अब दिल्लीवासियों को सांस लेने में मिलेगी बड़ी राहत, IIT दिल्ली की तकनीक करेगी ये काम
सीमेंट उद्योग वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है। आईआईटी दिल्ली ने एक AI मॉडल विकसित किया है जो क्लिंकर की गुणवत्ता को तेजी से जांच सकता है। यह तकनीक एक्स-रे तकनीक से बहुत तेज और सटीक है जिससे ऊर्जा की बचत होगी और कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी। इस खोज में अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भी रुचि दिखाई है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दुनिया में कंक्रीट का सबसे महत्वपूर्ण घटक माना जाने वाला सीमेंट वैश्विक निर्माण क्षेत्र की रीढ़ है। लेकिन, अकेले यह उद्योग वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लगभग आठ प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। मात्र एक टन सीमेंट बनाने में लगभग 0.66 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है, जो 2500 किलोमीटर कार चलाने जितना प्रदूषण है। बढ़ते शहरीकरण और आवासीय योजनाओं के साथ यह चुनौती और गंभीर होती जा रही है।
ऐसे में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित मॉडल विकसित कर समाधान की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई है। यह मॉडल मात्र 1/100 सेकंड में क्लिंकर (अर्ध प्रसंस्कृत सीमेंट) की गुणवत्ता बता देता है।
अभी तक क्लिंकर की जांच एक्स-रे तकनीक से की जाती थी, जिसमें चार घंटे तक का समय लगता था। इस दौरान यदि क्लिंकर की गुणवत्ता खराब पाई जाती थी, तो प्रक्रिया दोबारा करनी पड़ती थी, जिससे ऊर्जा और संसाधनों की भारी बर्बादी होती थी।
आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. एनएम अनूप कृष्णन और पीएचडी शोधकर्ता शेख जुनैद फयाज की यह खोज कम्युनिकेशंस इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित हुई है। यह तकनीक पारंपरिक जांच के मुकाबले 88 फीसदी तक ज्यादा सटीक है।
प्रो. कृष्णन के अनुसार, एक्स-रे तकनीक में जहां चार घंटे लगते हैं, वहीं यह एआई मॉडल दस लाख गुना तेज है और उत्पादन के दौरान ही सुधार की सुविधा देता है। शोधकर्ता फयाज का कहना है कि यह तकनीक न केवल सीमेंट उद्योग, बल्कि अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं को भी बदल सकती है।
अंतरराष्ट्रीय सीमेंट कंपनियों ने इसमें गहरी रुचि दिखाई है। आईआईटी दिल्ली के प्रो. शशांक बिश्नोई और इटली की पोलीटेक्निको डि मिलानो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी इस परियोजना में योगदान दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए, तो इससे न केवल उत्पादन लागत कम होगी, बल्कि कार्बन उत्सर्जन कम करने में भी अहम भूमिका निभाएगी। इस तरह यह नवाचार भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को मजबूत करेगा और हरित निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।