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    नव संकल्प : इन बच्चों ने छोटी उम्र में हासिल किया मुकाम, जानिए कैसे सपना कर दिया साकार

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Sat, 01 Jan 2022 09:03 PM (IST)

    गाजियाबाद के आरव सेठ की आयु अभी बेशक 14 वर्ष हैलेकिन उनका विजन बहुत विशाल एवं स्पष्ट है। जब आठ वर्ष के थे तभी से पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुट गए। वे दोस्तों को उनके जन्मदिन पर महंगे गिफ्ट नहीं बल्कि पौधे देते हैं।

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    नव संकल्प : किशोरों-बच्चों का बढ़ता विश्वास, छोटी उम्र में बनाते दूर के लक्ष्य

    नई दिल्ली [यशा माथुर]। नया वर्ष आ गया है और आप सभी बच्चे अपनी ऊंची कल्पनाओं के साथ आने वाले वर्षों के लिए अपना सुनियोजित लक्ष्य तय करने में जुट गए होंगे। आजकल के बच्चे आने वाले दो या तीन वर्षों की ही नहीं सोचते, उनका लक्ष्य कम से कम पंद्रह-बीस साल आगे तो होता ही है। वे अपने लक्ष्य के अनुसार ही चीजों को देखते, समझते और अपनी योजना बनाते हैं। दीर्घकालीन योजना के साथ ही वे अपने सपने सजाते हैं...

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    सर्दी की शाम थी। कुछ मेहमान घर आए। दो छोटे बच्चे उनके साथ थे, कक्षा दो में पढ़ने वाला रणवीर और तेरह साल की जैस्मीन। दोनों बच्चे अलग कमरे में बैठकर खेलने लगे। इसी बीच उन्होंने कागज और पेंसिंल मांगी। हमने दी तो वे अपने मन के अनुरूप चित्रकारी करने लगे। कुछ देर बाद हमने उनकी ड्राइंग देखनी चाही। छोटे से रणवीर ने कागज पर चार मानीटर बनाए और उनके तारों को एक माउस से जोड़ दिया। उसने अपने चित्र का शीर्षक दिया-गेमिंग स्टेशन! (चित्र के साथ लिखा था- जब मैं उन्नीस साल का हो जाऊंगा)। उसकी कल्पना एक माउस से चार मानीटर नियंत्रित करने की थी, लेकिन हमें आश्चर्य इस बात का था कि अभी वह मात्र सात साल का है और उसने अपनी कल्पना के घोड़े उन्नीसवें साल तक पहुंचा कर वहां तक की योजना आज ही बना ली थी। दोस्तो,उसकी तरह दीर्घकालीन योजना बनाने की खूबी आप सभी में दिखाई देती है क्योंकि तमाम बच्चों ने ऐसा करके दिखाया भी है।

    आठ वर्ष की आयु में जुड़ गए अपने पर्यावरण मिशन से

    गाजियाबाद के आरव सेठ की आयु अभी बेशक 14 वर्ष है,लेकिन उनका विजन बहुत विशाल एवं स्पष्ट है। जब आठ वर्ष के थे,तभी से पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुट गए। भावी पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल हो,इसके लिए वह वन टाइम प्लास्टिक का इस्तेमाल कम कर,अधिक से अधिक पेड़ लगाने का प्रयास करते हैं। अकेले दिल्ली-एनसीआर में यह अपनी टीम (मिशन 100 करोड़ ट्री) के साथ मिलकर हजारों पेड़ लगा चुके हैं। वे दोस्तों को उनके जन्मदिन पर महंगे गिफ्ट नहीं, बल्कि पौधे देते हैं। अभिभावकों से भी ऐसा करने के लिए कहते हैं। पौधारोपण के अलावा आरव यमुना एवं हिंडन नदी की सफाई अभियान से भी जुड़े हैं। इन्हें क्रोडेरा (वैश्विक आनलाइन फंड रेजिंग प्लैटफार्म) द्वारा जीईसी यंग चेंजमेकर अवार्ड से नवाजा जा चुका है। वह संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी गोल्स (2030) से भी जुड़े हैं। बताते हैं आरव, 'हम 'संडे फार सिक्योर फ्यूचर' नाम से एक मूवमेंट चला रहे हैं,जिसमें लोगों को पर्यावरण संरक्षण एवं वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करते हैं। इसका देश-विदेश में अच्छा असर हो रहा है। अनेक बच्चे इस अभियान से जुड़े हैं।'

