शतरंज के खिलाड़ी आमने-सामने न बैठकर आनलाइन शह और मात का खेल खेल रहे
कोरोना के कारण जब इंडोर से लेकर आउटडोर तक तमाम खेलों पर ब्रेक लग गया तब शतरंज ने डिजिटल का साथ लेकर घोड़े जैसी चाल चली और देशभर में सुपरहिट हो गया। आउटडोर न होने के कारण इसे करोड़ों लोग डिजिटली खेलते हैं।

नई दिल्ली, अंशु सिंह। गुजरात की महिला फाइड मास्टर (डब्ल्यूएफएम) 16 वर्षीय ध्याना पटेल छह वर्ष की आयु से शतरंज खेल रही हैं। इसकी प्रेरणा इन्हें अपने एक कजिन से मिली। इन्हें इतना मजा आया कि फिर दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह अंडर 7, अंडर 9, अंडर 11, अंडर 13, अंडर 15 स्टेट चैंपियन बनीं। आगे चलकर राज्य की महिला टीम में स्थान बनाया। वह पहली लड़की हैं, जिन्होंने वुमन स्टेट टीम एवं चैलेंजर्स सेलेक्शन में चार वर्ष लगातार जीत हासिल की।
इन्होंने तेहरान में आयोजित एशियाई स्कूल्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीतकर न सिर्फ देश का मान बढ़ाया, बल्कि गुजरात की पहली वुमन कैंडिडेट मास्टर (डब्ल्यूसीएम) भी बनीं। वह राज्य की पहली लड़की हैं, जिन्होंने रूस के सोची में आयोजित वर्ल्ड स्कूल्स चेस चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया और पूरे टूर्नामेंट में भारत को दूसरा स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। कोरोना काल में भी ध्याना शांत नहीं बैठीं। कई आनलाइन इवेंट्स में हिस्सा लेकर उनमें जीत हासिल की। अब जब स्थितियां सामान्य हो रही हैं, तो वह एक ओपन इवेंट में हिस्सा लेने सर्बिया गई हैं, ताकि अपनी रेटिंग्स को और सुधार सकें।
अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस की शुरुआत : 1924 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ ( एफआइडीई) की स्थापना हुई थी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने 12 दिसबंर, 2019 को हर साल 20 जुलाई को विश्व शतरंज दिवस मनाने की घोषणा की थी।
आनलाइन खेलने से फायदा : शतरंज के विश्व चैंपियन रहे विश्वनाथ आनंद मानते हैं कि वैश्विक संकट के मद्देनजर शतरंज का स्वरूप बदला है। इससे खिलाड़ियों का घर बैठे खेल से जुड़ाव बना रहा। उन्हें अपने गेम को सुधारने का अवसर मिला। आठ वर्ष की आयु से शतरंज खेल रहे और 20 वर्ष में ग्रैंडमास्टर बनने वाले चेन्नई के श्यामसुंदर कहते हैं, ‘जब मैंने शतरंज खेलना शुरू किया था, तो न कोई कोच थे और न सही मार्गदर्शन करने वाले। मैंने आनलाइन खेलकर एवं सीखकर ही अपने गेम को सुधारा। मैं मानता हूं कि शुरुआत में हमें एकदम से किसी अनजान प्रतिद्वंद्वी के साथ खेलने के बजाय दोस्तों के साथ आनलाइन चेस खेलना चाहिए। इससे गड़बड़ी या धोखा होने की आशंका कम रहती है। सीखने को मिलता है और पेशेवर टूर्नामेंट्स की बेहतर तैयारी कर पाते हैं।’ इन दिनों देश के अन्य खिलाड़ियों की तरह श्यामसुंदर भी एक कोच की भूमिका निभा रहे हैं। वह बच्चों को अधिक से अधिक खेलने के लिए प्रेरित करते हैं। दो साल बाद वह आफलाइन कैंप भी करने जा रहे हैं। वह कहते हैं, ‘मुझे शतरंज से प्यार है। कहीं भी रहूं, दो से तीन घंटे जरूर खेलता हूं। चुनौतियां लेना पसंद है। जुनूनी बच्चों को नई-नई तकनीक सिखाने में मजा आता है। मैं साफ्टवेयर से सिखाने की बजाय मानवीय पक्ष पर जोर देता हूं।’
