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    परिस्थिति नहीं बदल सकते तो आप अपने मन को बदलें, खुद बदल जाएगी जिंदगी

    By Prateek KumarEdited By:
    Updated: Wed, 11 May 2022 04:09 PM (IST)

    इन दिनों हर कोई निराशा से निकलने का रास्ता ढूंढ़ रहा है। ऐसे में मोटिवेशनल स्पीकर्स नए-नए विचार देकर लोगों का अवसाद से पीछा छुड़ा रहे हैं। उनमें हौसले की ऊर्जा डाल रहे हैं और स्वयंशक्ति की खाद।

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    अपनी सोच से अपना परिचय करवाइए। अपनी सोच के गवाह बनें।

    यशा माथुर। जिंदगी इम्तिहान लेती है, किसी की शान तो किसी के अरमान भेंट ले लेती है। कुछ टूट जाते हैं और कुछ बन-संवर कर, मजबूती से उबर जाते हैं। लेकिन जब वे अपने इम्तिहानों की दास्तान दूसरों को बताते हैं तो सुनने वालों को लगता है कि दुनिया में कितने गम हैं, उनके दुख कितने कम हैं। उनमें कठिनाईयों से जूझने का हौसला आने लगता है। वे समझ जाते हैं कि मैं ही नहीं हूं अकेला इस दुनिया में, जो सवालों के घेरे में है। आफतों के फेरे में है। 

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    लोगों को प्रेरित करने में सालों से लगे हैं योगेश छाबड़िया। अपने विचारों से लोगों को सकारात्मक रूख की ओर मोड़ देने वाले योगेश ने भी कम मुश्किलें नहीं सहीं लेकिन मुश्किलों से जीतने की उनकी जिद ने ही उन्हें कामयाब बनाया। वह कहते हैं, 'मेरे दादाजी को बंटवारे के कारण जब अपना सब जमीन-जायदाद छोड़ सीमा पार कर यहां आना पड़ा। आर्थिक हालात ऐसे थे कि हम बस तक में नहीं जा सकते थे, इसलिए पैदल ही चलते। लेकिन उस चुनौती के कारण हमने अपने हुनर को बढ़ाया। मैं पांच साल का था तो खिलौने बेचने लग गया था। बचपन में ही मुझे सब आसानी से मिलता तो मैं यह सीखता नहीं। तो आप जानिए कि चुनौतियां अवसर भी प्रदान करती हैं। कई बार जीवन में उपहार लेकर आती हैं।

    ईश्वर जब भी चुनौतियां, मुश्किलें देता है तो उसके साथ अवसर भी देता है। इस महामारी में भी कई लोगों को उनकी हुनर, काबिलियत का लाभ मिला है।' योगेश सकारात्मकता समेट लेने और भ्रम की स्थिति से निपटने के लिए खुद क्लियर रहने की बात करते हैं। वे कहते हैं कि अगर हमारे जीवन में स्पष्टता है तो आसान जिंदगी जी सकते हैं। हम गाड़ी चला रहे हैं और गाड़ी बहुत अच्छी है, पेट्रोल भी भरा है लेकिन शीशा गंदा है तो विश्वास के साथ गाड़ी नहीं चला पाएंगे। शीशा धोने पर हमें जब साफ दिखने लगेगा तो गाड़ी चलाने का विश्वास आ जाएगा। इन दिनों सब लोगों में भ्रम की स्थिति है। इसके पीछे एक डर है कि अगर मैं असफल हो गया तो क्या होगा? किसी ने नकार दिया तो क्या होगा? अगर हम अपने भ्रम को समझने लगें तो जीवन में स्पष्टता आ जाएगी।