    अंतरिक्ष से धरती ताक आईं सिरिशा

    आंध्र प्रदेश की रहने वाली सिरिशा बांदला बचपन में ही तारों, हवाई जहाजों और अंतरिक्ष की तरफ बेहद उत्सुकता से देखा करती थीं। उनकी नजर हमेशा आसमान में रहती। उनके सपनों में हमेशा आकाशगंगा ही रहती थी। अंतरिक्ष की ओर ताकने का उनका जुनून ऐसा था कि अंतत: वह अंतरिक्ष में गईं और अपना सपना पूरा करके ही लौटीं। न्यू मैक्सिको में रह रहीं एरोनाटिकल इंजीनियर बांदला वर्जिन गैलेक्टिक के अंतरिक्ष यान ‘टू यूनिटी’ में ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन और चार अन्य लोगों के साथ गत वर्ष जुलाई में अंतरिक्ष के छोर पर पहुंची थीं। अंतरिक्ष से लौटने पर उन्होंने कहा कि मैं जब छोटी थी तब से अंतरिक्ष में जाने के सपने देख रही थी और वास्तव में यह सपने के सच होने जैसा है। अंतरिक्ष में जाना और वहां से लौटने की पूरी यात्रा शानदार थी। दोस्तो,कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की तीसरी महिला बनीं सिरिशा बांदला। उनकी उपलब्धि पर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने बधाई दी और इसे राज्य के लिए गर्व की बात बताया।

    छुटपन में ही तय किया खिलाड़ी बनना

    10 साल की उम्र में हाकी स्टिक पकड़ी थी सिमरनजीत सिंह ने और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। टोक्यो ओलिंपिक में हाकी टीम की जीत के स्टार सिमरनजीत सिंह को बचपन से ही हाकी खेलने का शौक था। जब आठ साल के थे तब उन्होंने गांव के ग्राउंड में हाकी खेलना शुरू कर दिया था। पिता हल लेकर खेतों में निकलते थे और उनका आठ साल का बेटा सिमरजीत हाकी लेकर निकलता था। उनका जुनून देखकर पिता ने पैसों की परवाह किए बिना उनकी ट्रेनिंग शुरू करवा दी। मार्गदर्शन व मेहनत का नतीजा यह निकला कि सिमरनजीत ने दो गोल कर भारतीय टीम को टोक्यो में 41 साल बाद ओलिंपिक में कांस्य पदक जिता दिया। सिमरनजीत सिंह कहते हैं कि बचपन से ही मेरा हाकी के प्रति लगाव था। बचपन में जो सपना देखा था, अब वह पूरा हो गया है। सिमरनजीत सिंह भारतीय हाकी टीम के मिडफील्डर हैं।

    अब देखिए जम्मू-कश्मीर की बेटी माव्या सूदन बचपन से ही एयरफोर्स में जाना चाहती थीं। हमेशा फाइटर प्लेन उड़ाने की बातें करती थीं। 23 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मंजिल को पा लिया। अपने राज्य की वह पहली ऐसी बेटी हैं जिन्हें भारतीय वायुसेना में महिला फाइटर पायलट बनने का गौरव हासिल हुआ है। राजौरी की रहने वालीं माव्या देश की 12वीं महिला फाइटर पायलट हैं। फाइटर पायलट के रूप में शामिल होने वाली वह राज्य की पहली महिला अधिकारी बन गई हैं।

    तीन वर्ष की आयु में तय कर लिया था जीवन का लक्ष्य

    11वीं की छात्रा वान्या सिंह डांसिंग में निपुण होने के बाद माडलिंग एवं अदाकारी में भी अपनी एक पहचान बनाना चाहती हैं। इसके लिए वान्या बकायदा एक्टिंग की कार्यशालाएं करती हैं। उनके पिता का सपना है कि 12वीं के बाद बेटी का दाखिला एनएसडी (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) में हो, जिसके लिए वान्या खुद भी काफी तैयारी कर रही हैं। वान्या कहती हैं,'जब हम कोई लक्ष्य बनाते हैं तो उससे मन में कोई दुविधा नहीं रहती। हम अपनी योजना पर सही तरीके से कार्य कर पाते हैं। लक्ष्य स्पष्ट होने से भटकाव कम होते हैं। इसका श्रेय मैं अपनी मां को देना चाहूंगी जो मेरी प्रेरणास्रोत रही हैं। उन्होंने हमेशा यही सीख दी है कि जो करो, मन से करो दबाव में नहीं। लोगों को समान रूप से देखो और कितनी भी सफलता क्यों न हासिल कर लो,जमीन से हमेशा जुड़े रहो। यह सब मैं कभी नहीं भूलती। इसलिए अपने लक्ष्य पर पूरी तरह फोकस रखकर आगे बढ़ती हूं। आगे मेरी योजना व मेरा सपना ब्यूटी पेजेंट प्रतियोगिता में शामिल होना है।'

