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हरियाणा के इस दिग्गज नेता के आगे नहीं चली थी इंदिरा की, हारा था कांग्रेस का प्रत्याशी

वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस की तूती बोल रही थी लेकिन राव ने कुछ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई अपनी विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर कांग्रेस को हरा दिया था।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 01:32 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 01:56 PM (IST)
हरियाणा के इस दिग्गज नेता के आगे नहीं चली थी इंदिरा की, हारा था कांग्रेस का प्रत्याशी
हरियाणा के इस दिग्गज नेता के आगे नहीं चली थी इंदिरा की, हारा था कांग्रेस का प्रत्याशी

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। समय-समय का फेर है समय-समय की बात। किसी समय के दिन बड़े और किसी समय की रात। राजनीति में दिग्गजों के उतार-चढ़ाव भरे दिन इस कहावत को चरितार्थ करते रहे हैं। आज हम आपका उस दौर की घटना बता रहे हैं जब अहीरवाल के दिग्गज राव बिरेंद्र सिंह के सितारे चमक रहे थे। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस की तूती बोल रही थी, लेकिन राव ने कुछ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई अपनी विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर कांग्रेस को हरा दिया था। राव की हार सुनिश्चित करने के लिए खुद इंदिरा गांधी रेवाड़ी आई थी, लेकिन इंदिरा भी राव की जीत नहीं रोक पाईं।

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राव 24 मार्च 1967 से 2 नवंबर 67 तक 224 दिन संयुक्त विधायक दल के बल पर हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे थे। इसी दौर में उनकी कांग्रेस से अनबन हुई और उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी बना ली। हालांकि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की मौजूदगी में राव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था, लेकिन इससे पूर्व राव ने खुद की पार्टी बनाकर देश की राजनीति में अपने प्रभाव का जलवा दिखा दिया था। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने अतीत की यादों को जागरण से साझा करते हुए बताया कि उस समय पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र सिंह का रौब कुछ ज्यादा ही था।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय राव निहाल सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए आई थी। इंदिरा को देखने के लिए नारनौल रोड़ पर कई गांवों के लोग सड़कों के किनारे आकर खड़े हो गए थे। इंदिरा गांधी ने भी हाथ हिलाकर सभी ग्रामीणों का अभिवादन स्वीकार किया था। इस चुनाव में राव बिरेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर भी। विद्रोही बताते हैं कि मेरा गांव पाली है तथा उस समय मैं रेवाड़ी स्कूल में पढ़ने आता था। छुट्टी के बाद जब स्कूल से वापस घर जा रहा था तो मैंने देखा कि राव बिरेंद्र सिंह पैदल चलकर लोगों से वोट मांग रहे थे। संभवत: यह पहला और आखिरी मौका था जब राव ने पैदल चलकर वोट मांगे और वह जनता के दिलों पर राज करने में सफल भी रहे। कांटे के मुकाबले में राव बिरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राव निहाल सिंह को 1899 वोट से हराकर चुनाव में जीत दर्ज की थी। इंदिरा गांधी का प्रचार भी उन्हें हरा नहीं पाया था।

तब ऐसी थी राजनीतिक तस्वीर

वर्ष 1971 के चुनाव में हरियाणा में 9 लोकसभा सीटें थी। इनमें से कांग्रेस ने 7 व भारतीय जनसंघ ने जीती थी। कांग्रेस की लहर के बावजूद राव 1899 वोटों से अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। राव बिरेंद्र सिंह को 159125 व उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के निहाल सिंह को 157226 वोट मिले थे। तब कुल छह उम्मीदवार थे। चार की जमानत जब्त हो गई थी। मतदान 3 मई 1971 को हुआ था। 3 लाख 49 हजार 98 मतदाताओं ने मतदान किया था। 9067 वोट रद हो गए थे।

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