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    G20 Summit: G20 शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा एजेंडा का होगा हिस्सा, भारत दिखाएगा दम

    नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को आयोजित जी 20 लीडर्स समिट में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा इस बैठक के भारी-भरकम एजेंडा का हिस्‍सा होगा। लीडर्स समिट में जलवायु से जुड़ा वित्त का मुद्दा हमेशा अहम रहता है। जी20 की बैठक विकासशील देशों को अपने ऊर्जा रूपांतरण के जरिये कई ट्रिलियन डॉलर के निवेश हासिल करने में मदद का एक अच्‍छा मौका है।

    By Jagran NewsEdited By: Shyamji TiwariUpdated: Fri, 08 Sep 2023 09:05 PM (IST)
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    G20 शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा एजेंडा का होगा हिस्सा

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को आयोजित जी 20 लीडर्स समिट में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा इस बैठक के भारी-भरकम एजेंडा का हिस्‍सा होगा। मगर रूस-युक्रेन के बीच जारी जंग, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के इस बैठक से परहेज करने के हाल के निर्णय से यह संकेत मिलते हैं कि बैठक में कई प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनने में मुश्किलें आएंगी।

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    इन मुद्दों में ऊर्जा रूपांतरण, हरित वित्त व सतत विकास लक्ष्‍य शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच एक ऐसे साल में ज्‍यादा हित दांव पर लगे हैं जिसके अब तक के सबसे गर्म साल के तौर पर दर्ज होने की सम्‍भावना है। सीओपी 28 का एजेंडा मुख्‍य रूप से प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍थाओं द्वारा जीवाश्‍म ईंधन के इस्‍तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्‍म करने के लिए एक समझौते को मूर्त रूप देने, अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने और जलवायु वित्‍त को नए स्‍तर तक बढ़ाने पर केन्द्रित है।

    भारत ने जी 20 के अध्‍यक्ष के रूप में अपनी वैश्विक प्रोफाइल को बेहतर बनाने के लिये काम किया है। मगर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के भरसक प्रयासों के बावजूद चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग और उनके रूसी समकक्ष व्‍लादिमीर पुतिन की गैर-मौजूदगी से इस समिट की कामयाबी पर शंका के बादल छा गए हैं।

    जी 20 जलवायु मुद्दे

    लीडर्स समिट में वित्त का मुद्दा हमेशा अहम रहता है। जी20 की बैठक विकासशील देशों को अपने ऊर्जा रूपांतरण के जरिये कई ट्रिलियन डॉलर के निवेश हासिल करने में मदद का एक अच्‍छा मौका है। जलवायु से जुड़ी कार्रवाई के लिये सालाना निवेश में वर्ष 2030 तक सालाना 2.4 ट्रिलियन डॉलर से ज्‍यादा की वृद्धि करने की जरूरत है।

    जीवाश्‍म ईंधन के प्रयोग धीरे-धीरे खत्‍म करना 

    सऊदी अरब कथित रूप से जीवाश्‍म ईंधन के इस्‍तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्‍म करने के मामले में पिछड़ गया है। इसी बीच, सदस्य देशों का न्यूनीकरण की परिभाषा को लेकर विवाद करने का सिलसिला जारी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक यूरोपीय संघ आगामी कॉप28 में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध ढंग से चलन से बाहर करने के समझौते का समर्थन करेगा।

    चीन के बारे में कहा जा रहा है कि वह जीवाश्म ईंधन के लिए दी जा रही बेजा सब्सिडी को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए वर्ष 2009 में हुई जी20 बैठक में व्यक्त किए गए संकल्प के संदर्भ को मिटाने के लिए बातचीत कर रहा है। हाल की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि जी20 देशों ने जीवाश्म ईंधन से जुड़ी परियोजनाओं में मदद के लिए सार्वजनिक कोष में 1.4 ट्रिलियन डॉलर्स दिए हैं। अकेले भारत ने वर्ष 2014 से 2022 के बीच जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में 76% की कटौती की है और साफ ऊर्जा के लिए दी जाने वाली मदद में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की है।

    कोयला

    वार्ताकारों का कहना है कि कोयले का मुद्दा अभी तक हुई बातचीत में लगभग नदारद ही रहा है। ऐसा तब हो रहा है जब जी20 देश दुनिया में कुल सक्रिय कोयला उत्पादन क्षमता में 93% की हिस्सेदारी रखते हैं। वहीं, निर्माणाधीन कोयला उत्पादन क्षमता का 88% हिस्सा भी इन्हीं देशों की झोली में है।

    कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने और कोयले से चलने वाले नए प्लांट्स को बनाने पर रोक से संबंधित समझौता किए बगैर जी20 देश वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के प्रयासों में मदद नहीं कर सकते।

    अक्षय ऊर्जा

    जर्मनी कॉप28 में एक ऐसे समझौते के लिए समर्थन जुटा रहा है जिसमें अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने का लक्ष्य रखा जाएगा। इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका समेत अनेक विकासशील देशों ने किसी भी ऐसे लक्ष्य को तय किए जाने पर आपत्ति की है जिसमें इसे हासिल करने के लिए कोई स्पष्ट वित्तीय पैकेज का अभाव हो। विश्लेषण से पता चलता है कि जी20 देश में वर्ष 2022 में पवन और सौर ऊर्जा की संयुक्त हिस्सेदारी 13% हो गई है जो वर्ष 2015 में सिर्फ 5% थी।

    भारत का नेतृत्व 

    जी20 की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ग्लोबल साउथ की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाले एक नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने का एक मौका है। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2021 में देश को साल 2070 तक नेट जीरो राष्ट्र बनाने की योजना का ऐलान करके पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया था।

    इससे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के जोखिम से घिरी अर्थव्यवस्थाओं को कर्ज देने के ढांचे में बदलाव करके उन्हें प्राथमिकता देने का एक माहौल तैयार हुआ है। जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे खत्म करने पर विचार के लिए अगर कोई समझौता होता है तो इससे भारत के नेतृत्व को और मजबूती मिल सकती है।

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