    11 साल की उम्र में बनीं माडल

    माडल वान्या सिंह ने बताया कि जब मैं तीन वर्ष की थी,तभी से नृत्य का शौक लग गया। इसलिए छोटी उम्र में नृत्य का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। पढ़ाई से अधिक उसी में मन लगता था। अच्छी बात यह रही कि मां एवं पापा दोनों ने पूरा साथ दिया। जैसे-जैसे बड़ी हुई, मैंने कथक के साथ-साथ कंटेंपररी डांस भी सीखे। जब दस वर्ष की थी,तभी एक डांस परफार्मेंस के दौरान किसी ने मां को सुझाव दिया कि मुझे माडलिंग एवं एक्टिंग के क्षेत्र में प्रयास करना चाहिए। इस तरह 11-12 वर्ष की आयु में ही माडलिंग की भी शुरुआत हो गई। मैंने अब तक कई विज्ञापनों एवं शार्ट फिल्मों में काम किया है। छिटपुट थिएटर भी किए हैं। कैमरे के सामने जाना अच्छा लगता है। इससे नालेज भी बढ़ी है।

    पर्यावरण के बाल दूत

    एनवायरमेंट एक्टिविस्ट आरव सेठ का कहना है कि उन्हें नीति आयोग, डा. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर,सामाजिक न्याय मंत्रालय एवं एमएसएमई की संयुक्त पहल,सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) का 'बाल दूत बनने का अवसर मिला है। मैं मानता हूं कि आसपास के लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने के लिए उन्हें सही रूप में शिक्षित किया जाना जरूरी है। इसके लिए मैं ट्विटर,इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म का प्रयोग करता हूं। साथ ही, अपने यूट्यूब चैनल (अन-अर्थ),ब्लाग एवं पाडकास्ट (रिंग द बेल) के माध्यम से भी जागरूकता लाने का प्रयास करता हूं। कंटेंट जेनरेट करने से पहले बाकायदा रिसर्च करता हूं।

    हम कुछ बड़ा जरूर करेंगे

    बचपन से मेरे अंदर कुछ क्रिएट करने की भावना रही है। छोटा था तो कंप्यूटर मुझे बहुत रोमांचित करता था। उसे समझना, उस पर कुछ रचना करना मेरा सपना बन गया। उसे पढ़ते-पढ़ते मैंने बहुत सी चीजें जानीं। शुरू में रोबोटिक्स में मेरी रुचि थी लेकिन इसके लिए हार्डवेयर और बहुत पैसा चाहिए था, इसलिए मैं इसमें आगे नहीं बढ़ पाया। लेकिन प्रोग्रामिंग के जुनून के चलते मैंने गत वर्ष सितंबर में एक साफ्टवेयर 'अंग' बनाया है जिसे दिव्यांगों के लिए पायथन पर विकसित किया है। जो देख नहीं सकते वे भी इस पर वाट्सएप के जरिए चैटिंग कर सकते हैं। इससे हम पैसा नहीं कमाएंगे, मुफ्त देना चाहेंगे। लेकिन इसकी लागत के लिए हमारे व्यवसाय का सफल होना जरूरी है। हम तीन बच्चे स्टार्टअप पर काम कर रहे हैं। हमारा एक स्टार्टअप स्मार्ट होम का है जिसमें बिना रेनोवेशन के घर के पूरे बोर्ड बदल कर हर बिजली उपकरण को स्वचालित बना देंगे।

    दूसरा यंत्र जो हम बनाएंगे, वह पानी की मोटर के भरते ही बिजली की आपूर्ति रोक देगा। अभी तक सिर्फ सूचना देने वाले यंत्र ही बाजार में उपलब्ध हैं। हमारा यंत्र पानी की बर्बादी को बचा लेगा। अभी हमें रिसर्च के लिए कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से कुछ फंडिंग मिली है और आगे भी हम अच्छी फंडिंग की उम्मीद कर रहे हैं। अगले कुछ सालों में हम निश्चत रूप से कुछ बड़ा करेंगे, ऐसी हमारी योजना है।

    -प्रियांशु उपाध्याय प्रोग्राम डेवलपर, कानपुर (17 वर्ष, बारहवीं के छात्र)

    इनपुट:अंशु सिंह