Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोरोना की दूसरी लहर में माता-पिता की मृत्यु होने से अनाथ हो गए सात भाई-बहन, कोर्ट ने लिया संज्ञान, पढ़िए पूरी कहानी

    दूसरी लहर में माता-पिता को खोने वाले सात भाई-बहनों की पीड़ा दिल्ली हाई कोर्ट के संज्ञान में है। इनकी बुनियादी जरूरतें पूरा नहीं हो पा रही हैं। पीठ ने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए ऐसे बच्चों से दस्तावेज पेश किए जाने की उम्मीद करना अनुचित होगा।

    By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Tue, 24 Aug 2021 12:54 PM (IST)
    Hero Image
    कोरोना की दूसरी लहर में सात भाई-बहनों की पीड़ा पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने की टिप्पणी।

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता-एजेंसी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में माता-पिता को खोने वाले सात भाई-बहनों की पीड़ा दिल्ली हाई कोर्ट के संज्ञान में आई है। इनकी बुनियादी जरूरतें पूरा नहीं हो पा रही हैं। सोमवार को न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए ऐसे बच्चों से दस्तावेज पेश किए जाने की उम्मीद करना अनुचित होगा। जब किसी को भोजन नहीं मिलता, तो उसके लिए हर घंटा, हर दिन मायने रखता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से पेश अधिवक्ता प्रभसहाय कौर ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि कोरोना की दूसरी लहर में माता-पिता की मृत्यु होने से सात भाई-बहन अनाथ हो गए हैं। इनमें पांच नाबालिग लड़कियां हैं। एक बड़ा भाई 23 वर्ष का है व एक बालिग बहन भी है। इनकी पीड़ा का जिक्र करते हुए बताया कि बाल कल्याण समिति द्वारा इनको बुनियादी राशन और स्कूल की किताबें उपलब्ध कराई गई थीं। एकमुश्त राशि भी दी गई थी।

    फिर भी उन्हें देखभाल और मदद की सख्त जरूरत है। दूध, राशन और दवा जैसी दैनिक जरूरतों के लिए समिति से बार-बार संपर्क करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने पीठ के समक्ष कहा कि अनुग्रह अनुदान की योजना के कार्यान्वयन में समय लग रहा है, क्योंकि उनमें दस्तावेज का सत्यापन आवश्यक है।

    उन्होंने कहा कि ये बच्चे अब विभिन्न एजेंसियों के पास आने से ऊब गए हैं। इस पर पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार ने ऐसे बच्चों को राहत मुहैया कराने के लिए विशेष रूप से योजनाएं बनाई हैं। उनमें आवेदनों के लिए सामान्य तरीके से गौर करने के बजाय अधिकारियों को सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना होगा। जिन बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है, उनसे यह उम्मीद करना उचित नहीं होगा कि वे योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रमाण पत्र व दस्तावेज जुटा सकेंगे। पीठ ने कहा कि सरकार को ऐसी प्रक्रिया विकसित करनी चाहिए जो सरल और आसानी से लागू की जा सकें। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि अपात्र लोगों द्वारा लाभों का दुरुपयोग तो नहीं किया जा रहा। अब इस मामले में नौ सितंबर को सुनवाई होगी।