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Hindi Diwas 2021 : अंग्रेजी से पिछड़ रही हिंदी अपने ही घर में हुई बेगानी

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि 125 करोड़ से अधिक की आबादी में 87 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा बोली और 90 प्रतिशत से अधिक भारतीयों द्वारा समझी जाने वाली भाषा मात्र 5-6 प्रतिशत लोगों द्वारा बोले और इस्तेमाल में लाई जाने वाली अंग्रेजी भाषा से पिछड़ गई है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 14 Sep 2021 06:39 PM (IST)Updated: Tue, 14 Sep 2021 06:40 PM (IST)
Hindi Diwas 2021 : अंग्रेजी से पिछड़ रही हिंदी अपने ही घर में हुई बेगानी
14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था।

नई दिल्ली हरेश कुमार। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए देवनागिरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को संपूर्ण भारत की प्रशासनिक भाषा के तौर पर स्वीकार किए जाने की अनुशंसा की थी। इसके पीछे गांधी जी का यह विचार था कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जो संपूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरो सकती है। गांधी जी की इसी भावना को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था और तभी से प्रत्येक साल हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाते हैं।

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दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि 125 करोड़ से अधिक की आबादी में 87 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा बोली और 90 प्रतिशत से अधिक भारतीयों द्वारा समझी जाने वाली भाषा मात्र 5-6 प्रतिशत लोगों द्वारा बोले और इस्तेमाल में लाई जाने वाली अंग्रेजी भाषा से पिछड़ गई है। इसका कारण जानने के लिए हमें ज्यादा प्रयास करने की जरूरत नहीं है और ना ही गंभीर मंथन की जरूरत है।

हमारे देश के नेताओं ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा तो दे दिया, लेकिन प्रशासनिक कामकाज की भाषा अंग्रेजी ही बनी रही। नौकरशाहों को कभी यह जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि हिंदी को उसका वास्तविक अधिकार दिये जाने की जरूरत है। इसके कारण लोगों के आर्थिक पहलुओं पर भी हिंदी और अंग्रेजी का असर देखा जा सकता है।

देश में अधिकतर जगहों पर सरकारी फाइलों में कामकाज का ज्यादातर भाग अंग्रेजी में ही होता है। आज भी व्यावसायिक स्तर की पढ़ाई अंग्रेजी में ही होती है। यहां तक कि चिकित्सा, इंजीनियरिंग, वकालत जैसे पेशे की पढ़ाई के लिए आजादी के 7 दशकों के बीत जाने के बाद भी हिंदी में अच्छी किताबों का अभाव है। ऐसा नहीं है कि हमारे यहां हिंदी में लिखने वालों की कमी है। सरकार की तरफ से इस बारे में कोई प्रयास किया ही नहीं गया है और जो भी प्रयास हुए हैं, वे सारे आधे-अधूरे हुए हैं।

मैकाले ने इस देश को गुलामी की जंजीरों से जकड़ने के लिए अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार की वकालत की थी और आजादी के बाद भी देश के नेताओं ने इससे मुक्ति पाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। हां, यह सही है कि इस देश में विभिन्न भाषा को बोलने वाले लोग हैं, लेकिन एकमात्र हिंदी ही वह भाषा है, जो सभी को एकसूत्र में पिरो सकती है।

प्रत्येक साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। कहीं, सरकारी कार्यालयों में हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है तो कहीं पूरे महीने हिंदी के नाम पर करोड़ों रुपये सरकारी कोष से बहा दिए जाते हैं, लेकिन हिंदी के उद्धार के लिए कुछ नहीं किया जाता। हिंदी के साथ आजादी के बाद से लगातार सौतेला व्यवहार किया जाता है। भारत का हर आम-आदमी पूछ रहा है आखिर कब तक हिंदी को उसके वास्तविक अधिकार से वंचित किया जाता रहेगा? क्या सरकार से पास इसका कोई जवाब है?


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