय से 1996 में डाक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त की।
खगोल भौतिकीविद के तौर पर सफर: शुरुआत में उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस, बेंगलुरु में रिसर्च स्कालर के तौर पर कार्य करना शुरू किया था। फिर वे 1955 में 26 वर्ष की आयु में स्वीडन के चल्मर्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में रिसर्च असिस्टेंट के पद पर कार्य करने लगे। जहां उन्होंने इंटरस्टेलर स्पेस में हाइड्रोजन के अवलोकन पर कार्य किया। हालांकि वे यहां तीन वर्ष में ही धाराप्रवाह स्वीडिश बोलने लगे थे। इसके बाद वे 1958 में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (कैलटेक) चले गए, जहां उन्होंने सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में कार्य किया।
कैलटेक में उन्होंने ओवेंस वैली रेडियो आब्जर्वेटरी में रेडियो तरंगों और रेडियो इंटरफेरोमेट्री के ध्रुवीकरण पर कार्य किया। उनकी टीम ने सबसे पहले बृहस्पति ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र की गणना की। उन्होंने आकाशगंगा में परमाणु हाइड्रोजन को समझने पर भी काम किया। फिर 1965 में वे सिडनी (आस्ट्रेलिया) के कामनवेल्थ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गेनाइजेशन के रेडियो फिजिक्स विभाग से जुड़ गए। पार्क्स आब्जर्वेटरी में वे बड़ी परियोजनाओं में शामिल थे। उन्होंने ब्रह्मांड में हाइड्रोजन पर अध्ययन किया था। राधाकृष्णन और उनके सहयोगियों ने वेला नामक पल्सर का भी अध्ययन किया। पल्सर चुंबकीय घूर्णन न्यूट्रान तारे हैं, जो पल्सर में विद्युत चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करते हैं। उनके कार्य ने यह स्थापित करने में मदद किया कि ये चुंबकीय रूप से चार्ज होते हैं, जिससे न्यूट्रान तारों के प्रति बेहतर समझ विकसित हुई। उनके व्यापक कार्यों ने उन्हें पल्सर पर दुनिया के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक बना दिया।
भारत में कार्य और विरासत: 1970 में सीवी रमन की मृत्यु के बाद वे वापस भारत लौट आए। फिर 1972 में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के साथ निदेशक के रूप में जुड़े। उनके नेतृत्व में आरआरआइ ने वैज्ञानिक अनुसंधान में तेजी से कदम उठाए, खासकर रेडियो खगोल विज्ञान में। पुणे में जाइंट मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) स्थापित करने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। इसके लिए आरआरआइ में ही महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्माण किया गया था।
उन्होंने ऊटी में रेडियो टेलीस्कोप के साथ गौरीबिदनूर (कर्नाटक) और मारीशस रेडियो वेधशालाओं के निर्माण के लिए भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु के साथ सहयोग किया। इसके बाद उन्होंने 1994 में आरआरआइ से इस्तीफा दे दिया, लेकिन 2011 में अपनी मृत्यु तक प्रोफेसर एमेरिटस के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विज्ञान समितियों में भी कार्य किए, जिनमें अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (आइएयू) के उपाध्यक्ष के रूप में एक कार्यकाल (1988-1994) भी शामिल है, जो दुनियाभर के पेशेवर खगोलविदों का एक समूह है। इसके अलावा, वे यूएस नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज और रायल स्वीडिश एकेडमी के भी विदेशी फेलो थे। तीन मार्च, 2011 को हृदय संबंधी बीमारियों की वजह से उनका निधन हो गया।
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