डरावनी कहानियों से जुड़ा है दिल्ली की "हांटेड वॉक" का इतिहास, वीकेंड में करें सैर; जाने से पहले पढ़ें डिटेल
Delhi Haunted Heritage Walk ऐतिहासिक स्थानों में दिलचस्पी भी है तो आप इसका हिस्सा बन सकते हैं। इसकी शुरुआत नई दिल्ली इलाके में फिरोजशाह तुगलक के बनाए मालचा महल से की गई है। इसके बाद भूली भटियारी फिरोजशाह कोटला और तुगलकाबाद के किले में इस वॉक की शुरुआत की जाएगी।
नई दिल्ली [उदय जगताप]। भारत का हर एक नगर अपने में इतिहास का पूरा एक कालखंड समेटे है। अगर बात राजधानी दिल्ली की करें तो महाभारत काल से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण रहा है।
दसवीं शताब्दी के बाद विदेशी आक्रांताओं के यहां आने और फिर बस जाने की कहानी हर किसी को जुबानी याद है। लेकिन, यहां शासन करने वालों की बनाई इमारतों से पांच सौ से अधिक सालों में कई कहानियां और जुड़ गई हैं।
इन कहानियों को लोगों को पहुंचाने के लिए और इतिहास से रूबरू कराने के लिए दिल्ली टूरिज्म टूरिज्म ट्रांसपोर्टेशन डेवलपमेंट कारपोरेशन (डीटीटीडीसी) हांटेड वॉक लेकर आया है। अगर आप डरावनी कहानियों में यकीन रखते हैं।
ऐतिहासिक स्थानों में दिलचस्पी भी है तो आप इसका हिस्सा बन सकते हैं। इसकी शुरुआत नई दिल्ली इलाके में फिरोजशाह तुगलक के बनाए मालचा महल (Malcha Mahal) से की गई है। इसके बाद सेंट्रल रिज क्षेत्र में स्थित भूली भटियारी, फिरोजशाह कोटला और तुगलकाबाद के किले में इस वॉक की शुरुआत की जाएगी।
डीटीटीडीसी की वेबसाइट से करें बुकिंग
वॉक के लिए डीटीटीडीसी की वेबसाइट से बुकिंग की जा सकती है। इसके लिए एक हजार रुपये शुल्क रखा गया है। मालचा महल का रास्ता सरदार पटेल मार्ग के पास से होकर जाता है।
यह इलाका वन विभाग के अधीन है। चारों ओर जंगल फैला हुआ है। बीच में एक सराय बनी है। जिसे फिरोजशाह तुगलक ने 1325 में शिकारगाह के तौर पर बनाया था। डीटीटीडीसी ने यहां हुई घटनाओं के चलते इसे हान्टेड हाउस माना है। इसलिए इसे हांटेड वॉक नाम दिया है।
"दहलीज शब्द से आया दिल्ली का नाम"
इसकी शुरुआत मुख्य प्रवेश द्वार से होती है। बीच में डामर की टूटी-फुटी सड़क है। चारों ओर जगंल है। यहां बड़ी तादाद बंदर दिखाई पड़ते हैं। इन्हीं के बीच से गुजरकर मालचा महल ले जाया जाता है।
निष्ठा जोशी को इस वॉक के समन्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे एक कहाानियों के जरिये पर्यटकों को बांधने का काम करती हैं। वॉक की शुरुआत में वो बताती हैं कि दिल्ली का नाम दहलीज शब्द से आया है।
मध्य एशिया से आक्रांता आने पर लोग आगरा, ग्वालियर जैसे इलाकों में चले जाते थे। दक्षिणी हिस्से से हमला होने पर अंबाला के जरिये लााहौर और काबुल तक पहुंचा जा सकता था।
सब यहीं से इसी इलाके से गुजरते थे। दहलीज का अपभ्रंश बाद में दिल्ली हो गया। वे अपनी अंदाज से पर्यटकों को खूब बांधती हैं। कहती हैं यह इलाका सेंट्रल रिज क्षेत्र कहलाता है। एक तरफ यमुना नदी और दूसरी तरह अरावली की पहाडियों से घिरा है।
दिल्ली में बनाई गईं थी 7 राजधानियां
दिल्ली में सात राजधानियां बनाई गईं थी। यह इलाका उनमें से एक है। जिसे फिरोजशाह तुगलक ने बनाया था। वे पर्यटकों के साथ कुछ सौ मीटर आगे बढ़ती हैं और इस इलाके के हान्टेड होने की दास्तां बयां करती हैं। वे शुरुआत 1978 में घटे रंगा-बिल्ले के कारनामे से करती हैं।
