छोटी फिल्मों के लिए थिएटर रिलीज अब भी चुनौती, मार्केटिंग पर खर्च किए बिना सिनेमाघरों तक पहुंचना मुश्किल: किरण राव
जागरण फिल्म फेस्टिवल में किरण राव ने छोटे बजट की फिल्मों के सामने आने वाली चुनौतियों पर बात की। उन्होंने कहा कि मार्केटिंग के बिना दर्शकों तक पहुंचना मुश्किल है। फिल्म ह्यूमन्स इन द लूप की स्क्रीनिंग के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे उनकी फिल्म झारखंड की आदिवासी महिलाओं से प्रेरित है। डिजिटल युग में फंडिंग अभी भी एक बड़ी चुनौती है।

रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। छोटे बजट की फिल्मों के लिए थिएटर में जगह बनाना आज भी मुश्किल काम है। दर्शकों की संख्या भले बदली हो, लेकिन मार्केटिंग पर करोड़ों रुपये खर्च किए बिना दर्शकों तक पहुंच पाना संभव नहीं है।
जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन फिल्म ह्यूमन्स इन द लूप की स्क्रीनिंग और पैनल चर्चा के दौरान फिल्म की निर्माता किरण राव ने ये बातें कहीं। कहा कि सिनेमाघर जाने वाले 30 वर्ष से ऊपर के दर्शकों में 30 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि युवाओं की संख्या बढ़ी है।
बावजूद इसके, थिएटर तक लोगों को खींचना अब भी बड़ी चुनौती है। उन्होंने बताया कि इस फिल्म की मार्केटिंग के लिए फिलहाल उन्होंने ऑन डिमांड लिमिटेड रिलीज माडल अपनाया गया है। कोई भी संस्था, फिल्म क्लब या समूह उनसे इंस्टाग्राम पर संपर्क कर स्क्रीनिंग करा सकता है।
उन्होंने कहा कि हमने थिएटर में फिल्म लाने से पहले कुछ शहरों में इस तरह की ऑन डिमांड रिलीज का मॉडल अपनाया ताकि वर्ड ऑफ माउथ से फिल्म आगे बढ़े। थिएटर अब ओटीटी रिलीज के लिए चर्चा बनाने का जरिया भी बन चुका है।
फिल्म के निर्देशक अरण्य सहाय ने बताया कि ह्यूमन्स इन द लूप का विचार उन्हें पत्रकार करिश्मा मेहरोत्रा के एक लेख से मिला। लेख में झारखंड की आदिवासी महिलाओं के डेटा लेबलिंग कार्य का जिक्र था।
सहाय ने कहा कि यह वैसा था जैसे किसी बच्चे को पेंटिंग सिखाना। यही से कहानी की जड़ें बनीं। झारखंड जाकर वहां के फिल्मकारों और महिलाओं से बातचीत ने मेरे दृष्टिकोण को और गहराई दी।
उन्होंने कहा कि यह फिल्म तकनीक और समाज के रिश्ते को नए ढंग से सामने लाती है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) को अक्सर एक क्लीन स्लेट माना जाता है।
लेकिन असल में यह भी अपने पूर्वजों के पूर्वाग्रहों को ढोता है। यही सवाल फिल्म में उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही इसका सीक्वल भी बनाया जाएगा।
फडिंग अब भी चुनौती
फिल्म निर्माता बिजू टोप्पो ने कहा कि डिजिटल युग में दर्शकों तक पहुंचना पहले की तुलना में आसान हो गया है। पहले हम वीएचएस (वीडियो होम सिस्टम) पर शूट करते थे, आज प्लेटफार्म बहुत हैं, लेकिन फंडिंग अब भी सबसे बड़ी चुनौती है, खासकर डाॅक्यूमेंट्री फिल्मों के लिए।
यह है फिल्म की कहानी
ह्यूमन्स इन द लूप (2024) नेहमा नामक उरांव महिला की कहानी है, जो विवाह टूटने के बाद गांव लौटती है और बच्चों की परवरिश के लिए डेटा लेबलर का काम करती है। उसे सिखाया जाता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बच्चे की तरह पालना है। फिल्म तकनीक, समाज और पारिवारिक रिश्तों के बीच गहरा संवाद रचती है।
दिल्ली आती हूं तो लोधी गार्डन में टहलना पसंद करती हूं
कार्यक्रम के दौरान किरण राव ने दिल्ली से अपने लगाव को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि जब भी दिल्ली आती हूं, लोधी गार्डन में टहलना पसंद करती हूं।
जामिया में बिताया गया समय मेरे लिए अद्भुत रहा। यहीं मुझे सिनेमा की दुनिया से असली परिचय मिला और धीरे-धीरे निर्देशन की ओर मेरा रुझान पक्का हुआ।
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