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    जानिए, किस चहेते IAS अफसर ने दिया था केजरीवाल को 21 संसदीय सचिव बनाने का सुझाव

    By Ramesh MishraEdited By:
    Updated: Sun, 21 Jan 2018 07:13 AM (IST)

    आइएएस रहे राजेंद्र कुमार ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी बात अरविंद केजरीवाल अधिक मानते थे। सत्ता में आने के बाद उन्होंने उनको अपना प्रधान सचिव बनाया था।

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    जानिए, किस चहेते IAS अफसर ने दिया था केजरीवाल को 21 संसदीय सचिव बनाने का सुझाव

    नई दिल्ली [ जेएनएन ]। आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार आने पर 2015 में आइएएस राजेंद्र कुमार ही 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने की योजना के जनक थे। आइएएस रहे राजेंद्र कुमार ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी बात मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अधिक मानते थे। सत्ता में आने के बाद उन्होंने राजेंद्र कुमार को अपना प्रधान सचिव बनाया था।

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    एक समय ऐसा था कि मुख्य सचिव की जगह राजेंद्र कुमार ही महत्वपूर्ण मामलों में सरकार के अधिकारियों को निर्देशित करने लगे थे। यह बात 2015 की है। पूर्ण बहुमत की नई नई सरकार पूरे जोश में थी। उससे अधिक जोश में राजेंद्र कुमार थे। सूत्रों की मानें तो उन्होंने बेहतर तरीके से सरकार चलाने के लिए 21 संसदीय सचिव बनाने का सुझाव तो दिया ही था, बल्कि इसे लागू भी करवाया था।

    हालांकि उस समय पार्टी के कुछ नेताओं ने इसका विरोध भी किया था। सीबीआइ ने भ्रष्टाचार के एक मामले में राजेंद्र कुमार पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया था। केंद्र सरकार ने कुमार को निलंबित कर दिया था। उसके बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।



    दिल्ली में सिर्फ मुख्यमंत्री का बन सकता है संसदीय सचिव

    संवैधानिक नियम के अनुसार दिल्ली में मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव तो हो सकते हैं मंत्रियों के नहीं। इसके विपरीत मुख्यमंत्री ने 21 आप विधायकों को अपने मंत्रियों के संसदीय सचिव बना दिए। उनकी इसी गलती से विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ गई।

    दिल्ली विधानसभा में कुल 70 विधायक हैं। नियम के अनुसार इसके दस फीसद विधायकों को ही मंत्री बनाया जा सकता है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव को लाभ के पद से बाहर रखा गया है।

    मुख्यमंत्री के संसदीय सचिवों की संख्या निर्धारित नहीं की गई है। इसी आधार पर पहले की राज्य सरकारों में एक से लेकर तीन तक संसदीय सचिव बनाए गए हैं। इस परंपरा को तोड़ते हुए मार्च, 2015 मेें अरविंद केजरीवाल सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया। खास बात यह है कि इसमें से एक भी मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव नहीं थे।

    जब विपक्ष ने सरकार के इस कदम का विरोध किया तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। इसलिए संसदीय सचिव बनाने के लगभग तीन महीने बाद इन्हें लाभ के पद से बाहर रखने के लिए विधानसभा में बिल पारित किया। लेकिन, सरकार की यह कोशिश भी उसके विधायकों को बचाने में नाकाम साबित हुई है।