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    Delhi: लोदी काल में मजबूत हुई गंगा-यमुनी तहजीब की डोर, हिंदू परंपरा का किया निर्वाह

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Fri, 17 Jul 2020 06:32 PM (IST)

    लोदी वंश ने दिल्ली सल्तनत पर वर्ष 1451 से 1526 तक शासन किया। बहलोल लोदी के बाद सिकंदर लोदी इब्राहिम लोदी ने शासन किया।

    Delhi: लोदी काल में मजबूत हुई गंगा-यमुनी तहजीब की डोर, हिंदू परंपरा का किया निर्वाह

    नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। खिज्र खां ने सैय्यद वंश की स्थापना की। सैय्यद काल के प्रमुख शासकों में मुबारक शाह, मुहम्मद शाह और आलमशाह थे। आलमशाह 1451 बहलोल लोदी को सत्ता सौंप खुद यूपी के बदांयू चला गया। इस तरह लोदी युग आया।

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    लोदी वंश ने दिल्ली सल्तनत पर वर्ष 1451 से 1526 तक शासन किया। बहलोल लोदी के बाद सिकंदर लोदी, इब्राहिम लोदी ने शासन किया। सिकंदर लोदी का जन्म 17 जुलाई 1458 में हुआ था। हिंदू मां का सिकंदर लोदी पर बहुत प्रभाव पड़ा। शासकों ने भी हिंदू प्रतीक परंपरा का निर्वाह किया। इतिहासकार विक्रमजीत सिंह रूपराय कहते हैं कि वर्तमान में दिल्ली के स्मारकों में लोदी वंश का ही दबदबा है। लोदी वंश के शासन के दौरान बनी इमारतों का वास्तु भारतीयता को समेटे हैं।

    दिल्ली में सिकंदर लोदी का मकबरा, जमाली-कमाली, मस्जिद मोठ, राजों की बाइन बावली, मोहम्मदी वाली मस्जिद इसका उदाहरण है। बकौल विक्रमजीत सिंह यदि आप इन निर्माण कार्य को देखेंगे तो पाएंगे कि हिंदू प्रतीक बहुतायत मिलते हैं। दरअसल, लोदी शासक सल्तनत काल के अन्य शासकों से इतर थे। तुगलक, खिलजी ने हिंदू प्रतीकों से परहेज किया लेकिन लोदी शासकों ने कुछ हद तक अपनाया।

    इन्होंने बाकायदा अपने वास्तुकारों को इस बाबत निर्देश भी दिए थे। मसलन, निर्माण कार्य में फूल की पत्तियों की नक्काशी, कलश, पान की पत्ती की नक्काशी, आदि पर जोर दिया गया। हाथी के सूंड नुमा आकृति भी बनवाई। इसके अलावा आम, नीम के पत्ते वाली नक्काशी, गुलाब और गेंदे के फूल की नक्काशी भी लोदी वंश के शासकों द्वारा बनवाए गए भवनों में दिखती है।

    इसी तरह मस्जिद मोठी के बनने की कहानी भी दिलचस्प है। कहते हैं इसे गर्वनर मियां भोइया ने बनवाया। दरअसल, सुल्तान को एक दाल मिली थी, जिसने उसे मियां भोइया को दे दिया था। गर्वनर ने सोचा कि यह दाल खुद सुल्तान ने दी है तो इसे संभाल के रखें। उन्होने इसे अपने आवास परिसर के बगीचे में बो दिया। एक पेड़ से उन्हें 200 दानें मिले। उन्होंने फिर इन दानों को बो दिया। यह प्रक्रिया उन्होने अगले कुछ सालों तक दोहराई। जब तक कि अगले कुछ सालों में वो बड़े खेत में तब्दील नहीं हो गया। और फिर दाल को बेचकर प्राप्त धन से मस्जिद मोठ बनवाई गई।