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ई-पटाखों का तोहफा देने में जुटी सरकार, जानें- क्या है खास, कैसे करते हैं काम

ई-पटाखे बनाने को लेकर शोध पर काम शुरू हो गया है। ऊर्जा एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस मिशन से जुड़ा है। प्रधानमंत्री कार्यालय इस कार्ययोजना को निर्देशित कर रहा है।

By Amit MishraEdited By: Published: Tue, 23 Jan 2018 07:10 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jan 2018 01:36 PM (IST)
ई-पटाखों का तोहफा देने में जुटी सरकार, जानें- क्या है खास, कैसे करते हैं काम

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। बीती दिवाली दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध से प्रदूषण कम भले ही हुआ हो, लेकिन प्रतिबंध का व्यापक विरोध भी देखने को मिला। कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रतिबंध इस साल भी जारी रह सकता है। ऐसे में पटाखा प्रेमियों के लिए ई-पटाखा मुहैया कराने को लेकर केंद्र सरकार सक्रिय हो गई है। सस्ते ई-क्रैकर्स बनाने को लेकर शोध पर काम शुरू कर दिया गया है। ऊर्जा एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस मिशन से जुड़ा है और प्रधानमंत्री कार्यालय इस कार्ययोजना को निर्देशित कर रहा है।

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क्या है ई-पटाखा

वैज्ञानिकों की मानें तो ई-पटाखे आवाज और रोशनी के मामले में मौजूदा पटाखों के जैसे ही होंगे, लेकिन इनसे धुआं नहीं निकलेगा। शोर भी मानकों के अनुरुप होगा। सीएसआइआर (काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) लैबोरेट्री ने भी ई-पटाखे बनाने पर काम शुरु कर दिया है।

ऐसे काम करते हैं ई-पटाखे

अभी बाजार में एक-दो कंपनियों के ही ई-पटाखे उपलब्ध हैं। काफी महंगे होने की वजह से यह आम जनता से दूर हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की तरह होते हैं, जो पटाखों जैसी आवाज के साथ वैसी ही रोशनी भी करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक होने के कारण इनमें धुआं नहीं होता। ई-पटाखे चार्जेबल बैटरी से काम करेंगे और रिमोट से इन्हें चलाया जा सकेगा।

कहां तक पहुंची तैयारी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सचिव ए. सुधाकर के मुताबिक इसी माह इसे लेकर एक योजना बनाई गई है और दिवाली-2018 से पहले ई-पटाखों को बाजार में मुहैया कराने का लक्ष्य है। कोशिश की जा रही है कि सस्ते ई-पटाखे बाजार की इलेक्ट्रॉनिक सामानों की दुकानों पर उपलब्ध रहें। इनके अनार, फुलझड़ी और लड़ी वर्जन पर इस समय काम किया जा रहा है। आगामी छह से आठ माह में यह काम पूरा होने की उम्मीद भी है। इसके अलावा परंपरागत पटाखों को भी प्रदूषण रहित बनाने पर शोध किया जा रहा है। इसके लिए कई रसायनों को जांचा जा रहा है ताकि धुआं रहित पटाखे बनाए जा सकें। 

हानिकारक हैं पटाखे 

ई-पटाखे बाजार में बहतर विकल्प होंगे लेकिन यहां आपको यह भी बता दें कि बारूद से भरे पटाखे जहां पर्यावरण के लिए हानिकारक है वहीं सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं। तेज आवाज वाले पटाखों में बारूद, चारकोल, नाइट्रेट और सल्फर जैसे रसायनों का इस्तेमाल होता है, जिससे चिंगारी, धुआं और तेज आवाज निकलती है। ऐसे पटाखों के कारण हानिकारक रसायन गैस के रूप में हवा में फैल जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

इन बीमारियों को दावत देते हैं पटाखे 

पटाखों का हमारी सेहत पर क्या असर पड़ सकता है इस बारे में डॉक्टरों का कहना है कि पटाखों की वजह से चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, आंखों में लालिमा व खुजलाहट, कान के पर्दे पर असर या बहरापन हो सकता है। इतना ही नहीं सांस की नली में इन्फेक्शन, सांस लेने में दिक्कत, अस्थमा, ब्लड प्रेशर बढ़ना, यहां तक की हार्ट अटैक व पक्षघात का भी खतरा रहता है।

यह बेहद दुखद है

इस सबके बीच सबसे दुखद यह है कि पटाखों को बनाने वाले ज्यादातर बच्चे और किशोर होते हैं। इन लोगों पर खतरनाक रसायनों का भयावह असर होता है। कुछ सालों के बाद पटाखों के काम से जुड़े बच्चे बीमार होते जाते हैं और युवावस्था तक पहुंचते−पहुंचते उनकी मृत्यु हो जाती है। कई बार आग लगने की भयानक घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं जिसकी वजह से कई परिवार पूरी जिंदगी इन पटाखों के जख्म को नहीं भूल पाते हैं।  

 

कई घरों की खुशियां स्वाहा हो जाती हैं

अंत में सवाल यह भी है कि आखिर लोग पटाखे चलाने के लिए क्यों उतावले हैं यह समझ से बाहर है। हर साल पटाखों से न सिर्फ दुकानों में बल्कि घरों में भी आग लग जाती है। न जाने कितने लोग झुलस जाते हैं। इन हादसों में न जाने कितने घरों की खुशियां भी खत्म हो जाती हैं। अगर इन पटाखों से घर के सदस्य, पड़ोसी और हमारे आसपास का वातावरण प्रदूषण की चपेट में आता है तो हमारा क्या कर्तव्य बनता है, हमें यह सोचने की जरूरत है। तो क्या अब भी हम अपने स्वार्थ, अपनी खुशी और दिखावे के लिए पटाखे चलाते रहेंगे या फिर विकल्प के तौर पर ई-पटाखों की तरफ रुख करेंगे और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे।  

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