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    तिहाड़ जेल में कैदियों से दुर्व्यवहार और वसूली के आरोप में अधिकारी की सजा बहाल, HC ने कैट का आदेश किया रद

    Updated: Fri, 03 Oct 2025 05:12 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल के सहायक अधीक्षक के खिलाफ दुर्व्यवहार के आरोपों पर वेतन वृद्धि रोकने का फैसला बरकरार रखा है। 2005 के इस मामले में कैदियों ने अधीक्षक पर दुर्व्यवहार और जबरन वसूली के आरोप लगाए थे। कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें अधीक्षक को राहत दी गई थी और अनुशासनात्मक प्राधिकारी के फैसले को सही ठहराया।

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    कैदियों से जबरन वसूली पर अधिकारी का दो वेतन वृद्धि रोकने की सजा को हाई कोर्ट ने किया बहाल

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। तिहाड़ जेल के एक सहायक अधीक्षक पर वर्ष 2005 में जेल के कैदियों के साथ दुर्व्यवहार और जबरन वसूली के आरोपों में लगाई गई दो वेतन वृद्धि रोकने की सजा को दिल्ली हाई कोर्ट ने बहाल कर दिया। न्यायमूर्ति नवीन चावला व न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने तिहाड़ जेल महानिदेशक द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित उक्त आदेश को रद कर दिया। इसमें अनुशासनात्मक और अपीलीय प्राधिकारियों के आदेशों को रद कर दिया गया था।

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    कैट ने यह भी निर्देश दिया था कि सहायक अधीक्षक कानून के अनुसार सभी परिणामी लाभों का हकदार होगा। 2003 में जेल संख्या-एक में तैनात सहायक अधिकारी पर तीन विचाराधीन कैदियों ने ट्रायल कोर्ट में दुर्व्यवहार और जबरन वसूली का आरोप लगाते हुए शिकायतें दर्ज कराई थीं। अदालतों द्वारा शिकायतों को जेल प्राधिकरण को भेज दिया गया था।

    मामले में अधिकारी के खिलाफ 2004 में कदाचार के आरोप के साथ आरोपपत्र जारी किया गया था। सहायक अधीक्षक ने आरोपों से इन्कार किया और कार्यवाही के लिए एक जांच अधिकारी नियुक्त किया था। 2005 में जांच अधिाकरी ने अपनी रिपोर्ट में अधिकारी पर मामला सिद्ध पाया था।

    अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने जांच अधिकारी के निष्कर्षों से सहमति व्यक्त करते हुए दो वेतन वृद्धियों को स्थायी रूप से रोकने का आदेश दिया। हालांकि, इसके विरुद्ध अधिकारी की अपील अपीलीय प्राधिकारी ने खारिज कर दी, जबकि कैट ने अधिकारी को राहत दी थी। इस निर्णय को तिहाड़ जेल महानिदेशक ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

    पीठ ने कहा कि अदालत विचाराधीन कैदी की गवाही को नजरअंदाज नहीं कर सकती। कैदी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसने केवल सहायक अधीक्षक का नाम पीटने व रुपये मांगने के लिए लिया था। पीठ ने कहा कि यह एक सीधा और स्पष्ट आरोप था जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता था।

    अदालत ने कहा कि कैट का निर्णय प्रासंगिक सामग्री की अनदेखी करने के कारण त्रुटि से ग्रस्त है। ऐसे में कैट का 21 जुलाई 2008 का आदेश निरस्त किया जाता है और अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा सात नवंबर 2005 के आदेश द्वारा लगाया गया जुर्माना बहाल किया जाता है। इसे अपीलीय प्राधिकारी ने भी बरकरार रखा था।

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