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    इन्‍हें मिल गया है हौसले का नया आसमान, अब नई उड़ान पर निकल पड़ी हैं ये बेटियां

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 12 Aug 2022 03:14 PM (IST)

    स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के अवसर देश के 75 स्कूलों की 750 बच्चियों द्वारा निर्मित आजादीसैट उनके सपनों की उड़ान बन गयी। यह भले ही अपनी कक्षा में पहुंचने में सफल नहीं हुआ पर सरकारी स्कूल वाली बेटियों की लगन को जैसे मिल गई नई उड़ान नया आसमान...

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    अंतरिक्ष विज्ञानी बनने के सपने देखने लगीं।

    सीमा झा। फाइव, फोर, थ्री, टू, वन की गिनती पूरी होते ही तेज आवाज और रोशनी के साथ आजादीसैट लांच हुआ। इस यान के प्रक्षेपण की साक्षी बनीं देशभर के 75 स्कूलों की 750 छात्राएं। दरअसल, इसरो ने 75 स्कूलों को आजादी सैटेलाइट के लिए प्रोजेक्ट दिए थे। स्पेस किड्स इंडिया टीम के निर्देशन में इन छात्राओं ने ही इस यान को डिजाइन किया। विज्ञान के प्रति छात्राओं की रुचि और लगन देख इसरो ने इन्हें प्रक्षेपण के अवसर पर न केवल आमंत्रित किया, बल्कि भविष्य में उन्हें अपने साथ जोड़ने का भरोसा भी दिया। इसके बाद तो ये उत्साहित छात्राएं इस प्रोत्साहन से अंतरिक्ष विज्ञानी बनने के सपने देखने लगीं।

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    बनना है अंतरिक्ष विज्ञानी

    आगरा के गणेश राम नागर कन्या विद्या मंदिर की 11वीं की छात्रा तान्या सोलंकी जब इसरो के बुलावे पर श्रीहरिकोटा गईं, तो उनके जानने वाले उत्‍साहित थे। वे तान्‍या के वहां के अनुभवों को सुनना चाहते थे। जब इसरो केंद्र से ही फोन पर तान्‍या ने बताया कि यह उसकी जिंदगी सबसे अनमोल पल है, जब उसने अपनी आंखों से सेटेलाइट लांच होते देखा तो सब उसके रोमांच को महसूस कर रहे थे। दरअसल, खुद तान्‍या और उसके जैसी लड़कियों के द्वारा तैयार सेटेलाइट स्पेस में इंटीग्रेट हुआ है, यह सब यकीन से परे लग रहा था। तान्‍या के मुताबिक, अब तो वह इतनी उत्‍साहित हैं कि स्‍कूल में अब खुद का सेटेलाइट बनाकर इसरो के सहयोग से लांच कराने का प्रयास करेंगी। 11वीं की छात्रा मेधा के मुताबिक, सेटेलाइट लांचिंग पर ट्रांसीजन स्टेप्स प्रक्रिया की गवाह बनकर उनके पैर जैसे जमीं पर नहीं। 11वीं की आयशा अली तो इतनी उत्‍साहित हैं कि वे इसरो विज्ञानियों से मिलने के बाद अब अंतरिक्ष विज्ञानी बनना चाहती हैं।

    टीमवर्क से मिली सीख

    मथुरा जिले के समविद् गुरुकुलम व हनुमान प्रसाद धानुका सरस्वती विद्यामंदिर की दसवीं छात्राएं भी इस आयोजन का हिस्‍सा बनीं। पर इस प्रोजेक्‍ट का हिस्‍सा बनने के लिए एक परीक्षा देनी पड़ी। ‘स्पेस किड्स इंडिया’ में चयन ही इन सबके लिए गौरव की बात थी। पर इसके बाद उन्‍होंने देखा कि यहां टीमवर्क की क्‍या अहमियत होती है। सैटेलाइट लांचिंग में किस तरह टीमवर्क होता है, लाचिंग की तैयारी से लेकर प्रोजेक्टर रूम में पूरी गतिविधि को उन्‍होंने वीडियो के जरिए देखा। स्पेस किड्स इंडिया प्रोजेक्ट इन छात्राओं को एक चिप दिया गया, जिसमें कोडिंग करके वापस भेजना था। जिसे कि सैटेलाइट का हिस्सा बनाया गया। समविद् गुरुकुलम की अवनी अग्रवाल के मुताबिक, उन्‍होंने जो कुछ अनुभव किया वे शब्‍दों से परे है। इसी स्कूल की आयुषी के मुताबिक, स्पेस किड्स इंडिया की हेड मैथीजी से मिलकर वे जानकारियां मिलीं जो उन्‍हें भविष्‍य में काम आएंगी। आयूषी सिविल सेवा में जाना चाहती हैं पर अब उन्‍हें कंप्‍यूटर विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि है।

