एक फौजी, जिसके दिल में था असीम प्यार, खुद को कहने लगे थे 'शेरखान'
हमारी पलटन (राजपूताना राइफल्स) में आकर देखिए। लंबे चौड़े जवान शाकाहारी हैं, वे अगर किसी का गला पकड़ लें तो छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। ...और पढ़ें

नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। एक फौजी, जो वीर था, योद्धा भी। उसके दिल में देश के लिए असीम प्यार था। गरीबों की मदद करने को आतुर। धर्म और जाति के बंधन से ऊपर। हम बात कर रहे हैं कारगिल शहीद कैप्टन विजयंत थापर की। विजयंत के पिता कर्नल (रिटायर्ड) वीएन थापर कहते हैं कि साहब (विजयंत) के मन में मदद करने का भाव बचपन से ही था। मैं दोनों भाइयों को सप्ताह में जेब खर्च के लिए पचास रुपये देता था। एक दिन देखा कि विजयंत ने एक गरीब आदमी को अपने जेब खर्च के पूरे रुपये दे दिए।
रुखसाना पढ़े-लिखे और आगे बढ़े
वीएन थापर बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकी ऑपरेशन के दौरान वह बच्ची रुखसाना की मदद को आगे आए। रुखसाना के पिता की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। विजयंत का सपना था कि रुखसाना पढ़े-लिखे और आगे बढ़े। इसीलिए उन्होंने अपने खत में उसकी मदद करने का वादा लिया था।
अच्छा अफसर वही होता है...
नोएडा के सेक्टर-29 में रह रहे वीएन थापर गर्व से बताते हैं कि रुखसाना कंप्यूटर चलाना सीख गई है। स्मार्ट फोन की उसकी ख्वाहिश भी पूरी हो गई है। वह बारहवीं में है। कुछ देर शांत रहने के बाद वह फिर कहते हैं, 'अच्छा अफसर वही होता है, जिसके मन में सहानुभूति हो, प्यार हो। दूसरों का सम्मान करे। ये गुण मेरे बेटे में थे।

भारतीय सेना साथ है
मई 1999 में कुपवाड़ा में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा था। जहां विजयंत रुके हुए थे उसके पास ही रुखसाना का घर था। करीब तीन साल की वह बच्ची डरी-सहमी रहती थी। बोल नहीं पाती थी। विजयंत रास्ते से गुजरते समय हाथ हिलाकर प्यार जताते, लेकिन बच्ची जवाब नहीं देती थी। गांव वालों ने उसके साथ हुई घटना की जानकारी दी। विजयंत उससे घुले-मिले। एहसास दिलाया कि भारतीय सेना उसके साथ है।
सेना मदद करती है
वीएन थापर कहते हैं कि 'मैं हर साल उस बच्ची से मिलता हूं। सेना उसकी मदद करती है। आर्थिक मदद के तौर पर रुखसाना को जब सिलाई मशीन देने की पेशकश की गई तो उसने कहा था कि उसे स्मार्ट फोन चाहिए। वह समय के साथ कदमताल कर सके इसलिए उसे कंप्यूटर दिया, जिसे सेना ने एसेंबल किया।'
नौवीं क्लास तक सारे हथियार चला चुके थे
विजयंत को बॉडी बिल्डिंग का शौक था। पलटन में पहलवानों के संग भी रहते थे। नौवीं क्लास में सारे हथियार चला चुके थे। उनका एयरफोर्स की तरफ रुझान था। फाइटर पायलट बनना चाहते थे। वह मां तृप्ता के ज्यादा करीब थे और दिल की बात मां से ही साझा करते थे। रुखसाना के बारे में मां को ही फोन पर बताया था। उन्हें मोगली सीरियल में शेरखान अच्छा लगता था। इस वजह से अपने को भी शेरखान कहते थे।

शाकाहारी भोजन पर देते थे जोर
वीएन थापर बताते हैं कि विजयंत शाकाहारी भोजन पर जोर देते थे। मैंने जब उनसे कहा कि फौज में हो, बिना नॉनवेज भोजन के ताकत कैसे आएगी तो उन्होंने कहा कि हमारी पलटन (राजपूताना राइफल्स) में आकर देखिए। लंबे चौड़े जवान शाकाहारी हैं, वे अगर किसी का गला पकड़ लें तो छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा।
13 जून को तोलोलिंग फतह कर कारगिल युद्ध में पहली विजय दिलाई थी
विजयंत थापर और उनकी बटालियन ने 13 जून को तोलोलिंग रेंज से दुश्मनों को खदेड़ कर युद्ध का रुख अपनी ओर मोड़ लिया था। यह विजय सेना के लिए अहम थी। इस पहाड़ी में छिपकर दुश्मन सीधे सेना और उसे सप्लाई होने वाली रसद को निशाना बना रहा था। कारगिल विजय में यह लड़ाई निर्णायक थी। 28-29जून 1999 की रात 22 साल की उम्र में विजयंत नॉल पहाड़ी पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए।

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