किसानों को हुई फंडिंग, आंदोलन में घुसे थे खालिस्तान समर्थक; 2021 के उपद्रव को लेकर पूर्व पुलिस कमिश्नर ने बताया बहुत कुछ
Farmers Protest 13 फरवरी से किसानों के दिल्ली कूच करने के एलान ने लोगों को 2021 की घटना की यादें ताजा कर दी है। इस बार दिल्ली पुलिस ने पिछली बार की तरह सुरक्षा में कोई चूक नहीं करना चाह रही है जिससे किसान दोबारा दिल्ली में घुसकर पहले की तरह की उपद्रव मचाकर लोगों के लिए खतरा पैदा कर सकें।

राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली। 13 फरवरी से किसानों के दिल्ली कूच करने के एलान ने लोगों को 2021 की घटना की यादें ताजा कर दी है। इस बार दिल्ली पुलिस ने पिछली बार की तरह सुरक्षा में कोई चूक नहीं करना चाह रही है, जिससे किसान दोबारा दिल्ली में घुसकर पहले की तरह की उपद्रव मचाकर लोगों के लिए खतरा पैदा कर सकें।
पिछली बार किसानों को शुरू में कई बड़े किसानों व आढ़तियों ने उकसाने व उन्हें फंडिंग करने का काम किया था। बाद में अच्छा अवसर देख खालिस्तान समर्थक भी घुस आए थे और फिर एक राजनीतिक पार्टी ने आंदोलन को हाईजेक कर किसानों को मोहरा बना जमकर फंडिंग की थी। केंद्र सरकार को बदनाम करने व दिल्ली का माहौल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
किसानों को उकसाने और फंडिंग के सबूत मिले
दिल्ली पुलिस के तत्कालीन पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव से हुई विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस की जांच में किसानों को उकसाने व फंडिंग किए जाने के स्पष्ट सबूत मिल गए थे। इसके बाद ही करीब 20 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे।
वही देश विरोधी चेहरे किसानों के पीछे
मुख्यालय सूत्रों की मानें तो इस बार भी पुलिस को पूरा शक है कि पिछली बार जो देश विरोधी चेहरे किसानों के पीछे थे, अमूमन वही चेहरे इस बार भी उनके पीछे हैं जो किसानों को उकसा रहे हैं और देश विरोधी हरकतें करने के लिए उनपर दबाव बना रहे हैं। दिल्ली पुलिस समेत सभी केंद्रीय एजेंसियां इस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं।
यूपी-हरियाणा में ही किसानों को रोकने की कोशिश
एसएन श्रीवास्तव का कहना है कि पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि हरियाणा व उत्तर प्रदेश में ही किसानों को रोकने के लिए व्यापक कदम उठाए जा रहे हैं। अगर 2021 में भी इस तरह किया जाता, तब किसान दिल्ली की सीमाओं तक नहीं आ पाते और कई महीने तक सीमाओं पर बैठकर दिल्ली-एनसीआर के लोगों के लिए परेशानी नहीं खड़ा कर पाते।
तब किसान तेजी से पहुंच गए दिल्ली
किसानों का जत्था जब पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश से दिल्ली के लिए निकला था तब तेजी से वे दिल्ली की सीमाओं तक आ गए थे। कहीं भी उक्त राज्यों की पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की थी। इससे सीमाओं पर आकर उन्होंने घर बनाकर बसेरा डाल दिया था।
दिल्ली ने मजबूत तरीके से रोके किसान
दिल्ली पुलिस ने बहुत ही मजबूत तरीके से सिंघु, टीकरी, गाजीपुर व औचंदी समेत अन्य सभी छोटे बड़े सीमाओं पर पहली बार बैरिकेडिंग कर किसानों को दिल्ली आने से रोक दिया था। पहली बार जर्सी बैरियर, लोहे के कंटीले तार, डंपर, कंटेनर लगाए गए थे। सड़कें भी खोद दी गई थी।
आंदोलन में खालिस्तान समर्थक भी घुसे
पुलिसकर्मियों ने कोई ऐसा बल प्रयोग नहीं किया, जिससे किसी किसान की मौत हो गई हो। कोरोना व सर्दी के कारण कुछ किसानों की मौत जरूर हो गई थी। जांच में यह बात सामने आइ थी कि शुरू में किसानों को कई बड़े किसानों व आढतियों ने फंडिंग करना शुरू किया बाद में खालिस्तान समर्थक भी घुस आए थे।
आंदोलन हुआ हिंसक
इसके बाद आंदोलन को हिंसक रूप देने की कोशिश की गई। फिर एक राजनीतिक पार्टी व कुछ वामपंथी विचार धारा के नेताओं ने पर्दे के पीछे से गलत हवा देने की भरपूर कोशिश की थी। किसानों ने जब गणतंत्र दिवस के दिन रैली निकालने की बात कही तब किसानों के विभिन्न संगठनों के बड़े नेताओं के साथ दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों की कई बार इस मसले को लेकर बैठकें हुई।
किसान नेताओं ने दिया था लिखित आश्वासन
नेताओं ने लिखित में आश्वासन दिया था कि वे पुलिस द्वारा सुझाए मार्गों से ही रैली निकालेंगे उसके बाद उन्हें सिंघु, टीकरी व गाजीपुर सीमाओं से रैली निकालने की सशर्त अनुमति दी थी। इन तीनों जगहों से 60-60 किलोमीटर के दायरे में रैली निकालने की बात तय हुई थी। उन्हें रूट भी बता दिए गए थे लेकिन दिल्ली में प्रवेश करते ही किसानों ने जहां तहां घुसकर भारी उपद्रव मचाना शुरू कर दिया था। बाद में किसान नेताओं की मांग पर केंद्र सरकार के निर्देश पर उपराज्यपाल ने किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे वापस भी ले लिए गए।
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