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    जानिए कौन हैं तिलका मांझी, धनुष-बाण से लड़ा था अंग्रेजों से युद्ध

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Sat, 01 Jan 2022 07:39 PM (IST)

    सन् 1857 की क्रांति से पहले संथाल परगना के जंगली पहाड़ी इलाकों में छिपकर आदिवासियों ने अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ लड़ाइयां लड़ी थीं। संथाल क्रांतिकारी तिलका मांझी इसी लड़ाई में एक नायक बनकर उभरे थे। उनका जन्म 11 फरवरी 1750 को भागलपुर जिले के तिलकपुर गांव में हुआ था।

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    जानिए कौन हैं तिलका मांझी, धनुष-बाण से लड़ा था अंग्रेजों से युद्ध

    नई दिल्ली। सन् 1857 की क्रांति से पहले संथाल परगना के जंगली पहाड़ी इलाकों में छिपकर आदिवासियों ने अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ लड़ाइयां लड़ी थीं। संथाल क्रांतिकारी तिलका मांझी इसी लड़ाई में एक नायक बनकर उभरे थे। उनका जन्म 11 फरवरी, 1750 को भागलपुर जिले के तिलकपुर गांव में हुआ था। मात्र 18 वर्ष की आयु में इस वनवासी युवक ने संथाल परगना क्षेत्र से अन्यायी ब्रिटिश सरकार की दमनकारी व्यवस्था से खुलकर संघर्ष किया। जब अंग्रेजी सरकार की दमनकारी प्रवृत्तियों और उसके जुल्म से आदिवासी परेशान हो गए, तब तिलका मांझी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भागलपुर और संथाल परगना के पहाड़ी इलाकों में छिपकर अंग्रेजों से छापामार लड़ाइयां लड़ीं। उनके हमलों से परेशान होकर अंग्रेज अधिकारी क्लीवलैंड ब्रिटिश फौज लेकर उन्हें पकड़ने के लिए आया।

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    ब्रिटिश फौज तोपों और बंदूकों से लैस थी, जबकि तिलका मांझी की सेना के हथियार के मात्र तीर-धनुष ही थे, फिर भी ब्रिटिश सेना को मुंह की खानी पड़ी। एक दिन क्लीवलैंड घोड़े पर सवार होकर जंगल से जा रहा था। तिलका मांझी पहले से ही रास्ते में ताड़ के पेड़ पर बैठकर धनुष-बाण लेकर उसकी प्रतीक्षा करने लगे। जैसे ही क्लीवलैंड का घोड़ा पेड़ के नीचे आया, तिलका मांझी ने निशाना साधकर तीर से उसकी छाती को वेध दिया। क्लीवलैंड की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।

    इस घटना से ब्रिटिश सरकार तिलमिला गई। उसने एक बड़ी फौज लेकर भागलपुर की उस पहाड़ी को घेर लिया, जहां तिलका मांझी साथियों के साथ अंग्रेजों से युद्ध की योजनाएं बनाया करते थे। तिलका मांझी और उनके साथियों ने ब्रिटिश सेना से जमकर संघर्ष किया। इस लड़ाई में लगभग 300 वनवासी शहीद हो गए, जिनमें तिलका के परिवार के लोग भी थे। अंत में ब्रिटिश फौज ने तिलका मांझी को धोखे से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें यातनाएं दीं। घोड़े से बांधकर उन्हें भागलपुर की सड़कों पर सरेआम घसीटा गया। फिर मरणासन्न स्थिति में बरगद के पेड़ पर लटका दिया,जहां इस वीर ने अपने प्राण त्याग दिए।

    तिलका मांझी जहां शहीद हुए, आजादी के बाद भागलपुर शहर में उस जगह का नाम तिलका मांझी चौक रखा गया। उस चौक पर उनकी विशाल प्रस्तर प्रतिमा खड़ी है-आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रहित में बलिदान देने की प्रेरणा देती हुई।

    (प्रभात प्रकाशन की पुस्तक 'क्रांतिकारी किशोर' से संपादित अंश)