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    20th Bharat Rang Mahotsav 2019: एशिया का सबसे बड़ा नाटकों का मेला, होंगी 111 प्रस्तुतियां

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Sat, 02 Feb 2019 08:00 AM (IST)

    भारत रंग महोत्सव में थियेटर जगत के मंझे हुए अभिनेताओं की दमदार कलाकारी दिल में बैठ जाएगी। भारंगम में भारत ही नहीं, विदेश से आए कलाकार दमदार प्रस्तुति ...और पढ़ें

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    20th Bharat Rang Mahotsav 2019: एशिया का सबसे बड़ा नाटकों का मेला, होंगी 111 प्रस्तुतियां

    नई दिल्ली, जेएनएन। Bharat Rang Mahotsav (भारत रंग महोत्सव) यानी सुर... लय... ताल... डायलॉग... लाइट कैमरा और एक्शन हर पात्र इसी क्रम के साथ मंच पर उतरेगा, लेकिन हर बार आपके आसपास की, आपसे जुड़ी एक कहानी को नाटक के रूप में बेपर्दा करेगा। ऐसी कहानियां जो कभी रुलाएंगी... हंसाएंगी....हतप्रभ भी करेंगी। थियेटर जगत के मंझे हुए अभिनेताओं की दमदार कलाकारी दिल में बैठ जाएगी। भारंगम में भारत ही नहीं, विदेश से आए कलाकार दमदार प्रस्तुति देंगे। दिल्ली समेत छह शहरों में होने वाले इस महोत्सव में दिल्ली की धमक तो दिखेगी, पहली बार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय मैथिली नाटक का मंचन भी करा रहा है।

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    कहीं इसीलिए तो क्रूर नहीं बन बैठा था कंस

    क्या कभी किसी ने कंस जैसे पात्र को इस तरह से देखा या सोचा है कि वह जन्मजात ऐसा था या परिस्थितियों ने उसे ऐसा बना दिया। जी, वही इतिहास के प्रचलित महानायकों में से एक कंस। जो कि महात्वाकांक्षी शासक ही नहीं असंवेदनशील मनुष्य भी था। जब भी कंस का जिक्र होता है तो जेहन में क्रूर, खतरनाक, दैत्य का ही चेहरा सामने आता है। दुराचारी कंस, जिसने अपनी बहन के बच्चों तक की हत्या कर दी। आखिर वह कौन से कारण थे, जिनकी वजह से कंस अपनी ही बहन के बच्चों से नफरत करने लगा। ऐसा क्या हुआ कि कंस की भावनाएं मर गईं और वह इतिहास का सबसे क्रूर शासक बन बैठा। दया प्रकाश सिन्हा के लिखे इस रिसर्च ड्रामा में कंस, राजा के रूप का बखान करते हुए एक बारगी यह भी कहेगा कि ‘पुरुष वहीं है जो हत्या करे। रक्तपात में हर्षित हो। हिंसा की हुंकार में जीवन संगीत ढूंढ़े। निर्मम, क्रूर, बर्बर, अंधा, बहरा..ऐसा होता है पुरुष’। फ्लैश बैक में चलने वाले इस नाटक में कंस के बर्बर होने का कारण तलाशा गया है। कंस को बचपन में वीणा का शौक था पर उसे सख्त शासक बनाने के लिए उसके अभिभावक उसकी कला को दबा देते हैं। कंस का विवाह भी राजनैतिक लाभ के तहत होता है। वहीं, वह निरंकुश शासन के लिए अपने परिवारीजनों को भी कैद करवाता है। कुल मिलाकर नाटक कंस की जिंदगी के कम जाने-अनजाने पक्ष को दर्शाता है।

    भगवान से सवाल...शीशे के खिलौने हूं क्या मैं?

    अजीज के दिल में कहीं कवि छिपा बैठा होता है। उन्हें लिखने का खूब शौक है। लेकिन मजबूरी है, परिवार चलाने की तो वो एक फैक्ट्री में काम करते हैं, उनके एक पैर में भी दिक्कत है। अपनी मां नफीसा और बहन लुबना की सहायता वो दिल से करना चाहते हैं। अजीज के पिता कई साल पहले भाग गए थे। पारिवारिक दायित्वों को निभाने के दौरान नफीसा एक दिन अजीज से बहन लुबना के लिए अच्छा रिश्ता तलाशने को कहती हैं। अजीज एक दिन अमजद नाम के शख्स को घर ले आते हैं जो लुबना के साथ ही पढ़ाई करता है। लेकिन बातचीत के दौरान अमजद बताता है कि वो एक अन्य लड़की से मोहब्बत करता है। यह कहकर वो चला जाता है। इस बीच अजीज अपनी दिलीइच्छा जाहिर करते हुए कहते हैं कि वो मर्चेंट नेवी ज्वाइन करना चाहते हैं। इसके बाद से ही मां बहुत ही मायूस हो जाती है एवं बेटे के प्रति मोहभंग हो जाता है। लुबना को शीशे के खिलौने रखने का बहुत शौक है, एक दिन उसके खिलौने अमजद तोड़ देता है। इस घटना के बाद अजीज तो घर छोड़कर चला जाता है लेकिन अंदर ही अंदर उसे घर की याद सालती रहती है। जब सालों बाद अजीज अपने घर लौटता है तो बहुत कुछ बदला नजर आता है। इसके बाद जानने के लिए आपको नाटक देखना होगा। नाटक में लुबना द्वारा उठाया गया यह सवाल दिल की छू लेता है कि जैसे लुबना अपने खिलौने की देखभाल करती है वैसे भगवान क्यों नहीं सभी की देखभाल करते? भगवान क्यों हमें मुश्किल घड़ी में अकेला छोड़ देते हैं?