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    Explainer: क्या है Delhi Services Bill, इससे कैसे बदलेगा राष्ट्रीय राजधानी का शासन? जानिए इसके पीछे की कहानी

    By Abhishek TiwariEdited By: Abhishek Tiwari
    Updated: Mon, 07 Aug 2023 11:17 AM (IST)

    Delhi Services Bill वर्ष 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। स्थानीय स्तर पर महानगर परिषद बनी। 1966 में दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट बनाया गया। मुख्य आयुक्त की जगह एलजी ने ले ली। सात नवंबर 1966 को दिल्ली का पहला एलजी नियुक्त किया गया। महानगर परिषद एलजी को मात्र सलाह दे सकती थी। अधिकारों को लेकर केंद्र और केजरीवाल सरकार के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है।

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    Explainer: क्या है Delhi Services Bill, इससे कैसे बदलेगा राष्ट्रीय राजधानी का शासन?

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Delhi Services Bill : दिल्ली की सेवाओं से संबंधित विधेयक पर सोमवार (7 अगस्त) को राज्यसभा की मुहर लग गई। गुरुवार यानी 3 अगस्त को इसे लोकसभा से पास किया गया था। दोनों सदनों से पास होने के बाद दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 के लिए राष्ट्रपति के पास जाएगा और उनकी मंजूरी के बाद अध्यादेश की जगह लेगा।

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    यह अध्यादेश लंबे वक्त से केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद का एक प्रमुख कारण रहा है। राज्यसभा में पास होने के बाद अगर इस विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं तो फिर से दिल्‍ली सरकार के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से लेकर कई अधिकार उपराज्‍यपाल को मिल जाएंगे।

    सरकार बनाम एलजी: ऐसे शुरू हुआ विवाद

    मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार बनाते ही वर्ष 2015 में एक आदेश दिया था कि जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था से जुड़ी तमाम फाइलें पहले उनके पास आनी चाहिए। इसके बाद उन्हें एलजी के पास भेजा जाएगा।

    तब दिल्ली में नजीब जंग उपराज्यपाल थे, जिन्होंने इस आदेश को लागू करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद तत्कालीन एलजी नजीब जंग ने बड़ा फैसला लिया और दिल्ली सरकार की तरफ से नियुक्त तमाम अधिकारियों की नियुक्ति को रद कर दिया। एलजी ने कहा था कि नियुक्ति का अधिकार उन्हें है।

    हाईकोर्ट ने एलजी को बताया था ‘बास’

    अफसरों के ट्रांसफर और नियुक्ति का अधिकार एलजी को मिलते ही दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट का रुख किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली में एलजी ही असली ‘बास’ हैं।

    ये दिल्ली सरकार के लिए एक बड़े झटके की तरह था। हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रशासनिक मामलों में एलजी की सहमति जरूरी है और मंत्रिमंडल कोई भी फैसला लेने से पहले उसे एलजी को भेजेगा।

    सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

    हाईकोर्ट से झटका मिलने के बाद केजरीवाल सरकार की तरफ से इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। मामले की लंबी सुनवाई के बाद वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साफ किया कि चुनी हुई सरकार ही दिल्ली की असली ‘बास’ होगी।

    तब भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पुलिस, जमीन और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सभी अधिकार दिल्ली सरकार के पास ही हैं।

    केंद्र ले आया एनसीटी बिल

    सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्र की तरफ से संसद में बिल लाकर एलजी व सरकार की शक्तियों को परिभाषित किया गया। बिल में कहा गया था कि ‘दिल्ली में सरकार का मतलब एलजी हैं’।

    बिल का आप और अन्य विपक्षी दलों ने विरोध किया, लेकिन भारी हंगामे के बीच गवर्नमेंट आफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी आफ दिल्ली बिल-2021 को दोनों सदनों से पास करने के बाद इसे अधिसूचित भी कर दिया गया, जिसके खिलाफ दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची।

    लंबी लड़ाई के बाद दिल्ली सरकार की जीत

    11 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने फिर दिल्ली सरकार को राहत देते हुए सेवाओं के मामले में अधिकार दे दिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से एलजी की शक्तियों को भूमि, पुलिस और कानून-व्यवस्था तक ही सीमित कर दिया है।

    इमरजेंसी या किसी बड़े मामले को लेकर एलजी फैसला ले सकते हैं या फिर इसे राष्ट्रपति को भेजा जा सकता है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलते ही अधिकारियों के तबादले शुरू कर दिए। सबसे पहले सेवाएं विभाग के सचिव का तबादला किया गया, पर अब तक केंद्र ने इस पर अमल नहीं किया। इस पर आप फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। आप की तरफ से इसे कोर्ट की अवमानना बताया गया।

