'सिर्फ EMI देने भर से नहीं मिल सकता मालिकाना हक', पति-पत्नी की ज्वाॅइंट प्रॉपर्टी पर दिल्ली HC का आदेश
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी द्वारा संयुक्त रूप से खरीदी गई संपत्ति पर पति केवल इसलिए स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता कि उसने ईएमआई का भुगतान किया। अदालत ने माना कि ऐसा दावा बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम का उल्लंघन होगा। यह फैसला एक महिला की याचिका पर आया जिसने संयुक्त संपत्ति में अपने हिस्से का दावा किया था।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त रूप से ली गई और पंजीकृत संपत्ति पर पति केवल इस आधार पर सिर्फ अपने ही स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता कि उसने ईएमआई का भुगतान किया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में यह महत्वपूर्ण आदेश दिया।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि जब संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर हो जाती है, तो पति को केवल इस आधार पर स्वामित्व का दावा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उसने अकेले दम पर ही उसे खरीदा है।
पीठ ने कहा कि पति का दावा बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम की धारा-चार का उल्लंघन करेगा। अधिनियम संपत्ति का वास्तविक मालिक होने का दावा करने वाले व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध अधिकारों को लागू करने के लिए कोई मुकदमा, दावा या कार्रवाई करने से रोकता है।
अदालत ने यह आदेश महिला की याचिका पर दिया। महिला ने दावा किया कि 50 प्रतिशत हिस्सा उसका है और यह उसके स्त्रीधन (हिंदू कानून के अनुसार एक महिला की पूर्ण और अनन्य संपत्ति) का हिस्सा है, इसलिए उस पर उसका एकमात्र स्वामित्व है।
याचिका के अनुसार दोनों की शादी 1999 में हुई थी और उन्होंने 2005 में मुंबई में एक संयुक्त घर खरीदा था। हालाकि, वे 2006 में अलग रहने लगे और पति ने उसी वर्ष तलाक के लिए अर्जी दी थी, जोकि अभी अदालत के समक्ष लंबित है।
अदालत ने कहा कि एक बार जब कोई संपत्ति दोनों पति-पत्नी के संयुक्त नामों में पंजीकृत हो जाती है, तो पति केवल इस आधार पर अनन्य स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता कि उसने पूरे खरीद मूल्य का भुगतान किया है।
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