जीबी रोड: बदनाम गलियों की महिलाओं के लिए फरिश्ता बनकर आईं प्रज्ञा दीदी, उनके बेटे-बेटियों को दिया नया जीवन
जीबी रोड की बदनाम गलियों में रहने वाली महिलाओं के लिए प्रज्ञा दीदी एक फरिश्ता बनकर आई हैं। उन्होंने इन महिलाओं और उनके बच्चों को कोठे वाली जिंदगी से ब ...और पढ़ें

चेतना राठौर, नोएडा। दिल्ली के रेडलाइट एरिया के तौर पर बदनाम जीबी रोड, यहां रहने वाली महिलाओं को सम्मान जनक जिंदगी मिले यह उनका एक सपना ही होता है। इनमें से काफी महिलाओं की जिंदगी गुमनामी और अंधेरे में ही खत्म भी हो जाती है। लेकिन इन महिलाओं और उनके बच्चों के जीवन में प्रज्ञा दीदी एक रोशनी बन कर आई हैं। उन्होंने जीबी रोड से कोठे पर जीवन काटने को मजबूर महिलाओं और उनके बेटे और बेटियों को निकालकर नया जीवन दिया।
प्रज्ञा ने रेड लाइट एरिया से महिलाओं और उनके बच्चों का निकाला। उन्होंने 15 साल पहले उन्हें अधिकार दिलाने की शुरुआत की और अब उनके बच्चों की शिक्षा, पालन-पोषण के साथ उन्हें स्वरोजगार दिलाकर आत्मनिर्भर भी बना रही हैं। दलदल से निकली बेटियां और बेटे अब पुणे, दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।

कोठे वाली जिंदगी से बाहर निकालने का किया प्रयास
प्रज्ञा बताती हैं कि सरकार की एक संस्था की ओर से एचआईवी से बचाव के लिए वह महिलाओं को जागरूक करने जीबी रोड जाती थी, लेकिन जैसे-जैसे महिलाओं और उनके बच्चों के बीच समय बीता, तो उनको कोठे वाली जिंदगी से बाहर निकालने के लिए प्रयास शुरू किया। हर दिन किसी न किसी बहाने उनसे मिलकर उन्हें बेहतर जीवन जीने के लिए काउंसलिंग की, जिससे वह सपने देख उनको पूरा करने के लिए आगे बढ़े।
उन्हें कई बार जान से मारने की भी धमकी
उन्होंने कटकथा फाउंडेशन की नींव वर्ष 2011 में रखी। महिलाओं को वहां से निकलने में मदद की। पहले एक महिला को वहां से निकाल रोजगार से जोड़ उसे स्वयं का काम करने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे जीबी रोड रोज जाना शुरू किया तो कई महिलाओं ने अपने बच्चों के साथ निकलने कि इच्छा जाहिर की। वहां से निकलना महिलाओं के लिए आसान नहीं हैं। कई बार जान से मारने की धमकी तक मिली।
उन्होंने पुलिस की मदद और महिलाओं की इच्छाशक्ति के साथ उन्हें निकाला। अब तक वह 20 से ज्यादा महिलाओं को रेडलाइट एरिया से बाहर निकाल चुकी हैं। इसके अलावा उनके बेटे, बेटियों के लिए भी शिक्षा और स्वरोजगार का इंतजाम किया है।
स्वयं का कर रही रोजगार
प्रज्ञा बताती हैं कि महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी, तब नोएडा के सेक्टर 52 में ड्रीम विलेज की स्थापना कर उन्हें रखा। उन्हें बैग सिलना, बुनाई, कढ़ाई, मैट बनाना आदि काम सिखाए। साथ ही जिन महिलाओं को खाना बनाना अच्छा आता था, उनसे मार्केट में स्टॉल लगवाया। अब महिलाएं स्वयं कमाने लगी हैं। उनके बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाया। साथ ही जो हाथ का हुनर सीखना चाहते थे, उन्हें फोटोग्राफी, मेहंदी, पार्लर के लिए प्रशिक्षण दिलाया। अब उन्होंने खुद का काम शुरू कर दिया है।

एक युवा महिला ने कमर्शियल किचन खोल अपना काम शुरू कर दिया है, जिसमें हर तरह का भोजन रहेगा। इससे महिलाएं अपना जीवन आत्मनिर्भर बनकर अच्छे से जी रही हैं। उन्हें देख रेडलाइट एरिया की अन्य महिलाओं में भी सम्मानजनक जीवन जीने की प्रेरणा मिली है।
नाबालिग लड़कियों को बाहर निकाला
प्रज्ञा बताती हैं कि करीब 16 साल की एक लड़की को नौकरी देने के लिए एक व्यक्ति ने दिल्ली बुलाया। दिल्ली आते ही उससे दिया हुआ पता खो गया। वह भटकते हुए जीबी रोड जा पहुंची। वहां लोग उसे परेशान कर रहे थे। नई बच्ची के साथ ऐसा होते देख, एक महिला ने फोन पर उन्हें जानकारी दी। उसे पुलिस की मदद से निकाला। आज वह पुणे विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही है। इसी तरह 14 से 15 उम्र में घर को छोड़ दिया।
बाद में वह जीबी रोड पहुंची। वहां काफी सहने के बाद उन्हें अंधेरे की जिंदगी से आजादी दिलाई उनका विवाह कराया। आज वह अपना जीवन अच्छे से यापन कर रही हैं। इसी तरह कई जीबी रोड से बाहर निकाली गईं कई महिलाओं के बच्चे अब स्कूल में पढ़ाई पूरी करने के बाद अब सिविल सेवा की तैयारी भी कर रहे हैं।

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