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    अध्ययन में सामने आया जम्मू एवं कश्मीर का सच!, चार जिलों में स्थानीय लोगों से ज्यादा हैं आतंकवादियों की कब्र

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 10:51 PM (IST)

    सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन ने कश्मीर घाटी की कब्रों पर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बारामुला कुपवाड़ा बांदीपोरा और गंदेरबल जिलों में कब्रों का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि विदेशी आतंकियों की कब्रें स्थानीय नागरिकों से अधिक हैं। यह रिपोर्ट कब्रिस्तानों के दस्तावेजीकरण और आतंकी हिंसा की जमीनी हकीकत को उजागर करती है जो पीड़ित परिवारों और सुरक्षा एजेंसियों के लिए महत्वपूर्ण है।

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    अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन कश्मीरी एनजीओ ने कश्मीर घाटी की कब्रों पर छह वर्षों तक किए गए अपने शोध का विस्तृत दस्तावेज सार्वजनिक किया है।

    अनरेवीलिंग द ट्रुथ : ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ अनमार्क्ड एंड अनआइडेंटिफाइड ग्रेव्ज इन कश्मीर वैली शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि घाटी के सीमावर्ती चार जिलों बारामुला, कुपवाड़ा, बांदीपोरा और गंदेरबल में 93.2 प्रतिशत कब्रिस्तानों का सही दस्तावेजीकरण किया गया है।

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    रिपोर्ट के अनुसार कुल 4,056 कब्रों के अध्ययन में 2,493 कब्रे विदेशी आतंकवादियों की है जबकि 1,208 कब्र स्थानीय नागरिकों की हैं, 70 कब्र आदिवासी आक्रामणकारी और 9 नागरिक शामिल पाए गए।

    संगठन का कहना है कि इस अध्ययन के आधार पर पांच गंभीर श्रेणियां स्थापित की गई स्थानीय आतंकवादी, विदेशी आतंकवादी, नागरिक, अचिह्नित शव और 1947 के समय के आदिवासी आक्रामणकारी।

    पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत फारुख ने दिल्ली के प्रेस क्लब में रिपोर्ट जारी करने के बाद कहा कि यह रिपोर्ट मानवीय और सुरक्षा, दोनों आयामों में संतुलन स्थापित करती है।

    इससे पहले की रिपोर्ट मुख्यतः राजनीतिक विमर्श और आरोपों तक सीमित थीं, जबकि यह अध्ययन तथ्य, सबूत और वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है।

    एनजीओ के प्रमुख वजाहत फारुख भट का कहना है कि अध्ययन की विशेषता यह है कि इसमें केवल पुराने अभिलेखों पर भरोसा नहीं किया गया, बल्कि कब्रिस्तानों का सर्वेक्षण जियो-टैगिंग, तस्वीरें, मौखिक साक्ष्य, एफआइआर विश्लेषण और रिकार्ड के आधार पर किया गया।

    यही कारण है कि इसे बीरिड एविडेंस (2009) की रिपोर्ट से अलग और अधिक व्यापक माना जा रहा है।यह भी दावा किया कि यह अध्ययन यह केवल मानवाधिकार उल्लंघन या लापता लोगों के प्रश्न तक सीमित नहीं रहता, बल्कि घाटी में दशकों से जारी आतंकी हिंसा की जमीनी तस्वीर भी पेश करता है।

    संगठन का मानना है कि कब्रिस्तानों का यह सटीक दस्तावेज न केवल पीड़ित परिवारों के लिए राहतकारी होगा बल्कि सुरक्षा एजेंसियों और नीति-निर्माताओं को भी दिशा देगा।

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