देश-विदेश के खिलाड़ियों से बना रहा संपर्क : दोस्तो, आज शतरंज के खिलाड़ी आमने-सामने न बैठकर आनलाइन शह और मात का खेल खेल रहे हैं। घर बैठे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शामिल हो रहे हैं। भारतीय ग्रैंडमास्टर वैभव कहते हैं,‘आनलाइन शतरंज अलग-अलग आयुवर्ग के बीच लोकप्रिय हो रहा है। शतरंज डाट-काम पर प्रतिमाह 20 करोड़ से ज्यादा लोग खेलते हैं, जो बताता है कि आनलाइन शतरंज में कितनी दिलचस्पी ली जा रही है। वैसे, इसे आगे बढ़ाने में यूट्यूब इंफ्लुएंसर्स, हास्य कलाकार समेत अलग-अलग क्षेत्रों की नामचीन हस्तियां बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।’ ग्रैंडमास्टर हर्षल सैनी के अनुसार, आनलाइन शतरंज ने इस खेल को नये स्तर पर पहुंचा दिया है। इसमें खिलाड़ी घर बैठे दुनिया के किसी भी खिलाड़ी के साथ खेल सकते हैं। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर अंडर-12 में स्वर्ण पदक और अंडर-13 में रजत पदक विजेता साची जैन को आनलाइन शतरंज खेलना इसलिए पसंद है, क्योंकि इससे वे अन्य खिलाड़ियों से संपर्क में रह पाती हैं। शतरंज खिलाड़ी लक्ष्य की मानें, तो इस खेल की अच्छी बात यह है कि इसे सीखने के लिए आनलाइन प्रशिक्षक आसानी से मिल जाते हैं।
सुधार लाने का मिला मौका : कोरोना महामारी के कारण आल इंडिया चेस फेडरेशन ने फैसला किया कि सभी आयुवर्ग की राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिताएं आनलाइन आयोजित कराई जाएं। इस क्रम में उत्तर प्रदेश राज्य शतरंज प्रतियोगिता पांच आयु वर्ग में दो से 13 जून, 2021 तक आयोजित की गई। इसमें अंडर-14 आयुवर्ग की स्परर्धा में वाराणसी के संकल्प त्रिपाठी ने बालक एवं नियति विक्रम सिंह ने बालिका वर्ग में बाजी मारी। वाराणसी चेस एसोसिएशन के विजय कुमार ने बताया कि यह प्रतियोगिता टोरनेलो साफ्टवेयर की सहायता से आयोजित की गई थी। नियति कहती हैं, ‘कोरोना काल में जब स्कूल की पढ़ाई आनलाइन हो गई और खेलों पर भी पाबंदी-सी लग गई, तो आनलाइन शतरंत ने बड़ा संबल दिया। चेस के आनलाइन अभ्यास ने खेल की समझ को धार दी। इसका फायदा उत्तर प्रदेश राज्य शतरंज प्रतियोगिता में खेलने के दौरान मिला।’
आनलाइन प्रतियोगिता से इकट्ठा धन डाला पीएम राहत कोष में : गौतमबुद्ध नगर (उप्र) के दो राष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी आदर्श त्रिपाठी और यश श्रीवास्तव ने अप्रैल 2020 में विश्वस्तरीय आनलाइन शतरंज टूर्नामेंट आयोजित कर प्रधानमंत्री राहत कोष में योगदान किया गया। टूर्नामेंट में दुनियाभर से 85 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। खिलाड़ियों से पंजीकरण शुल्क लेने के बजाय उनसे पीएम राहत कोष में योगदान कर उसका स्क्रीनशाट भेजने को कहा गया था। इस तरह करीब 1,05,262 रुपये इकट्ठा किए गए। आदर्श और यश मिलकर एक वर्ष में 10 से अधिक आनलाइन टूर्नामेंट और आनलाइन प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित कर चुके हैं। इससे मिलने वाली राशि वे क्राई और हेल्पेज आदि सामाजिक संस्थाओं में दान कर देते हैं। कोरोना काल में घर बैठे अपने गेम को सुधारने के लिए आदर्श ने विश्व स्तरीय कोच से आनलाइन प्रशिक्षण लिया। खुद जो सीखते थे, उसे अन्य खिलाड़ियों को भी सिखाते और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच के साथ चयनित खिलाड़ियों को आनलाइन प्रशिक्षण दिलवाते ताकि वह भी अपने गेम को विश्व स्तर तक पहुंचा सके। मात्र सात साल की उम्र से शतरंज खेलने का शौक रखने वाले आदर्श कामनवेल्थ खेलों में रजत पदक जीत चुके हैं। इसके साथ ही कई राज्यों में विजेता रह चुके हैं। वहीं, यश मात्र पांच वर्ष से शतरंज खेल रहे हैं और एक बार डिस्ट्रिक्ट चैंपियन के साथ यूपी स्टेट चैंपियन भी रह चुके हैं।
