Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    UP चुनाव 2017 : जाट-मुस्लिम फैक्‍टर के चुनावी भंवर में फंसी साइकिल और हाथी

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Sat, 21 Jan 2017 01:28 PM (IST)

    जाटलैंड में सपा कमजोर है तो बसपा के दलित बिखर गए हैं। रालोद का जाट-मुस्लिम का समीकरण सांप्रदायिक दंगे की भेंट चढ़ चुका है। कांग्रेस यहां अपना अस्तित्व ...और पढ़ें

    Hero Image
    UP चुनाव 2017 : जाट-मुस्लिम फैक्‍टर के चुनावी भंवर में फंसी साइकिल और हाथी

    नई दिल्ली (सुरेंद्र प्रसाद सिंह)। बिगड़ी कानून व्यवस्था, मुजफ्फरनगर दंगे की टीस और बनते बिगड़ते राजनीतिक गठजोड़ से उत्तर प्रदेश का जाटलैंड शासन-प्रशासन से बेहद खफा है। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव पर इसका सीधा असर पड़ सकता है। राजनीतिक दल भी उसके निशाने पर हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    चौधरी चरण सिंह की मजबूत विरासत को उनके लोग संभाल नहीं पाए, जिसके चलते समूचे जाटलैंड की पहचान का संकट पैदा हो गया है। सांप्रदायिक सद्भाव को नजर क्या लगी, सामाजिक ताना बाना ही चटक गया। ये मुद्दे इसी चुनावी भंवर में घूमेंगे।

    यह भी पढ़ेंः इलेक्शन 2017 में उतरे जोनमाने बॉलीवुड एक्टर बोले-UP को सबने मिलकर लूटा

    नए राजनीतिक माहौल में भारतीय जनता पार्टी के प्रति उत्तर प्रदेश के जाटलैंड का ऐसा विश्वास जागा कि बीते लोकसभा चुनाव में अन्य दलों का सूपड़ा साफ हो गया। यहां के मतदाताओं में ध्रुवीकरण साल दर साल और बढ़ा है, जो छोटी पार्टियों के लिए संकट पैदा करने वाला साबित हो सकता है।

    जाटलैंड में सपा कमजोर है तो बसपा के दलित बिखर गए हैं। रालोद का जाट-मुस्लिम का समीकरण सांप्रदायिक दंगे की भेंट चढ़ चुका है। कांग्रेस यहां अपना अस्तित्व तलाश रही है।

    यह भी पढ़ेंः यूपी चुनाव 2017: SP-कांग्रेस गठबंधन तय, कई सीटों पर बांटे गए पार्टी सिंबल!

    केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने हाथ आए इस उर्वर क्षेत्र पर कब्जा जमाए रखने की पुरजोर कोशिश की है। उसे इसका लाभ विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जाट-मुस्लिम जोड़ कमजोर ही नहीं हुआ, बल्कि तार-तार हो गया, जिससे उनकी विरासत संभाल रही पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की चूलें हिल गईं।

    यह भी पढ़ेंः राहुल गांधी पर शख्स का तंज, '100 रुपये भेज रहा हूं... प्लीज कुर्ता सिलवा लेना'

    मुस्लिम व गैर मुस्लिम मतदाताओं के बीच की खाई इस दौरान और बढ़ी है। सामाजिक व राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रहे जाटलैंड में आर्थिक प्रगति शिथिल दिखने लगी है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव, मात्र खेती पर बढ़ती निर्भरता और राजनीतिक नेतृत्व के अभाव ने उन्हें परंपरागत राजनीतिक प्रतीकों के प्रति उदासीन बना दिया है।

    यही वजह है कि जाटलैंड के नौजवान अब नई राजनीतिक विचारधारा और नेतृत्व के प्रति आकर्षित हुए हैं। 2014 का चुनाव इसका एक उदाहरण है। नौजवानों के बढ़ते झुकाव की कुछ खास वजहें भी हैं, जिनमें यहां की आर्थिक ताकत चीनी उद्योग को मिली राहत भी है।

    वर्ष 2014-15 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का सर्वाधिक 22 हजार करोड़ रुपये चीनी मिलों पर बकाया था। केंद्र की नई सरकार ने जहां बंद पड़ी मिलों को खुलवाया, वहीं बकाया भुगतान के लिए हरसंभव प्रयास किया।

    विधानसभा चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और रालोद के बीच बन रहे महागठबंधन की मूल वजह भाजपा की मजबूती है। लेकिन, चुनावी महागठबंधन के बहाने मुस्लिम और जाट मतदाताओं को एकसाथ लाने की मंशा पूरी करना आसान नहीं है।