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घर में बिना बताए रणभूमि में पहुंच गया था ये रणबांकुरा, अंतिम यात्रा में हुई थी फूलों की बारिश

टाइगर हिल से पाक सेना को खदेड़ने और कब्जा कायम करने में देश के 11 वीर सपूतों ने प्राणों की आहुति दी थी। इनमें से एक थे जांबाज लांस नायक सतपाल सिंह।

By Edited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 06:46 PM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2018 04:09 PM (IST)
घर में बिना बताए रणभूमि में पहुंच गया था ये रणबांकुरा, अंतिम यात्रा में हुई थी फूलों की बारिश
घर में बिना बताए रणभूमि में पहुंच गया था ये रणबांकुरा, अंतिम यात्रा में हुई थी फूलों की बारिश

गढ़मुक्तेश्वर (प्रिंस शर्मा)। शहीदों की चिताओं पर हर बरस लगेंगे मेले...। ऐसे में स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले उनकी शहादत को न केवल याद करना बल्कि सलाम करना भी हम सबका फर्ज हैं। शौर्य गाथा की इस कड़ी में हम आपको कारगिल के एक ऐसे शेर की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने पहले तोलोलिंग पर तिरंगा फहराया और फिर टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए हंसत-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी। टाइगर हिल से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने और अपना कब्जा कायम करने में देश के 11 वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। इन्हीं में से एक थे गढ़ क्षेत्र के जांबाज लांस नायक सतपाल सिंह।

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सतपाल सिंह की देशभक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह घर वालों को बिना बताए ही रणभूमि में पहुंच गए थे। गांव लुहारी निवासी दलेल सिंह के चार पुत्र थे। बड़े पुत्र गजेंद्र सिंह पहले से फौज में थे। बड़े भाई को भारत मां की सेवा करते देख सतपाल सिंह ने भी फौज में भर्ती होने की ठान ली। सेना में भर्ती होने के बाद सतपाल की बबीता से शादी हो गई।

बबीता ने बताया कि सतपाल जनवरी 1999 में छुट्टियां समाप्त कर घर से ग्वालियर में ड्यूटी ज्वाइन करने पहुंचे थे। कारगिल की तनावग्रस्त स्थिति को देखते हुए वहां से उनकी पूरी बटालियन का तबादला जम्मू कर दिया गया। उनकी बटालियन 2 राजपूताना राइफल्स जम्मू पहुंची ही थी कि कारगिल में जंग शुरू हो गई। बटालियन को फौरन कारगिल पहुंचने को कहा गया।

तीन साथियों के शहीद होने पर सतपाल के युद्ध में होने का पता चला
सतपाल सिंह लड़ाई में गए हैं, इसकी जानकारी घर पर किसी को नहीं थी। इसी बीच उनकी यूनिट के तीन साथी सैदपुर गुलावठी के चमन, सुरेंद्र और जसवीर कारगिल में शहीद हुए तो पूरे इलाके में खबर फैल गई। जैसे ही यह सूचना लुहारी में पहुंची तो परिवार वाले सतपाल को लेकर चिंतित हो गए। परिवार को उनकी कोई सूचना नहीं मिल रही थी। दो जुलाई को गांव में बहादुरगढ़ थाने का एक सिपाही उनके घर पहुंचा। उसने बताया कि सेना मुख्यालय से खबर आई है कि 28 जून को लांस नायक सतपाल सिंह द्रास सेक्टर में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए।

गर्व और हौंसले से भरी थी सतपाल की अंतिम चिट्ठी
बबीता ने बताया कि परिवार के लोगों ने सतपाल की खबर पाने के लिए उन्हें चिट्ठी लिखी थी। अपनी अंतिम चिट्ठी में सतपाल सिंह का जवाब आया कि उन्होंने तोलोलिंग चोटी जीत ली है। दुश्मन अभी भी कई चोटियों पर कब्जा किए बैठा है। इसलिए युद्ध खत्म होने से पहले नहीं आ सकता। चिंता मत करना, मैं बिल्कुल ठीक हूं। इसके बाद उनकी शहादत की सूचना आई। दो दिन बाद शहीद का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर पैतृक गाव लुहारी पहुंचा तो लोगों की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।

चले गए थे मासूम बच्चों को छोड़कर
सतपाल के शहीद होने के समय उनके बेटे पुलकित की उम्र साढ़े तीन वर्ष और बेटी दिव्या की उम्र महज ढाई वर्ष थी। बबीता ने कभी भी बच्चों को पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। पुलकित अब एमबीए और दिव्या एमए की पढ़ाई कर रही हैं। सतपाल सिंह का अंतिम संस्कार गाव में ही किया गया। प्रशासन ने उनके सम्मान में वहां शहीद पार्क का निर्माण कराया और बबीता को सहयोग राशि के साथ-साथ पेट्रोल पंप भी दिया गया।

अंतिम यात्रा में उमड़ गया था जनसैलाब
सतपाल सिंह की शहादत के बाद जब शव उनके गांव लुहारी पहुंचा तो हापुड़ ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों मेरठ, बुलंदशहर, अमरोह वगैरह से भी काफी संख्या में लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने पहुंचे थे। राष्ट्रीय राजमार्ग और उसके आसपास हजारों लोगों की भीड़ शहीद को अंतिम सलामी देने पहुंची थी। राष्ट्रीय राजमार्ग से जब उनकी अंतिम यात्रा निकली तो लोगों ने फूल बरसाकर श्रद्धांजलि दी। हर कोई उनके अंतिम दर्शन करना चाहता था। सड़क किनारे खड़े हजारों लोग हाथ में तिरंगा लेकर इस जाबांज की वीरता पर गर्व कर रहे थे और भारत मां के इस वीर सपूत के लिए नारे लगा रहे थे। लोगों की आंखों से आंसु बह रहे थे। बावजूद उनका सीना गर्व से चौड़ा था।


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