    पहली बार भरी उड़ान

    अमृतसर के सीसे स्मार्ट गर्ल्स स्कूल एवं बटाला के सरकारी स्कूल की बच्‍चियां भी इस अभियान में शामिल हुईं। सीसे स्मार्ट स्कूल गर्ल्‍स स्‍कूल की प्रिंसिपल मंदीप कौर के मुताबिक, उनके स्कूल की नौ छात्राओं ने केमिस्ट्री के अध्यापक कमल अरोड़ा के मार्गदर्शन में चिप तैयार की। कमल अरोड़ा ने बताया कि इस चिप का काम आसपास का तापमान, नमी, गतिविधियां दर्शाना था। विद्यार्थियों ने तीन-चार दिन की मेहनत से इस टास्क को पूरा कर लिया। नौ छात्राओं में सिमरन, पलक शर्मा, कुमारी शान, हरमनजीत कौर, मानवी, आनंदिता, प्रभजोत कौर, जश्नप्रीत व युक्ति शामिल हैं। इसरो के लिए सैटेलाइट बनाने में सहभागिता करके इन सबका खुशी का ठिकाना नहीं है। खास बात यह है कि इसरो के इस प्रोजेक्ट के कारण इन छात्राओं को पहली बार हवाई यात्रा करने का अवसर भी मिला, जिससे उनका उत्साह कई गुना बढ़ गया।

    बढ़ गया हौसला

    इसरो की ओर से बेटियों की अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि को प्रोत्साहित करने वाले स्पेस किड्स इंडिया मिशन में पानीपत (हरियाणा) की बेटियों ने भी अपनी प्रतिभा दिखाई। आजादीसैट नामक उपग्रह बनाने में इनका भी योगदान रहा। हालांकि यह सही कक्षा में नहीं पहुंच सका, लेकिन पूरे देश में इनकी प्रतिभा को सराहा जा रहा है। टीम में शामिल सभी छात्राएं नौवीं से 12वीं की छात्राएं हैं, जो एनएफएल स्थित पानीपत इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी (पाईट) संस्कृति स्कूल में पढ़ती हैं। इसरो के विज्ञानियों के मार्गदर्शन में बेटियों ने उसका डिजाइन तैयार किया। अपने डिजाइन का चुनाव होने पर पानीपत इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी (पाईट) कालेज में पाईट संस्कृति स्कूल की विभिन्न कक्षाओं की 10 छात्राओं को ट्रेनिंग दी गई। छात्राओं ने सैटेलाइट बनाने के साथ उसकी प्रोग्रामिंग की। नौवीं की छात्रा शाइनी के मुताबिक, ट्रेनिंग के समय से ही उसे अपने सैटेलाइट की लांचिंग देखने का सपना था, जो पूरा हो गया।

    11वीं की छात्रा अमनीत कौर ने बताया कि वह मेडिकल स्ट्रीम से पढ़ाई कर रही है और डाक्टर बनना चाहती है। फिर भी तकनीक में गहरी रुचि होने के कारण वह इस टीम में शामिल हो सकीं। 11वीं की छात्रा आरसी गोयल कहती हैं, भले ही हमारे बनाए सैटेलाइट को वांछित सफलता नहीं मिली, पर इससे हमारा हौसला बहुत बढ़ा है।

