आरटीआइ के जवाब में आया सामने, डीजल ट्रकों से वसूला गया ग्रीन फंड कितना हो पाया खर्च, फीसद जानकर रह जाएंगे हैरान
राजधानी में प्रवेश करने वाले डीजल ट्रकों से पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में एकत्र ग्रीन फंड में से 21 प्रतिशत ही खर्च किया है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर शुरू किया गया यह उपकर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के पास आता है।

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली सरकार ने पिछले छह वर्षों के दौरान राजधानी में प्रवेश करने वाले डीजल ट्रकों से पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में एकत्र ग्रीन फंड में से 21 प्रतिशत ही खर्च किया है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर शुरू किया गया यह उपकर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के पास आता है, जहां से इसे परिवहन विभाग के पास जमा कराया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता अमित गुप्ता द्वारा दायर आरटीआइ के जवाब के अनुसार, 20 नवंबर 2015 से दिल्ली सरकार को पर्यावरण उपकर के रूप में 1,298 करोड़ रुपये की राशि मिली। इसमें से विभिन्न हरित परियोजनाओं के लिए 281.5 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया।
आरटीआइ के जवाब के अनुसार दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) को 265 करोड़ रुपये की मंजूरी के साथ वित्त वर्ष 2018-19 में 271 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। वर्ष 2016-17 में एसडीएमसी को ''आरएफआइडी की पूर्व-निविदा आकस्मिक लागत'' परियोजना के लिए सरकार ने 93 लाख रुपये जारी किए, जिसमें टोल और पर्यावरण उपकर संग्रह के लिए दिल्ली के बार्डरों पर स्वचालित रेडियो आवृत्ति पहचान उपकरणों की स्थापना शामिल थी। .इसके अलावा सरकार ने एक पायलट परियोजना के लिए ग्रीन फंड से 15 करोड़ रुपये मंजूर किए, जिसमें प्रदूषण कम करने और स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिए 2018-19 और 2019-20 में 50 सरकारी बसों में हाइड्रोजन-समृद्ध सीएनजी का उपयोग करना शामिल था।
दूसरी तरफ सरकार ने 2008 से एयर एंबिएंस फंड में एकत्र किए गए 547 करोड़ रुपये में से हरित गतिविधियों पर 527 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इस फंड के तहत दिल्ली में प्रति लीटर डीजल की बिक्री से 25 पैसे मिलते हैं। इस फंड का उपयोग बैटरी चालित वाहनों, ई-रिक्शा, आड-ईवन ड्राइव, दिल्ली सचिवालय में बायो-गैस संयंत्र के रखरखाव, स्माग टावर लगाने, पर्यावरण मार्शलों के वेतन और वास्तविक समय स्त्रोत विभाजन पर अध्ययन के लिए सब्सिडी देने के लिए किया गया।पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ग्रीन फंड का पैसा अच्छी हरित परियोजनाओं के लिए ही उपयोग किया जाता है। अभी और भी कई प्रस्तावों पर काम चल रहा है। इसमें यमुना में माइक्रो प्लास्टिक की मात्रा को लेकर अध्ययन कराना भी शामिल है।
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