सुरक्षित माहौल में खेल ने बढ़ाया मनोबल : गोरखपुर जिला शतरंज संघ के कार्यवाहक सचिव जितेंद्र का कहना है कि कोरोना काल में खेल गतिविधियां बंद होने से सभी परेशान थे। हमने ट्रायल किया, तो खिलाड़ियों ने उत्साह दिखाया। इसके बाद नियमित रूप से अलग-अलग आयु वर्ग की आनलाइन शतरंज प्रतियोगिताएं कराई गईं। टीम भावना के लिए टीम इवेंट कराया। दूसरी लहर में आल इंडिया चेस फेडरेशन ने विभिन्न आयु वर्ग की आनलाइन प्रतियोगिताएं कराने का निर्णय लिया। आज रोजाना दो से तीन आनलाइन प्रतियोगिताएं हो रही हैं। इसमें आठ-दस अंतरराष्ट्रीय रेटेड खिलाड़ी भी हिस्सा लेते हैं। राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय आनलाइन शतरंज प्रतियोगिता में गोरखपुर के दर्जनों खिलाडिय़ों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। इसमें रक्षित शेखर द्विवेदी ने अंडर 10 वर्ग की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 11 मैचों में 5.5 अंक अर्जित किए। रक्षित बताते हैं,‘मैं पिछले चार वर्षों से शतरंज खेल रहा हूं। यह मुझे मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। कोरोना संक्रमणकाल में मुझे जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर की आनलाइन प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अवसर मिला। आमने-सामने होने वाली प्रतियोगिता बेहतर तो होती है, लेकिन वर्तमान दौर में आनलाइन चेस सुरक्षित विकल्प है। इससे खेल की गतिविधियां भी प्रभावित नहीं हो रही हैं।’ शतरंज खिलाड़ी सान्या खेतान की मानें, तो आनलाइन प्रतियोगिता में कैमरे के जरिए प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को देख सकते हैं। उनकी आवाज भी सुन सकते हैं। यह काफी अच्छा है। कम से कम हम खेल पा रहे हैं।
आनलाइन खेलने से अभ्यास में मदद : गुजरात की वूमन फाइड मास्टर ध्याना पटेल ने बताया कि महामारी के कारण हम बाहर खेलने नहीं जा सकते थे। लेकिन खेल का अभ्यास बना रहे, इसलिए आनलाइन इवेंट्स एवं टूर्नामेंट्स में नियमित भाग लेती रही। मैं अंडर 16 एवं अंडर 18 की आनलाइन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में तीसरे स्थान (रैपिड श्रेणी) पर रही। एक टीम इवेंट में भी हिस्सा लिया, जिसमें देशभर के करीब 300 खिलाड़ी शामिल हुए। इसमें गुजरात टीम का चयन नवंबर में दुबई में होने जा रहे वर्ल्ड एक्सपो टूर्नामेंट के लिए हुआ है। मैं भी उस टीम का हिस्सा हूं। जहां तक अपने खेल को सुधारने का सवाल है, तो मैं रोजाना दो से तीन घंटे अभ्यास करती हूं। पुराने टूर्नामेंट्स एवं वरिष्ठ खिलाड़ियों के वीडियो देखती हूं। उनकी समीक्षा करती हूं। महामारी के दौरान आनलाइन गेम सुरक्षित रहे। हालांकि आमने-सामने बैठकर खेलने का अपना मजा है। हम प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों के हाव-भाव देख पाते हैं। उनसे आई कांटैक्ट हो पाता है। आनलाइन में कई बार चीटिंग की गुंजाइश बनी रहती है।