    कुछ कर दिखाने की जिद

    भोपाल में भेल के बरखेड़ा स्थित महारानी लक्ष्मीबाई (एमएलबी) कन्या हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं की जिंदगी जैसे बदल गयी है। प्रोजेक्ट के बाद वे अब खुद को अंतरिक्ष विज्ञान और आइटी के क्षेत्र में देखना चाहती हैं। खास बात यह है कि ये सभी पेट्रोल पंप कर्मचारी, मजदूर,ड्राइवर,मैकेनिक, छोटे दुकानदार और किसानों की बेटियां हैं। इंफार्मेशन और रोबोटिक टेक्नोलाजी में गहरी रुचि होने और कुछ कर दिखाने की जिद के कारण इनका चयन इस प्रोजेक्ट में हुआ। छात्राओं ने बताया कि इसी वर्ष स्पेस किड्स इंडिया की ओर से स्कूल प्राचार्य के पास संदेश आया कि आपको 15 बच्चों के साथ एक आजादी सैटेलाइट हेतु एक उपकरण की प्रोग्रामिंग करनी है।इसके लिए स्कूल में इंफार्मेशन प्रैक्टिस के वरिष्ठ अध्यापक जीतेंद्रपाल सिंह चौहान के मार्गदर्शन में चेन्नई से आनलाइन प्रशिक्षण हुआ। वहां से एक आर्डिनो पेडोल उपकरण स्कूल भेजा गया,जिसे साफ्टवेयर के माध्यम से स्कूल में तैयार किया गया। इसे आजादी सैटेलाइट हेतु चेन्नई भेजा गया। प्रोग्रामिंग के लिए आनलाइन मार्गदर्शन चेन्नई से मिला। आजादी सैटेलाइट टीम में 12वीं कक्षा की नैन्सी पटेरिया,निहारिका खरे,शाहिस्ता और प्रियंका विश्वकर्मा तथा 10वीं से प्रिया चौरे,शिवांगी वाजपेयी,आयुशी उमरे,सेजल कुशवाह,स्नेहा यादव,प्राची सूर्यवंशी,बिपाशा गुप्ता,पूर्वी सेन,चंचल सूर्यवंशी,अमृता यादव और गरिमा सरोवर शामिल हैं।

    आजादीसैट में 75पेलोड (चिप) लगाए गये थे, जिन्हें पूरे देश से 75 स्कूलों की 750 छात्राओं ने मिलकर तैयार किया है। एक चिप में हमारे विद्यालय की 15छात्राओं ने कोडिंग की है। सैटेलाइट यदि अपनी कक्षा में स्थापित हो जाता तो इसके माध्यम से अंतरिक्ष में मैपिंग करने,सेल्फी लेने के साथ तापमान आदि की जानकारी मिलती।

    -जीतेंद्रपाल सिंह चौहान, वरिष्ठ अध्यापक, एमएलबी स्कूल, भोपाल

    स्पेस साइंस में बनाऊंगी करियर

    हमारे स्कूल में अटल टिंकरिंग लैब स्थापित है,जिसमें हम लोग सेंसर डिटेक्ट करने की प्रैक्टिस करते थे। आजादीसैट मिशन में यह अनुभव काम आया। अब स्पेस साइंस में ही करियर बनाना चाहती हूं।

    - नैन्सी पटेरिया

    कक्षा : 12, एमएलबी स्कूल, भोपाल

    आजादी सैटेलाइट के लिए कोडिंग करना हमारे लिए गर्व की बात है। हमें खुशी है कि हमने अपने देश के लिए कुछ किया है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से आगे और काम करने की प्रेरणा मिली है।-शाहिस्ता

    कक्षा :12, एमएलबी स्कूल, भोपाल

    यह सरकार की बहुत अच्छी पहल है। मैं तो मजदूरी करता हूं,लेकिन अपनी बच्ची को आगे पढ़ाऊंगा। अंतरिक्ष विज्ञान में करियर बनाने में उसकी पूरी मदद करूंगा। उसे मंजिल तक पहुंचाना ही अब मेरा लक्ष्य है।

    अशोक कुमार पटेरिया (नैन्सी के पिता)

    आठ किलोग्राम का था आजादीसैट

    पहली बार स्माल सैटेलाइट लांच व्हीकल (एसएसएलवी) के जरिए अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने के लिए बनाए गए आजादीसैट का वजन महज आठ किलोग्राम था। इसे जमीन की मैपिंग में इस्तेमाल के लिए बनाया गया था। छात्राओं ने बहुत कम समय में इसका निर्माण किया था।

    इनपुट सहयोग : भोपाल से सुशील पांडेय,अमृतसर से अखिलेश सिंह यादव, पानीपत से धर्मदेव झा, आगरा से राजेश मिश्रा

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