बड़ा सवालः सुनवाई की रफ्तार ही सुस्त है तो पॉक्सो केस का एक साल में कैसे होगा निपटारा
विशेषज्ञों का कहना है कि पॉक्सो के लंबित मामलों को खत्म करने के लिए विशेष जज भी होना चाहिए। हर साल 1500 नए मामले दिल्ली में हर साल पॉक्सो के करीब 1500 नए केस सामने आते हैं।
नई दिल्ली (मनोज दीक्षित)। बच्चों के साथ बढ़ती दुष्कर्म की घटनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल ऑफेंसेस (पॉक्सो) एक्ट को संशोधित कर नया कानून बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने जिला कोर्ट, स्पेशल कोर्ट सहित सभी अदालतों को एक साल में इस तरह के मामले निपटाने के आदेश दिए हैं। वही, हकीकत में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि इससे संबधित मामलों की सुनवाई की रफ्तार सुस्त है।
दिल्ली की बात करें तो यहां 6110 केस लंबित हैं, जिनकी सुनवाई 14 कोर्ट में चल रही है और सुनवाई की रफ्तार को देखते हुए इनका एक साल में निपटारा मुश्किल है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अंजनी मिश्रा के मुताबिक इन मामलों के ट्रायल में कई तरह की समस्याएं हैं, जिन्हें पहले खत्म करना होगा। पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 35(2) के अनुसार चार्जशीट दायर होने के बाद एक साल में केस का निपटारा होना चाहिए, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता है। मामले एविडेंस स्टेज पर हों तो कुछ नहीं कर सकते।
बता दें कि दिल्ली में लंबित 6110 केसों में से 4155 एविडेंस स्टेज पर हैं। मतलब किसी में गवाही हो रही है तो किसी में फोरेंसिक रिपोर्ट या डीएनए रिपोर्ट का इंतजार है। कई में दस्तावेज फाइल होना बाकी है। इस तरह सुनवाई टलती रहती है और केस लंबा खिंचता रहता है। निचली अदालत सें सजा मिलने के बाद भी दोषी के पास हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति से गुहार लगाने का अधिकार होता है, जिसमें एक साल से ज्यादा का वक्त आसानी से निकल जाता है। ऐसे में अपील, पुनर्विचार व दया याचिका का निपटारा भी जल्द हो।
दिल्ली में लंबित पॉक्सो के मामलों की बात करें तो उनका निपटारा 2025 में खत्म होगा, लेकिन तब तक 12000 नए केस जुड़ चुके होंगे।
ऐसे तेज होगा ट्रायल
-डीएनए टेस्ट और फोरेंसिक रिपोर्ट तैयार करने में करीब एक साल का वक्त लग जाता है, क्योंकि दिल्ली में एक ही फोरेंसिक लैब है। दिल्ली के हर जिले में एक लैब यानी 11 जिलों में 11 लैब होनी चाहिए।
-रिपोर्ट देने का वक्त तय होना चाहिए। अगर तय वक्त में रिपोर्ट नहीं मिलती है तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
- दिल्ली में पॉक्सो कोर्ट की कमी है। राजधानी की 14 अदालतों में पॉक्सो एक्ट के तहत सुनवाई हो रही है, लेकिन इनमें हत्या, हत्या का प्रयास, डकैती जैसे कई संगीन मुकदमों की भी सुनवाई होती है।
-राजधानी में करीब 30 पॉक्सो कोर्ट बनें और उनमें इनके अलावा किसी और मुकदमे की सुनवाई न हो।
-पॉक्सो केस में महिला एसआइ जाच अधिकारी होती हैं, लेकिन दिल्ली पुलिस में इनकी संख्या सिर्फ एक हजार है। इनकी संख्या बढ़ाने पर ध्यान देने की जरूरत है।
-सरकारी वकील पॉक्सो के साथ अन्य मामलों के भी मुकदमे लड़ते है। पॉक्सो कोर्ट के सरकारी वकील केवल पॉक्सो मामल ही देखें, अभी तक दिल्ली में इनकी संख्या 14 है।
इस पर भी दिया जाए ध्यान
कोर्ट पहुंचने के बाद पीड़िता को दिल्ली राज्य विधिक सेवा आयोग का वकील मिलता है। पॉक्सो मामलों में एफआइआर दर्ज होते ही पीड़िता को कानूनी सहायता मिले, जिससे उसके मामले में देरी न हो। नेशनल चिल्ड्रेन ट्रिब्यूनल बने, जो पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए काम करे। करीब 67 फीसद मामलों में पीड़िता बयान से मुकर जाती हैं, इसलिए इसको लेकर भी कड़े नियम बनें। कई मामलों में पीड़िता और परिजनों को धमकाया जाता है, जिससे केस खिंचता जाता है। पुलिस कोर्ट के आदेश पर ही सुरक्षा देती है। गवाह, पीड़ित व उसके परिवार की सुरक्षा के लिए अलग से कोई नीति बने। पॉक्सो मामलों के लंबित होने, निस्तारण और दूसरी बार दोषी का कोई रिकॉर्ड नहीं होता है, ऐसे अपराधियों का रिकॉर्ड रखने के लिए तकनीक विकसित होनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि पॉक्सो के लंबित मामलों को खत्म करने के लिए विशेष जज भी होना चाहिए। हर साल 1500 नए मामले दिल्ली में हर साल पॉक्सो के करीब 1500 नए केस सामने आते हैं। मौजूदा केस निस्तारण की बात करें तो इसकी दर 12 फीसद है। दिल्ली में सबसे अधिक 1467 लंबित केस तीस हजारी कोर्ट में हैं और सबसे कम 483 द्वारका कोर्ट में हैं। रोहिणी कोर्ट के वकील कैलाश तिवारी के मुताबिक जिन इलाकों में पॉक्सो मामलों की संख्या अधिक है वहा जागरूकता व सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत है।