    अपना नक्शा खुद खींचना होगा : जिन्होंने जिस साल रैंप पर खूबसूरती का खिताब जीता हो और उसी साल उनकी कमर के नीचे का हिस्सा ट्यूमर के कारण बेकार हो गया हो। दिव्यांगता पूरी जिंदगी की साथी बन गई हो। फिर से पैरों पर नहीं बल्कि हिम्मत के बल पर जिंदगी में लौटी हों और अपनी नई पहचान बनाई हो ऐसी महिला जब दूसरों को आत्मनिर्भरता और आत्मसंतुष्टि के मायने बताएगी तो लोगों को समझ आएगा ही। पैरालंपियन व खेल रत्न पुरस्कार विजेता दीपा मलिक के नाम के आगे आज कई सम्मान जुड़ते हैं लेकिन वे लोगों को बताती हैं कि भीतर से प्राप्त किया संतोष स्थायी है। लोग खुश होने के लिए मदिरा पान करते हैं वह खुशी तो अस्थायी है लेकिन अगर आप अपने दिमाग को मैनेज करेंगे तो आपको वैसी ही खुशी मिलेगी। उनका मानना है,'सभी को खुशी, संतुष्टि और मानसिक शांति चाहिए। इसके लिए हिमालय जाने की जरूरत नहीं है। जहां पर भी आप बैठें वहीं मानसिक शांति प्राप्त करने की कोशिश कर सकते हैं। जितना आप बाहर की बातों पर फोकस करते हैं उतना ही भीतर में भी फोकस करें। थोड़ी देर शांति से बैठें। अपने साथ संपर्क बढ़ाएं। सांस पर ध्यान दें। आगे की न सोचें। इन दिनों लोगों को सोचने की बीमारी कुछ ज्यादा ही लग गई है जैसे दिमाग में दीमक लगी है। इसके कारण घरों में मारपीट हो रही है, बच्चों व बड़ों को नींद नहीं आ रही है। संतोष नहीं मिल रहा है। ऐसे में आपको अपने विचारों के साथ मूल्य जोडऩे होंगे। हर आदमी आपको अलग रास्ते बताएगा लेकिन आपको अपने दिमाग की स्थिति समझ कर अपना नक्शा खुद बनाना होगा।'

    नाकामयाबी को अपनी ताकत बनाया : अनुपम खेर ने फिल्म इंडस्ट्री में एक अदद फिल्म के इंतजार में सालों गुजार दिए। वे प्लेटफॉर्म पर सोते थे और समुद्र के किनारे समय बिताते थे। लगातार मिलती नाकामियों ने उन्हें और मजबूत बनाया। संघर्ष इस कदर था कि 'सारांश' फिल्म में 24 वर्ष की उम्र में वे सत्तर साल के बूढ़े का किरदार निभाने के लिए राजी हो गए। वरिष्ठ अभिनेता व मोटिवेशनल स्पीकर अनुपम खेर कहते हैं कि उन्होंने अपनी नाकामयाबियों से ही जिंदगी के सबक सीखे हैं। वे अपने अनुभवों के आधार पर लोगों से कहते हैं, 'मैं असफलता को ज्यादा प्राथमिकता देता हूं। मैंने अपनी जिंदगी में नाकामयाबी से ज्यादा सीखा है, कामयाबी से कम।

    अगर नाकामयाबी को इंसान सही तरीके से ले तो वह दो दिशाओं में आगे बढ़ता है। एक तो वह अपने काम को बेहतर करता है और दूसरे, इंसान के तौर पर भी श्रेष्ठ बनता है। हमारे जेहन में लोगों ने डर डाल दिया है नाकामयाबी का। लोग आपकी खामियों से आपको डराते हैं। देखा जाए तो ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने असफलताओं का सामना नहीं किया हो। जितने भी महान लोग हुए हैं वे हर कदम सफल नहीं रहे हैं, उन्होंने नाकामयाबी को अपनी ताकत बनाया। चुनौतियों में अवसर खोजे। वे हारे नहीं, बल्कि और अधिक ऊर्जा से अपने मिशन पर आगे बढ़े। आप गांधीजी को ले लीजिए, चैपलिन, बिल गेट्स की बात कीजिए या फिर धीरुभाई अंबानी की जिंदगी पर नजर डालिए। इन सब ने असफलताएं देखी हैं। मुझे लगता है कि सबसे आसान और सबसे मुश्किल काम अपने व्यक्तित्व के अनुरूप होना है। अपने नजरिये को सकारात्मक बनाए रखना है।'

