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    केरल भूस्खलन: जलवायु परिवर्तन से बढ़ी आपदा की तीव्रता, एक्सपर्ट ने दी कठोर मूल्यांकन की सलाह

    Updated: Wed, 14 Aug 2024 12:18 PM (IST)

    जलवायु परिवर्तन से आपदा की तीव्रता बढ़ गई है। विशेषज्ञों ने कठोर मूल्यांकन की सलाह दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तक दुनिया जीवाश्म ईंधनों से दूर होकर अक्षय ऊर्जा का प्रयोग नहीं करती तब तक मानसूनी बारिश और भी अधिक तीव्र होती रहेगी जिससे भूस्खलन बाढ़ और भारत में लोगों के लिए दुखदायी परिस्थितियां उत्पन्न होती रहेंगी।

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    केरल के वायनाड में भूस्खलन ने मचाई तबाही। फोटो- जागरण

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए घातक भूस्खलनों की मुख्य वजह बनी भारी बारिश, जिसे मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने 10 प्रतिशत अधिक तीव्र बना दिया था। वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) के प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक त्वरित विश्लेषण में यह जानकारी सामने आई है।

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    डब्ल्यूडब्ल्यूए की रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि उत्तरी केरल के पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन के जोखिम का कठोर आकलन और पहले से अधिक सक्षम चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचा जा सके। अध्ययन के अनुसार, एक दिन की भारी बारिश की घटनाएं, जो पहले दुर्लभ थीं, अब जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक सामान्य हो रही हैं।

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    30 जुलाई को केरल के वायनाड में हुई भारी बारिश

    घटना का विवरण 30 जुलाई को केरल के वायनाड जिले में हुई भारी बारिश ने क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया। एक दिन में 140 मिमी से अधिक बारिश हुई, जो लंदन की वार्षिक वर्षा के लगभग एक चौथाई के बराबर है। यह भारी बारिश पहले से ही भारी मानसून की बारिश से संतृप्त मिट्टी पर गिरी, जिससे कई क्षेत्रों में भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं हुईं।

    कम से कम 231 लोगों की गई जान

    इन भूस्खलनों में कम से कम 231 लोगों की जान चली गई, जबकि 100 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं और बचाव कार्य जारी है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव डब्ल्यूडब्ल्यूए के वैज्ञानिकों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण वायनाड में एक दिन में होने वाली मानसूनी बारिश लगभग 10 प्रतिशत अधिक भारी हो गई है।

    और बढ़ सकती हैं भारी बारिश की घटनाएं

    इस प्रकार की बारिश की घटनाएं, जो पहले अत्यंत दुर्लभ थीं, अब जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक सामान्य हो रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर विश्व ने जल्द ही जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग बंद नहीं किया, तो एक दिन की भारी बारिश की घटनाएं 4 प्रतिशत और बढ़ सकती हैं, जिससे और भी अधिक विनाशकारी भूस्खलन की घटनाओं का खतरा बढ़ जाएगा।

    भविष्य की चुनौतियां और सुझाव अध्ययन में यह भी पाया गया कि वायनाड जिले की मिट्टी केरल में सबसे अधिक ढीली और अपरदनशील है, जिसके कारण मानसून के दौरान भूस्खलन का उच्च जोखिम बना रहता है।

    इस प्रकार के जोखिमों को कम करने के लिए, वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण को सीमित किया जाए, वनों की कटाई और खनन गतिविधियों को न्यूनतम किया जाए, और साथ ही भूस्खलन के जोखिम का कठोर आकलन किया जाए।

    ऐसी आपदाओं से बचने के लिए चेतावनी

    चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस क्षेत्र में बारिश की पूर्वानुमान सही था और कुछ गांवों को समय रहते खाली कर लिया गया था। हालांकि, बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु इस बात का संकेत है कि चेतावनी प्रणाली कई लोगों तक नहीं पहुंच पाई और इसमें यह स्पष्टता नहीं थी कि किस क्षेत्र में क्या प्रभाव हो सकते हैं। इस कारण से, भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचने के लिए चेतावनी और निकासी प्रणालियों को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

    अध्ययन के निष्कर्ष

    यह अध्ययन 24 वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा किया गया, जिसमें भारत, मलेशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्वीडन, नीदरलैंड्स, और यूनाइटेड किंगडम की विभिन्न विश्वविद्यालयों और मौसम विज्ञान एजेंसियों के विशेषज्ञ शामिल थे।

    उन्होंने पाया कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण वातावरण में अधिक नमी संग्रहित हो रही है, जिससे भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं। वैश्विक परिप्रेक्ष्य यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले चरम मौसम घटनाओं पर किए गए अनुसंधानों के बड़े समूह के अनुरूप है।

    डब्ल्यूडब्ल्यूए का अध्ययन "मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से अधिक तीव्र हुई बारिश से उत्तरी केरल में भूस्खलन, अत्यधिक संवेदनशील समुदायों पर विनाशकारी प्रभाव" शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया है और इसे डब्ल्यूडब्ल्यूए की वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है।

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