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कैसी होनी चाहिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की स्थिति, ट्रैक्स रोड सेफ्टी संस्था की महासचिव ने बताया

रोजाना ही सैकड़ों सड़क दुर्घटनाएं पैदल चलने वालों के साथ होती हैं। चूंकि पैदल चलने की जगह वाहनों का रास्ता बन गई है। अतिक्रमण की जद में आकर फुटपाथ सिमट गए हैं। सड़क परियोजनाओं में पैदल चलने के रास्ते को प्राथमिकता ही नहीं दी जाती।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 12:01 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 12:01 PM (IST)
कैसी होनी चाहिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की स्थिति, ट्रैक्स रोड सेफ्टी संस्था की महासचिव ने बताया
सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की स्थिति। इलस्ट्रेशन: अवधेश

नई दिल्ली। वाहनों से चलने वालों की तुलना में कहीं अधिक संख्या पैदल चलने वालों की है। हर जगह में पैदल चलने वालों की मूलभूत आवश्यकताएं एक जैसी ही हैं। मसलन फुटपाथ सड़क से कितनी ऊंचाई पर हो, कितना चौड़ा हो इत्यादि। यह करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ मसला है, पर निराशाजनक बात यह है कि अभी तक फुटपाथ या पैदल चलने वाले लोगों को ध्यान में रखते हुए कोई एक राष्ट्रीय कानून और मानक नहीं बनाया गया है। यह रवैया दर्शाता है कि प्रदूषण को कम करने तथा स्वस्थ रहने के लिए पैदल चलने की बात करने वाली सरकारें असल में पैदल यात्रियों को सुरक्षित और आरामदेह फुटपाथ मुहैया कराने को लेकर कितनी संवेदनशील हैं।

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आज तक इसे लेकर न तो कोई स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं और न ही कोई मापदंड तय है। अव्वल तो अधिकतर सड़कों पर फुटपाथ दिखेंगे ही नहीं, जहां दिखेंगे वहां इसके साथ बस स्टैंड, जेब्रा क्रासिंग, फुटओवर ब्रिज तथा भूमिगत पैदल पार पथ के निर्माण में निश्चित ही कोई न कोई खामी मिलेगी, जिसके चलते पैदल चलने वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ती हैं और वह इससे बचने लिए सड़क पर ही चलना बेहतर समझते हैं। जबकि सड़क पर पैदल चलना आत्मघाती है।

तय मानक का होना जरूरी

ये दिक्कत तो सामान्य इंसान की है फिर बुजुर्ग, दृष्टिबाधित, गर्भवती और बच्चों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इनके लिए तो फुटपाथ का होना अतिआवश्यक है। अगर दृष्टि बाधित के लिए फुटपाथ पर स्पर्शनीय फर्श न हो या सामने कोई बूथ या बिजली का खंभा आ जाए, दिव्यांग को फुटपाथ पर चढ़ने-उतरने के लिए रैंप नहीं हो तो फिर उनके लिए यह किस काम का। ऐसे में सबसे पहले पैदल यात्रियों की सुविधा व सुरक्षा पर केंद्रित एक केंद्रीय कानून बनाया जाना चाहिए। उसमें फुटपाथ के निर्माण और उनके रखरखाव को लेकर एक राष्ट्रीय मानक तय हो। इसमें फुटपाथ की ऊंचाई, लंबाई पर ध्यान देने के साथ ही अन्य सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाए। इसी तरह सड़क से फुटपाथ की दूरी, फुटपाथ और सड़क के बीच हरित पट्टी की मौजूदगी तथा दुकानों और सड़क के बीच फुटपाथ की निश्चित दूरी तय हो।

निर्माण संबंधी खामियों को करना होगा दुरुस्त

दिल्ली में बड़ी समस्या फुटपाथ, सड़क और डिवाइडर पर पांच से आठ फुट की ऊंचाई तक पेड़ों का होना भी है। यह महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा फुटपाथ पर धड़ल्ले से दो पहिया वाहन चलते हैं। वाहनों की पार्किंग होती है दुकानदार उन पर अतिक्रमण कर लेते हैं। दिक्कत यह है कि सिविक एजेंसियों में फुटपाथ के निर्माण को लेकर गंभीरता या योजना नहीं दिखती है। इसलिए अगर सड़क चौड़ा करना हो या शौचालय की आवश्यकता हो तो सबसे पहले निशाना फुटपाथ को ही बनाया जाता है। इसी तरह बस स्टैंड के निर्माण में भी खामियां देखने को मिलती है।

कई बस स्टाप इस तरह बने हैं, जहां तक बस पहुंचती ही नहीं है। ऐसे में बस पकड़ने के लिए लोग सड़कों पर खड़े होने को मजबूर होते हैं। कई रेड लाइट पर जेब्रा क्रासिंग, टेबल टाप तथा रिफ्यूज आइलैंड का निर्माण तक नहीं है। जहां निर्माण हुआ भी है तो वह अतिक्रमण का शिकार है या फिर उसके डिजाइन में खामियां हैं, जिसके चलते वह सड़क पार करने वाले लोगों के लिए महत्वहीन हो जाता है। इसी तरह बात अगर फुटओवर ब्रिज और अंडरपास की की जाए तो यह भी पैदल चलने वालों के लिए काफी मायने रखते हैं।

हाल के वषों में इनकी संख्या निश्चित ही बढ़ी है, पर अभी भी यह जरूरत से काफी कम है। इसके निर्माण में भी कई खामियां है, जिसके चलते लोग इनका इस्तेमाल करने की जगह वाहनों के बीच से सड़क पार करने को मजबूर होते हैं। पैदल यात्रियों की सुरक्षा के लिए इन तमाम दिक्कतों पर ध्यान देना होगा। इसके लिए जो भी कानून बने उसमें जुर्माने का भी प्रविधान हो ताकि लोग जुर्माना से डरें।

(ट्रैक्स रोड सेफ्टी संस्था की संस्थापक महासचिव रजनी गांधी से संवाददाता नेमिष हेमंत की बातचीत पर आधारित)


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