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    ये है लेटतलीफ दिल्ली सरकार, 1997 में देखा ख्वाब 2018 में हुआ साकार

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    Updated: Sun, 04 Nov 2018 08:16 AM (IST)

    शीला सरकार ने 2004 में इस पुल की योजना बनाई। 2013 में शीला दीक्षित सरकार चली गई, लेकिन यह ब्रिज पूरा नहीं हो पाया। 2015 में केजरीवाल सरकार ने काम आगे ...और पढ़ें

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    ये है लेटतलीफ दिल्ली सरकार, 1997 में देखा ख्वाब 2018 में हुआ साकार

    नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। जिस सिग्नेचर ब्रिज का रविवार को उद्घाटन होने जा रहा है, उसकी रूपरेखा 1997 में बनी थी। मगर दिल्ली में सरकार बदलने के चलते यह योजना पहले कई साल तक ठंडे बस्ते में चली गई। बाद में तमाम बदलाव के बाद से योजना फिर अस्तित्व में आई और अब यमुना पर पुल पर सिग्नेचर ब्रिज बनकर तैयार है। दिल्ली में बढ़ते यातायात के दबाव के चलते यहां पर पुल तो बनाना ही पड़ता, मगर इस पुल की जिस तरह रूपरेखा बनी वह दर्द भरी कहानी है।

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    उस समय हुई घटना को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। समय भले ही बीत गया हो मगर जिन्होंने उस हादसे में अपने बेटे, बेटी व भाई खोए थे उनके दिलों में आज भी वह दर्द जिंदा है। पुल के निर्माण के अतीत में जाएं तो वह 18 नवंबर 1997 की सुबह थी। रोजाना की तरह अपने मम्मी-पापा को बाय-बाय करते हुए यमुना विहार व भजनपुरा, गांवड़ी आदि के बच्चे एक बस में सवार होकर घर से निकले थे। ये बच्चे सिविल लाइन स्थित लुडलो कैसल नंबर दो के थे।

    बच्चों को बस में बैठाए हुए मुश्किल से 15 मिनट ही हुए थे कि परिजनों को सूचना मिली कि लुडलो कैसल स्कूल की बस वजीराबाद पुल से यमुना में गिर गई है। इसमें 28 बच्चों की मृत्यु हो गई थी। यमुना विहार निवासी केके शर्मा अपने बेटे राहुल शर्मा को उस घटना को याद कर कहते हैं कि उनका बेटा आज होता तो 29 साल का हो गया होता। मेरे लिए सहारा बनता। मगर होनी को कौन टाल सकता है।

    वजीराबाद में यमुना के किनारे बने स्मारक पर वे लोग हर साल 18 नवंबर को एकत्रित होते हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छा है कि आज यह ब्रिज बनकर तैयार हो गया है। यह पहले ही बन जाना चाहिए था, लोगों को बहुत परेशानी हो रही थी। अब सभी लोगों को आसानी होगी। वह कहते हैं कि उस समय के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने वजीराबाद में पुराने पुल के साथ नया पुल बनाने की घोषणा की थी। मगर उसके बाद उनकी सरकार चली गई थी।

    काफी वक्त बदल गया, कई मंत्री बदल गए

    भाजपा के साहिब सिंह वर्मा के नेतृत्व वाली सरकार चली गई तो कांग्रेस की सरकार आई। कांग्रेस की शीला सरकार ने 2004 में इस पुल की योजना बनाई। 2013 में दिल्ली से काग्रेस की शीला दीक्षित सरकार चली गई। लेकिन यह ब्रिज फिर भी पूरा नहीं हो पाया। दिल्ली में शीला दीक्षित के बाद 2013 में अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। उसके बाद राष्ट्रपति शासन लगा। अरविंद केजरीवाल 2015 में दोबारा मुख्यमंत्री बने। केजरीवाल सरकार में पर्यटन मंत्री बने जितेंद्र सिंह तोमर, कपिल मिश्रा और उसके बाद राजेंद्र पाल गौतम ने भी इस काम को आगे बढ़ाने की कोशिश की। बाद में मनीष सिसोदिया ने इस पर तेजी से काम आगे बढ़ाया और इसे पूरा कराया।

    सिग्नेचर ब्रिज के मुख्य पिलर की ऊंचाई 154 मीटर है। ब्रिज पर 19 केबल हैं, जिन पर ब्रिज का 350 मीटर भाग बिना किसी पिलर के रोका गया है। पिलर के ऊपरी भाग में चारों तरफ शीशे लगाए गए हैं। लिफ्ट के जरिए जब लोग यहा पहुंचेंगे तो उन्हें यहा से दिल्ली का टॉप व्यू देखने को मिलेगा। परियोजना पर 14 साल में काम पूरा हुआ है। वर्ष 2004 में यह योजना बनाई गई थी, जिसे 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों से पहले पूरा किया जाना था।

    इस परियोजना पर शुरू में 464 करोड़ की धनराशि निर्धारित की गई थी, लेकिन कुछ बदलाव के बाद योजना की लागत 2007 में दिल्ली सरकार ने 1100 करोड़ रुपये कर दी थी। अब इस परियोजना की राशि 1518.37 करोड़ रुपये पहुंच गई। ब्रिज करीब 700 मीटर लंबा हे, जिसमें दोनों ओर चार-चार लेन हैं। यह 35.2 मीटर चौड़ा है।