Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गुरु अमरदास जी का प्रकाशपर्व : भेदभाव दूर करने वाले सिखों के तीसरे गुरु अमरदास, जिन्होंने समरसता पर दिया बल

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Mon, 09 May 2022 05:48 PM (IST)

    Guru Amar Das Ji Parkash Purab 2022 गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा की समाप्त करने का भी प्रयास किया। उन्होंने इस प्रथा को स्त्री के अस्तित्व का विरोधी मानकर उसके विरुद्ध जबरदस्त प्रचार किया ताकि महिलाएं सती प्रथा से मुक्ति पा सकें।

    Hero Image
    समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में गुरु अमरदास जी का बड़ा योगदान है।

    डा. दलबीर सिंह मल्होत्रा। सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी का जन्म 15 मई 1479 को अमृतसर के गांव बासरके में पिता तेजभान एवं माता लक्ष्मी जी के घर हुआ था। गुरु अमरदास जी बड़े आध्यात्मिक चिंतक थे। वे दिन भर खेती और व्यापार के कार्यों में व्यस्त रहने के बावजूद हरि नाम का सिमरन करने में लगे रहते थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    एक बार उन्होंने अपनी पुत्रवधू से बाबा नानक द्वारा रचित एक 'शबद' सुना। उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके चरणों में जा विराजे। उन्होंने 60 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु बना लिया और लगातार 12 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की। उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर गुरु अंगद देव जी ने 72 वर्ष की आयु में उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर 'गुरुपद' सौंप दिया। इस प्रकार वे सिखों के तीसरे गुरु बन गये।

    मध्यकालीन भारतीय समाज सामंतवादी तथा रूढि़वादी होने के कारण अनेक सामाजिक कुरीतियों से ग्रस्त था। जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या-हत्या, सती-प्रथा जैसी अनेक बुराइयां समाज में प्रचलित थीं। ये बुराइयां समाज के स्वस्थ विकास में अवरोध बनकर खड़ी थीं। ऐसे कठिन समय में गुरु अमरदास जी ने इन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया।

    उन्होंने समाज को विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों से मुक्त करने के लिए सही मार्ग भी दिखाया। जाति-प्रथा और ऊंच-नीच को समाप्त करने के लिए गुरु जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त किया। उस जमाने में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार पंगतें लगा करती थीं, लेकिन गुरु अमरदास जी ने सभी के लिए एक ही पंगत में बैठकर लंगर छकना अर्थात भोजन करना अनिवार्य कर दिया। 'पहले पंगत पाछे संगत'। कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह अकबर गोइंदवाल साहिब आया तो उसने भी 'संगत' के साथ 'पंगत' में बैठकर भोजन किया। इतना ही नहीं, छुआछूत की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने गोइंदवाल साहिब में एक 'सांझी बावली' का निर्माण भी कराया, जिसमें से कोई भी बिना भेदभाव के इसके जल का प्रयोग कर सकता था।

    सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाने वाले पहले समाज सुधारक गुरुजी ही थे। उनके द्वारा रचित गुरुवाणी में सती प्रथा का जोरदार खंडन किया गया है। गुरु साहिब ने एक सितंबर, 1574 को दिव्य ज्योति में विलीन होने से पहले अपने दामाद भाई जेठाजी को 'गुरुपद' सौंप दिया था, जो चतुर्थ गुरु रामदास जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने 21 बार हरिद्वार की पैदल फेरी लगाई थी। समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में गुरु अमरदास जी का बड़ा योगदान है।

    [सिख संस्कृति के अध्येता]

    comedy show banner
    comedy show banner