भारतीय पैरा एथलीट दीपा मलिक ने कहा- इस आजादी के अमृत महोत्सव पर सोच को आजाद करें
दीपा मलिक ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि वर्ष 1999 में मेरे ट्यूमर के आपरेशन के बाद छाती से निचला हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया था। मेरी मल-मूत्र की शक्ति समाप्त हो गई थी। लोगों ने कहा कि मैं अब जीवनभर बिस्तर पर पड़ी रहूंगी।

नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। द्वारका सेक्टर-6 स्थित मणिपाल अस्पताल द्वारा अंग साझा करना व प्रत्यारोपण अभियान की शुरुआत की गई है। मंगलवार को इस अभियान के शुभारंभ समारोह में भारतीय पैरा एथलीट दीपा मलिक व नोट्टो के निदेशक डा. रजनीश सहाय बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। दीपा मलिक ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि वर्ष 1999 में मेरे ट्यूमर के आपरेशन के बाद छाती से निचला हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया था। मेरी मल-मूत्र की शक्ति समाप्त हो गई थी। लोगों ने कहा कि मैं अब जीवनभर बिस्तर पर पड़ी रहूंगी। पर मैंने पुरानी व दकियानूसी सोच को पीछे छोड़कर प्रगतिशील सोच को अपनाया और मैंने देश के लिए 23 अंतरराष्ट्रीय पदक हासिल किए।
आजादी सोच की हो
इस वर्ष हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है, पर आजादी का मतलब संवैधानिक अधिकारों की आजादी नहीं है बल्कि दकियानूसी व पुरानी सोच से आजादी है। अंगदान एक महान कार्य है। कहा जाता हैं कि शरीर नश्वर है, पर अंगदान कर शरीर को जिंदा रखा जा सकता है। दीपा मलिक ने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम फिट तो इंडिया फिट। ऐसे में हमारी कोशिश रहनी चाहिए कि जब तक हम जीवित हैं तब तक अपने शरीर को संभालकर रखें, ताकि मरने के बाद वह अंगदान के लिए काम आ सकें। दीपा मलिक ने शपथ ली कि मरने के बाद वह अपने शरीर का हर अंग दान करेंगी। यह शपथ उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों दिलाई।
ब्रेन डेथ के बाद भी जिंदा रहते हैं शरीर के अंग
अभियान के संयोजक डा. अवनीश सेठी ने बताया कि हर साल चार लाख लोगों को अंगों का प्रत्यारोपण कराने की जरूरत पड़ती है, लेकिन 14 हजार लोग ही अंगदान प्राप्त कर पाते हैं। उसमें से एक लाख लोग ऐसे होते हैं जिन्हें कार्निया की जरूरत होती है, पर 25 हजार लोगों को ही यह मिल पाता है। आज अमेरिका व चीन के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है जहां सबसे अधिक अंगदान होता है।
बेन डेड लोग आठ लोगों की बचा सकता है जिंदगी
डा. अवनीश ने बताया कि बहुत कम लोग यह जानते हैं कि ब्रेन डेथ के बाद एक व्यक्ति अपना दिल, फेफड़े, लिवर, किडनी, छोटी आंत व पैन्क्रियाज को दान करके आठ जिंदगियों को बचा सकता है। ब्रेन डेथ में दिमाग भले ही काम करना बंद कर देता है, लेकिन शेष अंग कुछ समय तक जिंदा रहते हैं। दूसरी तरफ आंख, त्वचा, हड्डी, हार्ट वाल्व जैसे टिश्यू मृत्यु होने के छह घंटे बाद भी दान किए जा सकते है।
अंगदान को लेकर हैं कई मिथक
अंगदान को लेकर लोगों के मन में कई तरह के मिथक है। कोई भी धर्म अंगदान करने से मना नहीं करता है। लोगों का मानना हैं कि इस जन्म में अंगदान करने से अगले जन्म में वे उस अंग के बिना जन्म लेंगे। पर शरीर के किसी भी अंग का कैंसर होने पर हम उसे निकलवा देने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस अभियान के तहत अस्पताल की वेबसाइट पर जाकर नोट्टो में अंगदान करने के लिए खुद को पंजीकृत कराएं। वहीं डा. रजनीश सहाय ने कहा कि अंगदान करने वाले लोगों की संख्या बढ़े इसके लिए भारत सरकार भी प्रयासरत हैं। लोगों में जागरूकता की कमी काे दूर करने के लिए मणिपाल अस्पताल का प्रयास सराहनीय है।
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