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    पढ़िए- दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी से हारे छात्र विनायक की दर्दनाक स्टोरी

    दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्त होता है। यह लाइलाज बीमारी है जिसकी चपेट में आकर 26 मार्च को छात्र विनायक श्रीधर का निधन हो गया।

    By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 08 May 2019 03:19 PM (IST)
    पढ़िए- दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी से हारे छात्र विनायक की दर्दनाक स्टोरी

    नोएडा, जेएनएन। 16 वर्षीय विनायक श्रीधर के भी आसमान में उड़ने के सपने थे। वे अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनकर दुनिया को देखना चाहते थे। उनका 26 मार्च को ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की बीमारी से निधन हो गया। वह सेक्टर-44 स्थित एमिटी इंटरनेशनल स्कूल में दसवीं के छात्र थे। उन्होंने हाल ही में हुए सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में हिस्सा लिया था। तीन विषयों के पेपर भी दिए। चौथे पेपर से पहले उनका देहांत हो गया। सोमवार को जारी परिणामों में उनको अंग्रेजी में 100, विज्ञान में 96 और संस्कृत में 97 अंक मिले, जबकि कंप्यूटर साइंस और सोशल स्टडीज की परीक्षा नहीं दे पाए। वह वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग को आदर्श मानते थे।

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    विनायक का परिवार सेक्टर-45 में रहता है। पिता श्रीधर जीएमआर कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत हैं। मां ममता गृहणी हैं। बड़ी बहन वैष्णवी यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया से पीएचडी की पढ़ाई कर रही हैं। विनायक जब दो वर्ष के थे, तब से उनको ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी की समस्या थी। दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्त होता है। यह लाइलाज बीमारी है।

    श्रीधर बताते हैं कि इसमें बच्चा जैसे बड़ा होता जाता है, बीमारी बढ़ने लगती है। विनायक जब सात वर्ष का हुआ, उसने चलना छोड़ दिया था। व्हील चेयर के जरिये ही वह सारा काम करते थे। हाथ भी बहुत धीरे-धीरे काम करते थे। वह बताते हैं कि विनायक को पढ़ाई का बहुत शौक था। वह बड़े होकर अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनना चाहते थे। हाईस्कूल की परीक्षा के लिए उन्होंने काफी तैयारी की थी।

    उन्होंने परीक्षा में सामान्य श्रेणी के चिल्ड्रन विद स्पेशल नीड (सीडब्ल्यूएसएन) वर्ग में हिस्सा लिया था। लिखने में हाथ की गति काफी धीमी थी, लेकिन दिमाग बहुत तेज था। संस्कृत उनका पसंदीदा विषय था। इसे उन्होंने खुद अपने हाथों से लिखा, जबकि अंग्रेजी और विज्ञान के लिए सहायक का सहारा लिया।

    पिता ने बताया कि विनायक काफी धार्मिक थे। वह परीक्षा खत्म होने के बाद कन्याकुमारी स्थित रामेश्वरम मंदिर दर्शन को जाना चाहते थे। वह अक्सर कहते थे जब स्टीफन हॉकिंग दिव्यांग होकर ऑक्सफोर्ड जा सकते हैं और विज्ञान की दुनिया में इतिहास रच सकते हैं तो वह भी अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनेंगे। वह आश्वस्त थे कि परिणाम आने पर वह टॉपरों में अपनी जगह बनाएंगे। श्रीधर ने बताया कि वह विनायक की इच्छा को पूरा करने के लिए हाईस्कूल के परिणाम के दिन रामेश्वरम पहुंच गए थे।

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