Delhi: प्रॉक्सी वकील के रूप में अदालत में पेश हुई कानून की छात्रा के खिलाफ प्राथमिकी हाई कोर्ट ने की रद
दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने दो मामलों में स्थगन लेने के लिए एक वकील के निर्देश पर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रॉक्सी वकील के रूप में पेश हुई कानून की छात्रा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद किया।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दो मामलों में सुनवाई की अगली तारीख लेने के लिए एक वकील के निर्देश पर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रॉक्सी वकील के रूप में पेश होने पर कानून के प्रथम वर्ष की छात्रा के खिलाफ हुई प्राथमिकी को दिल्ली हाई कोर्ट ने रद कर दिया।न्यायमूर्ति अनीष दयाल की पीठ ने कहा कि अधिवक्ता के साथ इंटर्नशिप करने वाली कानून की छात्रा या तो भ्रमित थी या फिर स्थिति को संभालने में असमर्थ थी।
पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि बार काउंसिल में नामांकित होने और बार में भर्ती होने से पहले किसी भी अदालत के समक्ष याची को प्रॉक्सी वकील या वकील के रूप में पेश नहीं होना चाहिए। कानून की छात्रा ने द्वारका कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के 20 अगस्त के आदेश को चुनौती दी थी।
छात्रा ने कहा था कि मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट ने जब कुछ सवाल पूछे तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था क्योंकि उन्हें मामले की जानकारी नहीं थी और वह सिर्फ सुनवाई की अगली तारीख लेने के लिए गई थी।विधि छात्रा ने कहा कि वह हिंदी माध्यम की छात्रा है और उसे कानूनी शब्दावली का कोई ज्ञान नहीं था और इसलिए वह यह नहीं समझ की थी कि अदालत उनसे क्या पूछ रही थी।
उचित जवाब नहीं मिलने पर मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया था और याची के खिलाफ आठ सितंबर को द्वारका बार एसोसिएशन के सचिव ने प्राथमिकी की थी।मामले में पेश किए गए रिकार्ड को देखते हुए पीठ ने कहा कि इस मुद्दे को ट्रायल कोर्ट के समक्ष असंगत रूप से बढ़ाया गया।
अदालत ने कहा कि यह देखते हुए कि मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट ने सुनवाई के दौरान दर्ज किया था कि याचिकाकर्ता ने जानकारी दी थी कि वह प्रथम वर्ष की विधि छात्रा है और सुनवाई की अगली तारीख लेने के लिए भेजने वाले अधिवक्ता ने भी इस तथ्य का समर्थन किया था।
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दिल्ली सरकार पहुंची सुप्रीम कोर्ट के द्वार
उधर, छावला इलाके में एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। सरकार ने कहा है कि यौन अपराधियों और मानसिक रूप से विकृत लोगों की रिहाई सामाजिक हितों के खिलाफ है। 14 फरवरी, 2012 को तीन युवकों ने 19 साल की युवती को कार से अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म करने के बाद उसे मार डाला था।
इस अपराध ने लोगों की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। सात नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के तीनों आरोपितों को बरी कर दिया। कहा कि जांच में कई खामियां हैं। अब दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। दिल्ली सरकार ने फैसले को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि इसमें मेडिकल, वैज्ञानिक और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की पूरी तरह से अनदेखी की गई है।