मनोबल बढ़ाने में बना मददगार : चेन्नई के ग्रैंड मास्टर श्यामसुंदर मोहनराज ने बताया कि आफलाइन खेलना अमूमन सर्वोत्तम माना जाता है, जबकि आनलाइन में त्रुटियां या धोखे की गुंजाइश बनी रहती है। कैमरे से निगरानी होने के बावजूद कई बार आपको मालूम नहीं पड़ता कि आप उपयुक्त प्रतिद्वंद्वी के साथ खेल भी रहे हैं या नहीं। पेशेवर खिलाड़ियों के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती रही है। क्योंकि बहुत से बच्चे इन दिनों पैरेंट्स के दबाव में चेस खेल रहे हैं। अभिभावकों का हस्तक्षेप इतना ज्यादा होता है कि बच्चे अपना स्वाभाविक खेल नहीं खेल पाते। उनका पूरा जोर जीतने की बजाय इस पर होता है कि हारे नहीं। इससे न चाहते हुए उनकी क्रिएटिविटी खत्म हो रही है। हां, वर्तमान परिस्थितियों में पेशेवर खिलाड़ियों का मोटिवेशन लेवल बनाए रखने के लिए आनलाइन टूर्नामेंट्स जरूरी हैं। इससे उनका अभ्यास बना रहता है। वे अपनी कमियों-कमजोरियों को दूर कर पाते हैं। इसलिए जरूरी है कि ये इवेंट्स उचित निगरानी में कराए जाएं।
आनलाइन बरतनी होगी सावधानी : कोलकाता के शतरंज महासंघ के संयुक्त सचिव एवं इंटरनेशनल मास्टर आफ चेस अतनु लाहिड़ी ने बताया कि महामारी के दौरान एहतियातन प्रतियोगिताओं का आयोजन नहीं किया जा रहा था। राज्य शतरंज महासंघ की ओर से भी इस समय आनलाइन नेशनल स्कूल चैंपियनशिप का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन हर चीज का दूसरा पहलू भी होता है जिस पर ध्यान देना जरूरी होता है। शतरंज खिलाड़ी जब आमने-सामने बैठकर खेलते हैं, तो उनमें एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई चलती है। कोरोना में आनलाइन चेस ठीक है, लेकिन परिस्थिति सामान्य होने पर आमने-सामने बैठकर शतरंज का खेल ही माकूल है।
आनलाइन सीखने का बढ़ा ट्रेंड : शतरंज कोच राम सागर ने बताया कि शतरंज की आनलाइन प्रतियोगिताएं होने से इस खेल के प्रति रुझान नि:संदेह बढ़ा है। जो पैरेंट्स खेल से अधिक बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देते थे, उनमें भी चेस को लेकर उत्साह देखा जा रहा है। बच्चे आनलाइन शतरंज सीख रहे हैं। क्योंकि कहीं न कहीं इससे बच्चों की क्रिएटिविटी पर सकारात्मक असर होता है। वे पढ़ाई या गेम पर सही से फोकस कर पाते हैं। हालांकि, देश में पहले से ही खिलाड़ी विदेशी कोच से आनलाइन चेस सीखते आ रहे हैं। वहीं, गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में शतरंज अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय रहा है। वहां से ग्रैंडमास्टर बनने वाले खिलाड़ियों की संख्या अधिक रहती है। यही कारण है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, वाराणसी, लखनऊ, पश्चिम बंगाल के कोलकाता के बच्चे भी वहां के कोचेज से आनलाइन सीखने को प्राथमिकता देते हैं। हां, कोरोना काल में आफलाइन खेल बंद होने से देश के किसी भी कोने में बैठे कोच बच्चों को ट्रेन कर पा रहे हैं। यह एक सुखद बदलाव आया है।
[इनपुट: पूर्वी दिल्ली से पुष्पेंद्र कुमार, नोएडा से सुनाक्षी गुप्ता, कोलकाता से विशाल श्रेष्ठ, वाराणसी से मुहम्मद रईस, गोरखपुर से प्रभात पाठक]
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