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    ...जब आयरन लेडी को भी मिली थी मात, मिथक के भंवर जाल में फंसी इंदिरा

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Wed, 01 Feb 2017 10:23 AM (IST)

    1974 में रामचंद्र विकल फिर से दादरी विधानसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए थे। समर्थन में इंदिरा गांधी थी, लेकिन रामचंद्र विकल हार गए थे।

    ...जब आयरन लेडी को भी मिली थी मात, मिथक के भंवर जाल में फंसी इंदिरा

    नोएडा (जेएनएन)। इसे मिथक कहें या फिर अंधविश्वास कि नोएडा आने वाले 'नेताजी' सत्ता में वापसी नहीं कर पाते हैं। मायावती, मुलायम सिंह और कल्याण सिंह ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री व आयरन लेडी के नाम से जानी जाने वाली इंदिरा गांधी तक को यहां से झटका लग चुका है। वह जिस कांग्रेसी उम्मीदवार के प्रचार के लिए दादरी आईं थी वह हार गया था।

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    दो बार दादरी और एक बार सिकंद्राबाद से रामचंद्र विकल लगातार कांग्रेस से विधायक रहे थे। 1967 में वह निर्दलीय लड़े और सिकंद्राबाद से विधायक बने थे। बिना किसी स्टार प्रचारक के जब उन्होंने चुनाव लड़ा तो वह जीते थे। 1974 में रामचंद्र विकल फिर से दादरी विधानसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए थे। समर्थन में इंदिरा गांधी चुनाव प्रचार के लिए आई थी। इस बार रामचंद्र विकल को हार का मुंह देखना पड़ा था।

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    दादरी के रहने वाले डॉ. आनंद आर्य बताते हैं कि रामचंद्र विकल 1952 में पहली बार कांग्रेस की तरफ से दादरी विधान सभा से उम्मीदवार बने थे और जीत दर्ज की थी। 1957 में वह कांग्रेस की तरफ से सिकंद्राबाद से उम्मीदवार बने और फिर विधायक बने।

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    1962 में उन्हें कांग्रेस ने दादरी से उम्मीदवार बनाया और वह लगातार तीसरी बार विधायक बने। 1967 में तत्कालीन मंत्री बनारसी दास ने तेज सिंह गुर्जर को दादरी से कांग्रेस के टिकट पर उम्मीदवार बनवा दिया और खुद सिकंद्राबाद से दावा ठोक दिया। रामचंद्र विकल ने निर्दलीय के रूप में सिकंद्राबाद से नामांकन कर दिया।

    बनारसीदास ने सिकंद्राबाद से खुद हो हटाते हुए खुर्जा से नामांकन किया और सिकंद्राबाद से ईश्वरी सिंह को टिकट दिला दिया। रामचंद्र विकल निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सिकंद्राबाद से जीते थे। इसके बाद वर्ष 1974 में उन्हें कांग्रेस ने दादरी से विधायक का उम्मीदवार बताया। इंदिरा गांधी प्रचार करने के लिए आई थी, लेकिन विकल इस बार विधायक नहीं चुने जा सके थे।

    यहां से शुरू हुई पूरी कहानी

    बताया जाता है कि नोएडा आकर सत्ता गंवाने से जुड़ा यह अंधविश्वास 80 से दशक के आखिर में शुरू हुआ था। 1989 में नोएडा जाने वाले एनडी तिवारी सत्ता से बाहर हो गए थे। 1995 और 1999 में कल्याण सिंह पर भी नोएडा का दौरा भारी पड़ा था। मुलायम ने भी नोएडा दौरे के बाद सीएम की कुर्सी गंवा दी थी। 2009 और 2011 में सीएम रहते नोएडा आने वाली मायावती भी 2012 में सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थीं।

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