    आध्यात्मिक प्रबंधन तक जाना होगा : डॉ. विवेक बिंद्रा जाने-माने मोटिवेशनल स्पीकर हैं वे बताते हैं कि परिस्थितियां बदलना आपके बस की बात नहीं है। आप इन्हें नहीं बदल सकते तो आप अपनी मन:स्थिति को बदल डालिए। परिस्थितियों को स्वीकार कीजिए और आगे बढि़ए। उनका मानना है, 'हम सकारात्मक रह कर आगे बढ़ेंगे तो ही अपने मन का कर पाऐंगे। जब जड़ें ही मजबूत नहीं होंगी तो फल कहां से आएंगे। लोग मन:स्थिति ठीक करने की जगह परिस्थिति ठीक करने में लगे हैं। जबकि परिस्थितियां बदल पाना उनके बस की बात नहीं है।' आधुनिक प्रबंधन की बात करते हुए वे कहते हैं कि सबसे पहले शारीरिक प्रबंधन, फिर मानसिक, बौद्धिक और फिर आध्यात्मिक प्रबंधन की बात आती है। आज संतुष्टि इसलिए नहीं है क्योंकि हम पहली पायदान पर ही अटके हैं। जब हम शारीरिक जरूरतों को ही पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो आध्यात्मिक जरूरतों की ओर कैसे बढ़ पाएंगे? गीता के तीसरे अध्याय में श्रीकृष्ण समझाते हैं कि कोई व्यक्ति आनंद के स्तर पर तो तब जाएगा जब वह शरीर से ऊपर उठ जाएगा।

    डिजिटल एडिक्शन से बढ़ रहा अवसाद फाउंडर-हीलिंगहाइडअवे मेंटल फिटनेस के डिजिटल डिटॉक्स एंड माइंडफुलनेस कोच बिंदिया मुरगई ने बताया कि मैं लोगों को कहती हूं कि मानसिक स्वास्थ्य पर बात करें। इसके लिए समाधान बताती हूं। मेरा फोकस डिजिटल एडिक्शन पर भी है। लोग समझते नहीं है कि या समझना नहीं चाहते हैं कि डिजिटल हेल्थ से उनकी मेंटल हेल्थ पर कितना फर्क पड़ रहा है। यदि हम आंख खुलते ही फोन देखते हैं। ईमेल आदि देखते हैं। तो यह सब सफेद धुली कमीज पर सब्जी का रस डाल देने जैसा है। हम ताजे दिमाग को मैला कर लेते हैं। हम गैजेट्स पर काफी निर्भर हो रहे हैं जिससे अवसाद बढ़ रहा है। ऐसे में हमें डिवाइस से थोड़ा दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम रात को गैजेट के साथ रहते हैं। तो नींद अच्छी नहीं आती है। कम सोने से हमारी इम्युनिटी कम हो जाती है। दूसरे, मैं लोगों से नकारात्मक बातों से बचने के लिए कहती हूं। हम जितनी डरावनी बातें करेंगे हमारा आंतरिक तनाव उतना ही बढ़ता जाएगा। महामारी के बारे में दस बार बात करने पर भी हमें कोई नई सूचना नहीं मिलेगी। इससे अच्छा अपने परिवार से कोई दिलचस्प बात करें और खुशी प्राप्त करें।

    अपनी सोच के बनें गवाह माइंड कोच व मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट प्रो. (डा.) युशी मोहनदास ने बताया कि मुझे यह समझाना है कि आपको अपने विचार और व्यवहार बदलना है। जो व्यवहार आपको अच्छा बनाता है उसे आगे बढ़ाएं और जो आपको हानि पहुंचाए उसे दूर करना है। जैसे-जैसे अच्छाई बढ़ेगी, बुराई अपने आप मर जाएगी। हमारा दिमाग कंप्यूटर है जितना हम सोचेंगे उतना ही वह भर जाएगा। हमारे दिमाग में हमें थोड़ी जगह खाली रखनी होगी ताकि हम अपने विचारों को मैनेज कर सके। जो विचार चाहिए उन्हेंं रखें और जो नहीं चाहिए उन्हेंं निकाल फेंके। सोच दिमाग का खाना है। जैसी सोच रखेंगे वैसा ही व्यवहार में बाहर आएगा। अगर गलत रास्ते पर बढ़ गए हैं तो वापस भी आ सकते हैं। आज सबसे बड़ी समस्या बेचैनी है। आपको चैन चाहिए। जब आपका मानसिक संतुलन बढ़ेगा तो गुस्सा कम हो जाएगा। अगर आप अनुशासन में रहेंगे तो सब कुछ आपके हाथ में होगा। अपने लिए रोज पंद्रह मिनट रखिए।