कहती हैं जिन दो लड़कियों के साथ दुष्कर्म कर हत्या उन्होंने की थी, उन्हें इसी जंगली इलाके में लाया गया था। वे कहती हैं यहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों को आज भी कुछ आहटें आती हैं। हालांकि वे कही-सुनी बातों का जिक्र करती हैं और डरावनी कहानियों को आपके विश्वास पर छोड़ देती हैं।
आगे बढ़ते हुए वे राष्ट्रपति भवन जो अंग्रेजों के शासन के वक्त वायसराय का घर हुआ करता था तब का किस्सा सुनाती हैं। निष्ठा बताती हैं यहां गांव हुआ करते थे। जिनमें 189 घर थे।
जब वायसराय का आलीशान घर बन रहा था तब इन लोगों को यहां से हटाने के लिए अंग्रेजों ने तोपों का इस्तेमाल किया था। कई लोगों की जानें इसमें चली गईं थीं। कई लोगों ने यहां अनहोनी गतिविधियां महसूस की हैं। इसके बाद वे मालचा महल के मुख्य द्वार की ओर चल पड़ती हैं।
अंदर जाने के बाद पीछे मुड़कर न देखें
लियाकत बेगम का किस्सामालचा महल के द्वार पर पहुंचकर निष्ठा अपने हाथों में लीं कुछ तस्वीरें दिखाती हैं। कहती हैं यह लियाकत बेगम है। उनके साथ बेटा साइरस और बेटी शकीना है। यह तस्वीर मालचा महल की छत पर ली गई है। यह तीनों यहीं रहे और उनकी मौत यहीं हुई। अंदर प्रवेश से पहले वे पीछे न मुड़कर देखने की सलाह देती हैं। फिर अंदर आकर लियाकत बेगम के रहने का कक्ष दिखाते हुए उनका किस्सा सुनाती हैं।
लंदन की महिला ने की थी खुदकुशी
निष्ठा कहती हैं, 1980 में लंदन से एक महिला आईं और उन्होंने खुद को अवध के नाम का वंशज बताया। कहां, उनके रहने के लिए महल की व्यवस्था भारत सरकार करे।
वे थोड़े दिन नई दिल्ली के वीआइपी लांज में रहीं। इसके बाद सरकार ने उन्हें माल्चा में रहने की जगह दी। 1985 के मई महीने में वे अपने बेटे और बेटी, कुछ कुत्तों और नौकरों के साथ यहां रहने लगीं। लेकिन, 2003 में उन्होंने खुदकुशी कर ली।
बेटी शकीना की हुई थी संदिग्ध मौत
उन्होंने अपने हार में से हीरा निकालकर उसे पीसकर पी लिया। उनके बच्चे दस दिनों तक उनकी लाश अपने साथ रखे रहे। बाद में इसी जंगल में उन्हें दफना दिया गया। इस दौरान निष्ठा उनकी रायल्टी के किस्से भी सुनाती हैं। उनकी आलिशान क्राकरी के बारे में भी बताती हैं।
आगे की कहानी बताते हुए वह कहती हैं, कि कुछ सालों बाद उनकी बेटी शकीना की संदिग्ध मौत हो गई। 2017 में साइरस भी चल बसे। उनका शव यहां कई दिनों तक पड़ा रहा। कहते हैं कि शकीना की मौत के बाद साइरस उनके शव के साथ कई दिनों तक रहे थे। वे कहती हैं ऐसी कहानियों ने इस इलाके को हान्टेड हाउस बना दिया है।
राष्ट्रपति भवन का नजारा
आखिर में सभी पर्यटकों को महल की छत पर ले जाया गया। यूं तो यहां पहुंचने के लिए कई सीढ़यां हैं। लेकिन, सैकड़ों वर्ष गुजरने के बाद यह जर्जर हो चुकी हैं। सिर्फ एक सीढ़ी ऊपर जाती है। इसके जरिये सभी छत पर पहुंचते हैं। शाम ढल रही है। पूर्व दिशा में राष्ट्रपति भवन की इमारत दिखाई दे रही है। जो विद्युत रोशनी से जगमग है।
पश्चिम में सूरज अस्त हो रहा है। उसकी लालिमा इतिहास के एक पूरे अध्याय को समेटते हुए पृथ्वी के दूसरे छोर में जाती दिखाई देती है। यहां निष्ठा अपनी कहानी को विराम देती हैं और कहती हैं कि आप में से कई लोगों को शायद भूत की कहानियां काल्पनिक लगें। यह आपका विश्वसास है। लेकिन, यहां के रहने वालों के किस्से इन्हें लोगों की स्मृतियों में हमेशा जिंदा रखेंगे।
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