आईआईटी दिल्ली के छात्र ने पंखे से फंदा लगाकर दी जान, मनोरोग का चल रहा था इलाज
आईआईटी दिल्ली के अरावली हॉस्टल में एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। इस घटना से हॉस्टल में हडकंप मच गया। छात्र की पहचान झारखंड के देवघर निवासी यश कुमार के रूप में हुई है। वह एमएससी द्वितीय वर्ष में पढ़ाई कर रहे थे। मृतक के पास कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। आईआईटी दिल्ली स्थित अरावली हॉस्टल में मंगलवार देर रात एमएससी द्वितीय वर्ष के छात्र ने खुदकुशी कर ली। मौके से पुलिस को कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है। छात्र के कमरे से मिले मेडिकल रिपोर्ट से उसके मनोरोग से ग्रसित होने की बात सामने आयी है। पुलिस उसके दोस्तों के बयान दर्ज मामले की जांच में जुट गई है।
घटना को लेकर झारखंड में परिवार को सूचना दे दी गई है। पुलिस के मुताबिक देर रात आईआईटी दिल्ली के एक हॉस्टल में छात्र के खुदकुशी की सूचना मिली। इस पर पुलिस कमरा नंबर डी-57 पहुंची। दरवाजा अंदर से बंद था। स्टाफ व छात्रों ने खिड़की का शीशा तोड़कर अंदर प्रवेश किया।
तौलिया काटकर नीचे उतारा शव
छात्र का शव दो कपड़ों और तौलिए के सहारे पंखे से लटका मिला। तौलिया काटकर उसे नीचे उतारा गया। छात्र को आईआईटी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। छात्र की पहचान 21 वर्षीय कुमार यश पुत्र अनिल कुमार झा के रूप में हुई। वह वार्ड नंबर 4, देवघर, झारखंड का रहने वाला था।
मनोरोग का चल रहा था इलाज
कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। मृतक मेडिकल/स्वास्थ्य रिपोर्ट कार्ड के अनुसार वह मनोरोग चिकित्सा के लिए उपचाराधीन था। मंगलवार को भी दिन में वह इलाज के लिए आईआईटी अस्पताल गया था। पुलिस ने दोस्तों के बयान दर्ज करते हुए परिवार को भी सूचित कर दिया है।
आईआईटी दिल्ली निगरानी तंत्र को लागू करने में विफल
आईआईटी दिल्ली ने आत्महत्या को रोकने के लिए प्रबल निगरानी तंत्र बनाया है। इसके बावजूद परिसर में ही ऐसी घटनाएं रुक नहीं रही हैं, जबकि आईआईटी प्रबंधन ऐसी घटनाओं पर केवल दुख जताकर मामले में इतिश्री कर लेता है। इस साल 10 माह में देशभर की आईआईटी के 12 विद्यार्थियो ने जान दे दी। इनमें छह छात्र और छह छात्राएं हैं।
आत्महत्याओं की घटनाओं के बाद उठाए गए थे कई कदम
आईआईटी दिल्ली में लगातार हो रही आत्महत्याओं की घटनाओं के बाद कई कदम उठाए गए थे। छात्रावासों में जाकर छात्रों की काउंसलिंग करने की व्यवस्था की गई। वरिष्ठ छात्रों को नए छात्रों से बात करने को कहा गया। शिक्षकों ने निगरानी करने की व्यवस्था बनाई। परीक्षाओं में एक मेजर विषय और एक माइनर विषय को कम किया गया। तनाव कम करने के लिए तमाम कदम उठाए गए, लेकिन उनका धरातल पर असर दिखाई नहीं दिया।
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