JNU Election Result: आंदोलनों में सक्रियता ने AISA को बनाया मजबूत, अध्यक्ष समेत तीन पदों पर हुई लेफ्ट की जीत
JNU Election Result जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने 10 साल बाद वाम गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हुई। वहीं यूनाइटेड लेफ्ट ने तीन सीटें जीतीं। आइसा से जेएनयूस अध्यक्ष रहे धनंजय के नेतृत्व में भूख हड़ताल व डीओएस कार्यालय पर तालाबंदी ने भरोसा दिलाया। उल्लेखनीय है कि जेएनयू में छात्र संघ चुनाव के लिए 25 अप्रैल को मतदान हुआ था।

उदय जगताप, नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) 2024-25 सत्र के चुनाव में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) के गठबंधन ने मजबूती से खड़े होकर वाम किले को बचा लिया है। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआइ) के साथ गठबंधन टूटने के बाद कहा जा रहा था कि इससे वाम संगठन कमजोर हो जाएंगे।
कहीं न कहीं इसका सीधा फायदा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को होगा, लेकिन सीधे-सीधे ऐसा नहीं हुआ। एबीवीपी एक ही सीट जीतने में कामयाब रही। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव के पदों पर आइसा और डीएसएफ के यूनाइटेड लेफ्ट गठबंधन ने कब्जा जमा लिया।

लेफ्ट ने एबीवीपी को तीन सीटों पर दी शिकस्त
आइसा और डीएसएफ के यूनाइटेड लेफ्ट गठबंधन ने अपने बलबूते पर एबीवीपी को तीन सीटें हराने में कामयाबी हासिल की है। हालांकि, इसका पूरा श्रेय आइसा को ही दिया जा रहा है। आइसा ने पिछले साल गठबंधन में रहते हुए अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी। आइसा के धनंजय अध्यक्ष चुने गए थे।
धनंजय ने आइसा को दिया मजबूत नेतृत्व
धनंजय ने आइसा को एक मजबूत नेतृत्व दिया। उन्होंने संगठन की जड़ें जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। अध्यक्ष का दायित्व मिलने के बाद उन्होंने आंदोलन को कोई मौका नहीं गंवाया।
छात्रों के बीच मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। बराक छात्रावास खोलने, पार्थ सारथी चट्टान पर आवाजाही शुरू करने, छात्रवृत्तियों को बढ़ाने और चीफ प्राक्टर मैन्युअल को वापस लेने जैसे मुद्दे पर उन्होंने 14 दिन भूख हड़ताल की। उनके साथ वर्तमान में अध्यक्ष पद पर जीते नीतिश कुमार पीएचडी ने साथ निभाया।
डीओएस कार्यालय पर तालाबंदी ने दिलाया भरोसा
यही वजह है कि वह अध्यक्ष पद जीतने में कामयाब रहे हैं। इसके बाद जब जेएनयूएसयू चुनाव के लिए अधिसूचना जारी नहीं हो रही थी और बराक छात्रावास खोलने की तिथि जारी नहीं की जा रही थी। आइसा ने धनंजय के नेतृत्व में अधिष्ठाता छात्र कल्याण कार्यालय पर ताला जड़ दिया। वह कार्यालय के अंदर धरने पर बैठ गए।
जब तक अधिसूचना जारी नहीं की गई, वह अंदर डटे रहे। इसके बाद बराक छात्रावास खोलने की अधिसूचना जरी कर दी गई। एक महीने में छात्रावास शुरू होकर छात्रों को कक्ष भी आवंटित कर दिए गए। इसे आइसा की बड़ी जीत के रूप में देखा गया। इसका सीधा फायदा उन्हें गठबंधन टूटने के बाद भी मिला है।
धनंजय ने कहा, परिसर के छात्रों ने बता दिया कि जो वाम राजनीति को मजबूत रख सकता है, उसके साथ वह खड़े रहेंगे। छात्रों की बात को प्रशासन तक पहुंचाना और परिसर की समायोजिता बनाए रखने का काम आइसा कर सकता है। दूसरे सहयोगी संगठनों ने अपना हित पहले देखा। लेकिन, आइसा और डीएसएफ ने यूनाइटेड लेफ्ट बनाकर जीत दर्ज की है। विश्वविद्यालय के सभी सेंटर से हमें समर्थन मिला है। हम सभी वाम संगठनों को साथ लेकर ही आगे बढ़ेंगे।
एसएफआइ नहीं कर सकी कमाल
अध्यक्ष पद पर अपना प्रत्याशी खड़ा करने को लेकर एसएफआइ और आइसा के बीच रार हुई थी। इसके बाद एसएफआइ ने बापसा, एआइएसएफ और पीएसए के साथ मिलकर अलग फ्रंट अंबेडकराइट्स बनाया। लेकिन, उनके प्रत्याशी एक भी सीट पर कमाल नहीं कर सके।
अंबेडकराइट्स की एक मात्र प्रत्याशी पीएसए की निगम कुमारी एक हजार से अधिक वोट ला पाईं। शेष कोई एक हजार का आंकड़ा नहीं छू पाया। अब एसएफआइ के लिए आगे की राह भी मुश्किल होगी। उनके काउंसलर भी बहुत अधिक नहीं जीते हैं। बापसा का पूरा वोट भी इस चुनाव में उन्हें मिलता नहीं दिखा।

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