भारत में प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने की नई पहल, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के 100 मीटर हिस्से से निर्माण की शुरुआत
भारत पेट्रोलियम ने अनुपयोगी प्लास्टिक से सड़कें बनाने की जियोसेल तकनीक का पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया है। माना जा रहा है कि यह तकनीक विश्व में पहली बार इस्तेमाल हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक पूरे विश्व के लिए एक समस्या है और भारत इसमें मदद कर सकता है। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर इस तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है।

वीके शुक्ला, नई दिल्ली: प्लास्टिक से सड़कें बनाने के लिए तैयार की गई जियोसेल तकनीक का पेटेंट कराया जाएगा। भारत पेट्रोलियम ने केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) की ओर से इस तकनीक के परीक्षण के बाद पेटेंट के लिए आवेदन किया है।
माना जा रहा है कि भारत ही नहीं, पूरे विश्व में भी अभी तक इस तरीके का प्रयोग नहीं हुआ है । इस कार्य में लगे भारत पेट्रोलियम और CRRI के विज्ञानी इसे बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं ।
उनकी मानें तो प्लास्टिक पूरे विश्व की समस्या है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो आने वाले समय में भारत दूसरे देशों को भी इस मामले में मदद कर सकेगा।
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के 100 मीटर हिस्से पर काम शुरू
जियोसेल से सड़क बनाने के काम का आश्रम के पास एनएचएआई की ओर से बनाए जा रहे दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे के लूप पर शुक्रवार को उद्घाटन किया गया। यहां इसे 100 मीटर में प्रयोग किया जाएगा। सीआरआरआई की महानिदेशक डाॅ. एन कलैसेलवी ने उद्घाटन करते हुए इस प्रयास की सराहना की।
बता दें कि विश्व के अन्य प्रमुख देशों की तरह भारत में भी अनुपयोगी प्लास्टिक एक बड़ी समस्या है। भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत लगभग 11 किलोग्राम प्रति वर्ष हो गई है और बढ़ते औद्योगिकीकरण और उपभोक्तावाद के साथ इस संख्या के और बढ़ने की उम्मीद है।
विभिन्न अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि भारत भर में हर साल 58 लाख टन प्लास्टिक कचरा खुलेआम जलाया जाता है।
यह प्रथा न केवल वायु प्रदूषण में योगदान देती है, बल्कि हानिकारक प्रदूषक भी छोड़ती है, जिससे स्थानीय समुदायों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और जलवायु परिवर्तन की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
इस तरह से अनुपयोगी प्लास्टिक भी उपयोगी हो जाएगी
कुल प्लास्टिक कचरे का अनुमानित 30% अनियंत्रित लैंडफिल में फेंका जा रहा है। भारत पेट्रोलियम काॅरपोरेशन के मुख्य महाप्रबंधक डाॅ. रवि कुमार वी कहते हैं कि जियोसेल की परत का प्रयोग आने से अनुपयोगी प्लास्टिक भी उपयोगी हो जाएगी।
अनुपयोगी प्लास्टिक से जियोसेल की परत और प्लास्टिक शीट तैयार करने से खर्च में कम से कम 25 प्रतिशत की किफायत होगी। मगर इसके और कई बड़े फायदे भी हैं।
भारत पेट्रोलियम के मुख्य प्रबंधक डाॅ. महेश कस्तूरे कहते हैं कि लैंडफिल पर फेंका गया प्लास्टिक जिसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, कूड़ा बीनने वाले उसे छोड़ देते हैं और लैंडफिल पर इसका ढेर लग जाता है, इसके बाद ढेर नहीं मिलेगा।
परियोजना पर काम कर रहे सीआरआरआई के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. गगनदीप ने बताया कि शुक्रवार को जियोसेल से जिस भाग पर काम का उद्घाटन किया गया है। माैसम ठीक होने पर जल्द ही इस काम को शुरू किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इस तरह का यह पहला प्रयोग है, माना जा रहा है कि यह सड़क सामान्य से दोगुनी उम्र से भी अधिक चल सकेगी।
पेटेंट के लिए किया गया है आवेदन
सीआरआरआई की वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. अंबिका बहल ने कहा कि अनुपयोगी प्लास्टिक के जलाए जाने से होने वाला प्रदूषण रुकेगा, लोगों के रोजगार के मार्ग खुलेंगे, सड़कें मजबूत होंगी और अनुपयोगी प्लास्टिक की समस्या समाप्त होगी।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने इस बारे में रिपोर्ट मांगी है, सभी कुछ ठीक ठाक रहा ताे एक साल के अंदर इस पर काम शुरू हो जाएगा। भारत पेट्रोलियम के अधिकारी ने पेटेंट के आवेदन की पुष्टि की है।
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