कोरोना काल में पत्रकारिता करना शताब्दी की सबसे बड़ी चुनौती थी, पढ़िए क्या-क्या आई मुसीबतें
कोरोना महामारी भी पत्रकारिता के लिए ऐसी चुनौती लेकर आई जैसी उसे पहले कभी नहीं मिली थी। महामारी के दौर में पत्रकारों के समक्ष पत्रकारिता के उच्च मानदंडों को बरकरार रखने के लिए हर सूचना की पड़ताल करने के साथ खुद को भी सुरक्षित रखना कठिन कार्य था।

नई दिल्ली, [रीतिका मिश्रा]। पत्रकारिता का दायित्व उस समय कई गुना और बढ़ जाता है जब पूरा देश अदृश्य दुश्मन से जंग लड़ रहा हो। कोरोना महामारी भी पत्रकारिता के लिए ऐसी चुनौती लेकर आई जैसी उसे पहले कभी नहीं मिली थी। महामारी के दौर में पत्रकारों के समक्ष पत्रकारिता के उच्च मानदंडों को बरकरार रखने के लिए हर सूचना की पड़ताल करने के साथ खुद को भी सुरक्षित रखना कठिन कार्य था।
स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक और हानिकारक सूचनाएं भी तेजी से फैल रही थीं। ऐसे कठिन समय में भी पत्रकारिता ने अपने धर्म का बखूबी निर्वाह किया है। स्वास्थ्य, सरोकार और प्रेरित करने वाली कहानियों के माध्यम से पत्रकारिता ने पाठकों को संबल दिया है। एक प्रकार से देखा जाए तो पत्रकारिता ने इस दौरान एंटीडोट का काम किया। पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े लोगों के मुताबिक कोरोना काल में पत्रकारिता करना शताब्दी की सबसे बड़ी चुनौती थी, लेकिन फिर भी पत्रकारों ने इंटरनेट मीडिया पर बिखरी भ्रमित करने वाली ढेरों सूचनाओं के बीच पत्रकारों ने जान पर खेलकर लोगों तक सच को पहुंचाया।
भयभीत समाज को दिया संबल
भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक संजय द्विवेदी के मुताबिक कोरोना काल में भी संवेदना जगाने वाली खबरों और सरोकारों से जुड़े मुद्दों को अहमियत देते हुए आज भी पत्रकारिता अपना धर्म निभा रही है। संकट में समाज का संबल बनकर मीडिया नजर आया। कई बार उसकी भाषा तीखी थी, तेवर कड़े थे, किंतु इसे युगधर्म कहना ठीक होगा। जागरूकता पैदा करने के साथ विशेषज्ञों से संवाद करवाते हुए भयभीत समाज को संबल दिया है। लोगों के लिए आक्सीजन, अस्पताल व व्यवस्थाओं के बारे में जागरूक किया है।
जान जोखिम में डालकर पत्रकारों ने समाज को किया जागरूक
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव के मुताबिक कोरोना काल में पत्रकारों ने जान जोखिम में डालकर सत्यापित, वैज्ञानिक व तथ्य आधारित समाचार और विश्लेषण कर इस महामारी से बचाव के प्रति लोगों को जागरूक किया। कोरोना के मामलों को लेकर पत्रकारों ने अस्पतालों, शवदाह गृहों, कब्रिस्तान और कोविड केयर सेंटरों से सीधा लाइव प्रसारण किया।
उन्होंने यह तब भी किया जब कोरोना से बचाव के लिए क्या सावधानियां बरतनी है इसका किसी को पता नहीं था और कोरोना का टीका तक नहीं आया था। बड़ी संख्या में तब पत्रकारों की जान गई। उन्होंने खुद के साथ परिवारों की भी जान जोखिम में डाली। समाज को कोरोना से जुड़ी खबरें देने के लिए पत्रकार आफिस जाकर कोरोना से संक्रमित होते, फिर घर पर फिर कुछ दिन आराम करते और ठीक होकर फिर से आफिस जाते। यह सिलसिला अब भी जारी है। अब पत्रकारों को मेडिकल साइंस को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत है। उन्हें मेडिकल साइंस को भी निरंतर अध्ययन करना होगा। तभी स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी पर वे भ्रामक खबरों को रोकने में सहायक होंगे और अपने पाठकों को बेहतर सूचनाएं दे पाएंगे।

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