    19 मई को दिल्ली सेवा अध्यादेश

    इस स्थिति के बाद ही 19 मई को केंद्र सरकार इस संदर्भ में दिल्ली सेवा अध्यादेश लेकर आई। इसमें केंद्र ने फिर से अधिकारियों के तबादले और तैनाती का अधिकार एलजी को दे दिया। आप सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जा चुकी है और उधर संसद में भी विपक्षी गठबंधन की मदद से इसे गिराने की कोशिशों में लगी है।

    आजादी से पहले से चली आ रही है ‘अधिकारों की जंग’

    दिल्ली के लिए ‘अधिकारों की जंग’ देश की आजादी से भी पहले से चली आ रही है। समितियों का भी गठन हुआ है और कई बार समितियों की सिफारिशों पर संवैधानिक व्यवस्था में थोड़ा-बहुत बदलाव भी किया गया है। लेकिन, दिल्ली के विशेष स्वरूप को लेकर छेड़छाड़ कभी स्वीकार नहीं की गई।

    आप और कांग्रेस ने राज्यसभा सदस्यों को जारी किया व्हिप

    राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 आज राज्यसभा में पेश होने जा रहा है। इसे लेकर आम आदमी पार्टी और समर्थन दे चुके विपक्षी दल राज्यसभा में इस विधेयक का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

    इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने अपने सभी राज्यसभा सदस्यों को सात और आठ अगस्त को सदन में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया है।

    आप ने व्हिप में कहा है कि इन दोनों दिन राज्यसभा में त्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए जाएंगे। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 पर चर्चा और पारित होना है।

    आप से राज्यसभा में चीफह्विप डॉ. सुशील गुप्ता ने जारी व्हिप में कहा है कि राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सभी सदस्यों से अनुरोध है कि वे सुबह 11 बजे से सदन में उपस्थित रहें। इन दोनों दिन तक सदन के स्थगन तक, बिना चूके और पार्टी के रुख का समर्थन करें।

    भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए विधेयक का विरोध कर रहे विपक्षी दल- अमित शाह

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए विपक्षी दल विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने विपक्ष से आग्रह किया कि वे दिल्ली की भलाई के बारे में सोचें, अपने गठबंधन के बारे में नहीं। गुरुवार को लोकसभा में विधेयक पर लगभग चार घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने विरोध करने के लिए विशेष रूप से कांग्रेस को निशाने पर लिया।

    गठबंधन की मजबूरी में भले ही वह विधेयक के विरुद्ध है, लेकिन इसके पास होने के बाद केजरीवाल गठबंधन में नहीं रहने वाले हैं। पिछले दो हफ्ते से मणिपुर के मुद्दे पर सदन की कार्यवाही नहीं चलने देने वाले विपक्षी नेताओं के विधेयक पर चर्चा में भाग लेने को लेकर शाह ने तीखा कटाक्ष किया था।

    उन्होंने कहा था कि विपक्ष को न तो लोकतंत्र की, न देश की और न ही जनता की चिंता है। उसे सिर्फ गठबंधन बचाने की चिंता है। सिर्फ इसके लिए ही वे सदन की कार्यवाही में भाग ले रहे हैं। जैसे ही गठबंधन टूटने की नौबत लाने वाला विधेयक आया, मणिपुर को भूल गए। शाह ने कहा था कि देश कांग्रेस और विपक्ष के इस दोहरे चरित्र को देख रहा है।

    दिल्लीवासियों को गुलाम बनाने वाला है विधेयक: केजरीवाल

    दिल्ली में सेवाओं से जुड़ा विधेयक लोकसभा से पारित होते ही सीएम अरविंद केजरीवाल ने भाजपा और पीएम मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट किया-वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि प्रधानमंत्री बनने पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे, लेकिन आज इन लोगों ने दिल्लीवासियों की पीठ में छुरा घोंप दिया। आगे से उनकी किसी बात पर विश्वास मत करना। इससे पहले केजरीवाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को निशाने पर लिया।

    लोकसभा में अमित शाह को दिल्लीवासियों के अधिकार छीनने वाले बिल पर बोलते सुना। बिल का समर्थन करने के लिए उनके पास वाजिब तर्क नहीं है। वह भी जानते हैं कि वह गलत कर रहे हैं। यह विधेयक दिल्ली के लोगों को गुलाम बनाने वाला, उन्हें बेबस और लाचार बनाने वाला है। आइएनडीआइए ऐसा कभी नहीं होने देगा।